झूठ से, हम सभी को बहुत नफरत है, लेकिन क्या ऐसा है कि आपने, अपनी जिंदगी में, कभी झूठ ना बोला हो? झूठ बोलने की, कई वजह हो सकती हैं, लेकिन लगभग, हर किसी की जुबान से, कभी न कभी तो झूठ निकला ही होगा। यह एक ऐसा सच है, जिसे हम स्वीकार करते हैं, लेकिन सिर्फ अपने मामले में, अगर कोई दूसरा झूठ बोले, तो हमें अच्छा नहीं लगता। सच की शक्ति को, आइए, इस छोटी सी कहानी से समझते हैं।
एक दिन, तेज धूप में, एक व्यक्ति अपने काम में लगा हुआ था। देखते ही देखते, सूरज ढलने पर आ गया। तभी उस व्यक्ति की परछाई ने, उससे कहा - मैं, तुम्हें सुबह से देख रही हूं। तुम जितने थे, उतने ही रहे और मुझे देखो, मैं, तुमसे कई गुना ज्यादा बढ़ी हो गई हूं। यह सुनकर वो व्यक्ति मुसकुराया और बोला- सत्य और असत्य में, यही तो अंतर है। सत्य, हर परिस्थिति और हर समय, एक सा रहता है। वो जितना है, हमेशा उतना ही रहेगा। लेकिन झूठ, पल-पल में कम और ज्यादा होता है। और अक्सर बदलता रहता है।
गुण और दोष, हर इनसान में हैं। पर, अगर एक को ज्यादा प्राथमिकता देना शुरू कर दी जाए, तो दूसरा खुद ब खुद दब जाता है। हम अपनी जिंदगी में, अगर सच को ज्यादा अहमियत देना शुरू कर देंगे, तो झूठ का अस्तित्व, खुद ब खुद खत्म हो जाएगा।