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who is responsible for communal riots? This Post Design By The Revolution Deshbhakt Hindustani

who is responsible for communal riots?

देश की आजादी के बाद, 1970 का भिवंडी दंगा, साल 1984 के सिख विरोधी दंगे, 1989 के कश्मीर दंगे, 1992 का बाबरी मस्जिद विध्वंस और 2002 के गुजरात दंगों से लेकर साल 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों तक, देश के बहुत से, नागरिकों ने अपनों को खोया या फिर आर्थिक नुकसान झेला। और आज भी देश के किसी न किसी कोने में, कई राजनीतिक, धार्मिक और सांप्रदायिक दंगे देखने को मिलते हैं। लेकिन इनके लिए जिम्मेदार कौन है- जनता, administration या फिर राजनेता। भारत को एक शांत और अहिंसक देश कहा जाता है। यहीं पर गौतम बुद्ध, महावीर और गांधीजी जैसे पुरुषों ने शांति और सद्भाव के बारे में बात की है। लेकिन देश में दंगे आम बात है, सोचने की बात यह है कि दंगा आखिर करता कौन है। लाखों-करोडो लोगों की एक ऐसी भीड़, जिसमें मौजूद हर व्यक्ति को लगता है कि वो अपने आप में नेता है और न्याय करना, उसकी ड्यूटी है।

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अक्सर कुछ लोगों की हेट स्पीचेज की वजह से आम जनता भड़क जाती है। माना कि किसी से गलत ब्यानबाजी हुई है, लेकिन वो भी इनसान हैं। ऐसे में क्या, सुनने वालों को समझदारी से काम नहीं लेना चाहिए। हम उन्हें नजरअंदाज कर सकते हैं। अक्सर हम अपनी नौकरी खोने या फिर किसी और डर से, गलत के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत नहीं करते। मान लिया कि कोई अपने निजी स्वार्थ के लिए दंगा करवाना चाहता है, तो क्या भारत की जनता इतनी भी पढ़ी-लिखी नहीं है कि उनके इरादों को समझ सके, उन पर अंधविश्वास न करे। अगर आम जनता चाहे, तो कोई भी व्यक्ति, दंगे नहीं करवा सकता। उदाहरण के लिए परिवार में अगर 2 लोगों में झगड़ा होता है, तो अगर एक व्यक्ति शांतिपूर्वक बातचीत करके चीजों को सुलझा लेगा, तो झगड़ा होगा ही नहीं। देश भी तो एक परिवार है। दूसरे देशों के साथ हम शांतिवार्ता की बात करते हैं, क्या वो शांतिपूर्वक सुलह देश के अंदर नहीं हो सकती? आखिर एक इनसान, दूसरे इनसान को कैसे मार सकता है। हम पर, क्रोध इतना हावी कैसे हो सकता है और क्या हमारे अंदर इन्सानियत नहीं बची है? हमारा कोई भी धर्म तो हमें यह नहीं सिखाता है। तो क्या यही सच है कि हम अपने धर्म और अच्छाई का सिर्फ ढोंग करना जानते हैं, उसे अपनाना नहीं। शायद हम आधुनिक हो गए, लेकिन असल में, अब भी जागरूक नहीं हुए हैं।

दंगा भड़कने के बाद, पॉलिटीशियन और एडमिनिस्ट्रेशन का काम देश की व्यवस्था को बनाए रखना है। जन-धन की हानि न हो, इसका ख्याल रखना है। दंगों से हजारों लोग प्रभावित होते हैं। ऐसे में ब्यूरोक्रेट्स बड़ी आसानी से यह कह देता है, कि हायर अथॉरिटी से ऑर्डर नहीं होने की वजह से कोई ठोस एक्शन नहीं ले पाए। माना कि दंगों में उन पर प्रेशर और लिमिटेशन है। लेकिन क्या प्रशासन को सही और गलत की समझ नहीं? क्या देश के लिए उनका कर्तव्य सिर्फ सरकारी आदेशों को फॉलो करने तक सीमित है? और अंत में वो यह हवाला देते हैं कि ऊपर से गलत ऑर्डर की वजह से दंगा नहीं रोक पाए। सवाल यह उठता है कि गलत ऑर्डर फॉलो ही क्यों किए गए? अपनी नौकरी बचाना सही है, लेकिन क्या यह इन्सानियत की कीमत पर होना चाहिए? दंगे रोकना या करवाना, रूलिंग पार्टी या ऑपोजीशन के हाथ में भी नहीं हैं। हायर लेवल पर बैठा कोई भी व्यक्ति खुद दंगे करने नहीं आता। देश के आम नागरिक ही इन दंगों का हिस्सा होते हैं, चाहे वो उनके फोलोअर हों या कोई और। ज्यादातर दंगे लूटपाट में तब्दील हो जाते हैं, क्योंकि देश में गरीबी और बेरोजगारी है। और इसलिए कई लोग, पैसे के लिए उन दंगों का हिस्सा बन जाते हैं! जाहिर सी बात है, देश या लोकतंत्र का ग्राउंड पिल्लर जनता ही है। एक जागरूक नागरिक, दंगों को रोक सकता है। कारण चाहे कोई भी हो, चाहे किसी ने पिछले दंगों में अपनों को खोया है, या फिर किसी की बयानबाजी ने उन्हें दुख पहुंचाया है। या कुछ भी। सही मायने में दंगों के लिए जनता ही दोषी है। अतीत में हुए दंगों को किसी भी डॉक्यूमेंट्री या शॉर्ट फिल्म के माध्यम से, दिखाया जाता है, तो क्या हम उन्हें किसी को दोषी ठहराने के लिए देख रहे हैं या फिर उनसे कुछ सीख लेने के लिए। आज, क्या समाज जागरूक हो पाया, क्या पॉलिटीशियंस ने हेट स्पीचेज बंद कर दी? और सबसे अहम रोल निभाने वाली, एडमिनिस्ट्रेशन क्या गलत ऑर्डर्स को फॉलो नहीं करने का साहस जुटा पाई है। दंगों में अपनों को खोने वाले लोगों का दुख, न तो कोई समझ सकता है और न ही कम कर सकता है। द रेवोल्यूशन- देशभक्त हिंदुस्तानी आपको सिर्फ यही कहना चाहता है कि दूसरों को माफ करें। हम अतीत को नहीं बदल सकते, इसलिए खुद के लिए, दूसरों को माफ करें। आपके साथ जो गलत हुआ है, उसके लिए समाज को जागरूक जरूर करें, ताकि आने वाली जेनरेशन को वो दुख न झेलना पड़े। आपके दर्द की सीख और आपका हौसला, समाज में रेवोल्यूशन का आधार हो सकता है।