अपनी गलतियों से बचने के लिए, हमें झूठ बोलना और सच छिपाना, बहुत जरूरी लगता है। एक गांव के सरकारी स्कूल में, एक टीचर थे। पिछले 20 साल से, वो उसी गांव में थे, लेकिन अब उनका ट्रांसफर, कहीं दूसरी जगह हो रहा था। एक दिन, अपनी पत्नी और बच्चों के साथ, अपना पूरा सामान समेट कर, जाने को तैयार थे। ट्रक पर सामान लोड करवा रहे थे, कि उन्होंने देखा, सामान का 1 बंडल नहीं है।
वो वापस, घर में गए। सब जगह देखा, नहीं मिला। पत्नी और नौकर सभी, उसे ढूंढते रहे। लगभग 1 घंटा बीत गया, लेकिन वो बंडल, कहीं नहीं दिखा। अंत में, छत पर जाकर देखा, तो एक कोने में, कांच के बर्तनों के टुकड़े पड़े थे। यह वही बंडल था, जिसे अभी तक सब लोग ढूंढ रहे थे। पिता ने बच्चों ने पूछा- सहमी सी आवाज में उनका बेटा बोला- मैं इसे लेकर आ रहा था, लेकिन हाथ से फिसल गया। ये काफी महंगे थे, और मुझे डांट पड़ती, इसलिए बताया नहीं। पिता ने कुछ नहीं कहा, और वहां से चल दिए। इसका परिणाम क्या हुआ- ट्रकवालों से लेकर, माता पिता और नौकर चाकर सहित - 5 लोगों का- 1 घंटे का कीमती समय, बर्बाद हुआ।
कोई गलती हुई है, तो सच बोलने से मन मुटाव हो सकता है या फिर कोई और समस्या हो सकती है, लेकिन अगर नहीं बोला गया, तो कहीं ज्यादा पछतावा होगा।