आज जितने भी सफल बिजनेस हैं, उनका सीक्रेट वेपन- ब्रांड अवेयरनेस है। मार्केट में इतना ज्यादा कॉम्पिटीशन है, कि किसी नए प्रोडक्ट या स्टार्टअप के लिए बाजार में टिकना, सबसे बड़ी चुनौती है, लेकिन ब्रांड अवेयरनेस, मार्केटिंग और पोजिशनिंग से यह संभव है। यह आपके टारगेट कस्टमर का भरोसा जीतने की कला है, जो आपकी सेल्ज और इक्विटी को प्रमोट करेगी। आइकॉनिक लोगो से लेकर वायरल मार्केटिंग कैंपेन तक, एक स्ट्रेटेजिक ब्रांड अवेयरनेस, आपके व्यवसाय को बदल सकती हैं। लेकिन आखिर क्यों, कुछ प्रोडक्ट अपनी ब्रांड वैल्यू नहीं बना पाते? ब्रांड अवेयरनेस का मतलब है कि कितने ज्यादा लोग आपके प्रोडक्ट या कंपनी को जानते और उस पर भरोसा करते हैं। उसके बारे में लोगों को कितना नॉलेज है, और उससे वो कितना फैमिलियर हैं। ब्रांड अवेयरनेस, मार्केटिंग की ओर पहला कदम है। क्योंकि जब लोग, किसी नए प्रोडक्ट के बारे में जानेंगे, तभी वो उसे ट्राई करने का सोचेंगे। उदाहरण के लिए अगर कोई आपसे कोल्ड ड्रिंक के बारे में पूछता है, तो आप तुरंत कोका-कोला या पेप्सी को याद कर सकते हैं। यही ब्रांड अवेयरनेस है।
ब्रांड अवेयरनेस के चार स्तर हैं। पहला, जब आपके प्रोडक्ट के बारे में लोगों को कुछ भी जानकारी नहीं है, जहां आपको जीरो से शुरुआत करनी पड़ती है। दूसरा चरण, जब लोगों को उस प्रोडक्ट के नाम, logo और उसके रंग से एक पहचान मिलती है। तीसरे चरण में ब्रांड रिकॉल है, जब मार्केट में सेम प्रोडक्ट होने के बावजूद, लोग आपके प्रोडक्ट को रिकॉल करते हैं। उदाहरण के लिए, अगर आपको मिनरल वॉटर लेना है, तो बिसलेरी की water bottle आपके दिमाग में सबसे पहले आएगी। अंतिम स्तर, टॉप-ऑफ़-माइंड लेवल है, यानी ग्राहक की फर्स्ट चॉइस आपका प्रोडक्ट है। अब इसकी जरूरत की बात करते हैं। हर कंपनी एक strong brand identity बनाना चाहती है। और यह जरूरी भी है, क्योंकि जब तक लोग आपको जानेंगे नहीं, तब तक वो आपके प्रोडक्ट क्यों खरीदेंगे। इसलिए ब्रांड अवेयरनेस बहुत जरूरी है। और खासकर, आज के इंटरनेट और वेब के जमाने में, जहां ग्राहक खरीदारी करने से पहले रिसर्च और दूसरों की राय पर भरोसा करते हैं। इसलिए ब्रांड ट्रस्ट ही सब कुछ है, जब लोगों को किसी ब्रांड पर भरोसा हो जाता है, तो वो उसे खरीदते हैं। जितने ज्यादा लोग उस ब्रांड के बारे में जानते हैं, वो उतना ही ज्यादा मूल्यवान हो जाता है। वो आगे अपने जानकार लोगों को उसे रिकमेंड करते हैं, इससे ब्रांड इक्विटी बढ़ती है, यानी कंपनी असेट्स की वैल्यू बढ़ती है। अगर किसी कंपनी का ब्रांड अवेयरनेस नहीं होगा, तो उसकी कंपनी का नाम और उत्पादों की पहचान लोगों तक नहीं पहुंचेगी, जिससे उनकी बिक्री कम हो सकती है और वो ब्रांड खत्म भी हो सकती है।
ब्रांड अवेयरनेस बढ़ाने के तरीके की बात करें, तो सभी कंपनियां, सोशल मीडिया, मार्केटिंग, टीवी विज्ञापन, सेलेब्रिटीज को अपना ब्रांड एम्बेसेडर बनाकर और स्पॉन्सर्ड इवेंट्स की मदद से अपनी ब्रांड वैल्यू बनाने की कोशिश करते हैं, लेकिन क्या कारण है कि सिर्फ कुछेक कंपनियां या प्रोडक्ट ही लोगों में विश्वास और पहचान बना पाते हैं। कारण- ब्रांड स्ट्रेटिजी। आप देखेंगे कि जो भी फेमस प्रोडक्ट या कंपनियां हैं, वो इन्फोर्मेशन से ज्यादा लोगों के साथ इमोशनली कनेक्ट करने की कोशिश करती हैं। डाबर वाटिका के विज्ञापन शायद आपने भी देखा होगा, उनका ब्रेव एंड ब्यूटीफुल कैम्पेन महिला कैंसर सर्वाइवर्स को सपोर्ट करता है। बिड़ला सन लाइफ इंश्योरेंस की शॉर्ट फिल्म का विज्ञापन आपका दिल पिघला देगा। इतना ही नहीं, google, हैवेल्स, बीएमडब्ल्यू, Tanishq और यहां तक कि नौकरी डॉट कॉम भी, अपने socially responsible emotional विज्ञापनों के जरिए लोगों के साथ कनेक्ट कर रहा है। ये तो सिर्फ कुछेक नाम हैं, आज हर कोई, ब्रांड अवेयरनेस के लिए इमोशनल कैंपेन चला रहा है। ब्रांड अवेयरनेस स्ट्रेटेजी की बात करें, तो इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं। क्या आपको साल 2009 याद है, जब एक फ्री इंस्टेंट मैसेजिंग एप्लिकेशन व्हाट्सएप आया। उस वक्त लोग आपस में बातचीत के लिए टैक्ट्स भेजते थे, जिनके लिए उन्हें चार्जेज भी पे करने पड़ते थे, तो ऐसे में लोगों के लिए इससे बेहतर ऑप्शन क्या हो सकती थी। जब लोग किसी ब्रांड को जानते हैं, तो वो उस पर भरोसा करते हैं, वो हमेशा उसे प्राथमिकता देंगे। किसी भी कंपनी के लिए यूनिक सेलिंग प्रपोजिशन" सबसे ज्यादा जरूरी है। यह एक मार्केटिंग टर्म है। इसका मतलब है कि आपके प्रोडक्ट में कोई यूनिक फीचर या कुछ ऐसा बेनिफिट जरूर होना चाहिए, जो आपको दूसरी कंपनियों से अलग बनाता हो। ये बेनिफिट या फीचर दूसरे कॉम्पिटिटर्स से बेहतर होना चाहिए, तभी लोग उसे खरीदना चाहेंगे। उदाहरण के लिए एसयूवी मॉडल में कई कंपनियों की गाड़ियां है, जैसे महिंद्रा, टाटा नेक्सन और Hyundai। लेकिन सभी के अपने खास फीचर हैं।