आज हम बिग बॉक्स स्टोर के बारे में बात करेंगे। यह रिटेल स्टोर हैं। कुछ दशक पहले, ये सिर्फ, किराने और दूसरी घरेलू चीजें बेचते थे, लेकिन आज इनमें कपड़े से लेकर, इलेक्ट्रॉनिक्स, तक हर चीज, उपलब्ध है। वॉलमार्ट और कॉस्टको स्टोर, इसी के उदाहरण हैं। ये सुपरस्टोर थोक में चीजें खरीदते हैं, या खुद मैन्युफैक्चरिंग करते हैं और आगे उन्हें ग्राहकों को बेचते हैं। इसी वजह से, इनके प्रोडक्ट, किसी स्थानीय दुकान की तुलना में सस्ते होते हैं। सबसे पहले रिटेल को समझते हैं कि यह है क्या। वास्तव में ग्राहकों को वस्तुएं और सेवाएं बेचने की प्रक्रिया, रिटेल कहलाती है। इसमें फिजिकल और ऑनलाइन स्टोर दोनों हो सकते हैं। आसान शब्दों में कहें, तो प्राचीन काल के यात्रा करने वाले व्यापारी से लेकर बड़े शॉपिंग मॉल, बड़े-बॉक्स स्टोर और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म तक, सब रिटेल के तहत आते हैं। अब से कुछ दशक पीछे देखें, तो रिटेल मार्केट की एक चेन देखने को मिलती थी। जिसमें मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री के विभिन्न डिपो, होते थे, जो कई राज्यों में डीलर्स को सामान बेचते थे। उसके बाद ये डीलर, होलसेलर को बल्क में अपना माल बेचते थे। और ये होलसेलर आगे रिटेलर्स को प्रोडक्ट बेचते थे। ये साइकल यूं ही चलता रहा, लेकिन एक समय वो आया, जब साल 2007 में वॉलमार्ट ने bharti enterprises के साथ मिलकर और रिलायंस रिटेल जैसी बड़ी कंपनियों ने मार्केट में एंट्री की और सीधे, आम ग्राहकों के साथ जुड़े।
हम आपको बता दें कि भारत की कुल जीडीपी का 10% से ज्यादा, रिटेल सेक्टर से आता है। इतना ही नहीं, यह सेक्टर लगभग 8% रोजगार प्रदान करता है। Kearney Research के अनुसार, भारत की रिटेल इंडस्ट्री 2019-2030 में 9% की दर से बढ़ने का अनुमान है। और तो और, ई-रिटेल खरीदारों के मामले में, चीन और अमेरिका के बाद, भारत तीसरे नंबर पर है। बिग बॉक्स स्टोर, हाइपरमार्केट, variety store, chain store या सुपरस्टोर, ये सब एक ही चीज है। इन स्टोर का सबसे बड़ा फायदा यह है कि लोगों को एक ही छत के नीचे कई सारे प्रोडक्ट और काफी वैरायटी मिल जाती है। ऐसे स्टोर ग्राहकों को, किसी लोकल या छोटे रिटेल की तुलना में कम कीमत में सामान बेचते हैं। कुल मिलाकर, बड़े बॉक्स स्टोर प्रतिस्पर्धी कीमतों पर, प्रोडक्ट्स की ज्यादा वैरायटी के साथ उपभोक्ताओं के लिए एक सुविधाजनक, वन-स्टॉप खरीदारी का एक्सपीरिएंस देते हैं। हाइपरमार्केट उपभोक्ताओं को कई लाभ प्रदान करते हैं, लेकिन वे स्थानीय अर्थव्यवस्था और समुदायों पर कुछ नकारात्मक प्रभाव भी डालते हैं। इनका सबसे बड़ा नुकसान यह है कि बिग-बॉक्स स्टोर में कम कीमत और व्यापक वैरायटी के चलते, छोटे व्यवसाय, खत्म हो रहे हैं, जिससे लोगों का रोजगार छिन रहा है, क्योंकि ये छोटे स्टोर ही हैं, जो ज्यादा रोजगार के अवसर पैदा करते हैं।
इन सुपरस्टोर का सबसे बड़ा ड्राबैक, ग्राहकों के लिए है। भारत में ज्यादातर लोग आर्थिक तौर पर समृद्ध नहीं हैं, इसलिए वो लोग अक्सर छोटे स्टोर से ही खरीदारी करते हैं और जरूरत पड़ने पर उनसे उधार लेते हैं। उदाहरण के लिए, कोविड 19 महामारी के समय को ही याद करें, तो इन छोटे स्टोर ने ही लोगों का साथ दिया था। इसके अलावा, छोटे या स्टार्टअप मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए भी एक ड्रॉबैक है। अब देखिए, मार्केट में कोई नया प्रोडक्ट लाँच करना है, तो शुरुआती चरण में, मार्केट में जगह बनाने और उस प्रोडक्ट की ब्रांड वैल्यू बनाने में छोटे रिटेलर, अहम रोल निभाते हैं। वो अपने ग्राहकों को नए प्रोडक्ट्स को रेक्मेंड करते हैं। लेकिन, बिग बॉक्स स्टोर, नए प्रोडक्ट्स का रिस्क लेने में दिलचस्पी नहीं दिखाते। और यही सब कारण हैं, जिनकी वजह से अक्सर छोटे व्यापारियों के साथ-साथ, ज्यादातर लोग इन सुपरस्टोर का विरोध करते हैं। साल 2030 तक भारत, तीसरी सबसे बड़ी कंजप्शन इकोनॉमी होगा। छोटे रिटेलर अक्सर उचित सुरक्षा के बिना, बाज़ार से पूरी तरह से बाहर हो जाते हैं। इसलिए, भारत सरकार को एक निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने की जरूरत है, ताकि सभी व्यवसायों को, उनके आकार की परवाह किए बिना, सफल होने का समान अवसर मिल सके। अगर सरकार कोई नीति बनती है, तो छोटे व्यवसायों को ध्यान में रख कर बनायें। क्योंकि छोटे रिटेलर की रक्षा करके, हम समग्र रूप से अर्थव्यवस्था को प्रोटेक्ट कर सकते हैं।