दक्षिण अफ्रीका के नायक- नेल्सन मंडेला, किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। 1940 के दशक में, गांधी जी की लीडरशिप में, भारत अपनी आजादी के लिए लड़ रहा था, तो दक्षिण अफ्रीका के मूल निवासी अपनी ही धरती पर बेगानों की तरह, रहने को मजबूर थे। उन लोगों के लिए, वही नेल्सन मंडेला मसीहा बनकर आए, जिन्हें बचपन में उनके शरारती स्वभाव के कारण, टाउन में ट्रबलमेकर नाम से बुलाया जाता था। उनका जन्म, 18 जुलाई 1918 को दक्षिण अफ्रीका के केप प्रांत में उम्टाटा के म्वेजो गांव में हुआ था। जब वो 12 साल के थे, तब उनके पिता का देहांत हो गया था। उन्होंने कानून में अपनी पढ़ाई पूरी की और दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत वकील बने।
नस्लभेद के खिलाफ लड़ने के लिए, 1944 के आसपास, राजनीति में शामिल हो गए। और सबसे बड़ी बात, महात्मा गांधी जी की अहिंसा की नीति पर, उन्होंने भी सविनय अवज्ञा आंदोलन, राष्ट्रीय हड़ताल और शांतिपूर्ण बहिष्कार किए। इसके लिए उन्हें, 27 साल तक जेल में भी रहना पड़ा। लेकिन फिर भी वो इतने सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति थे, कि इस पर भी, वो कहते थे 27 साल की छुट्टी पर गए थे। 1952 के बाद, एक समय ऐसा आया, जब उनको सभाओं में भाग लेने और एक समय में, एक से ज्यादा लोगों से बात करने के लिए मना कर दिया गया था। आखिरकार, साल 1990 में नेता एफ डबल्यू क्लार्क की सरकार आई और उन्होंने मंडेला की पार्टी और उनके संघर्षों को देखते हुवे, अश्वेतों पर लगे सभी प्रतिबंध हटा दिए। उसके बाद 1994 के इलेक्शन में, अश्वेतों को चुनाव लडने का अधिकार मिला, जिसमें नेल्सन मंडेला की जीत हुई और वो पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने। हालांकि, 5 दिसम्बर 2013 को उनका देहांत हो गया था। आज पूरी दुनिया उन्हीं की याद में, नेल्सन मंडेला अंतराष्ट्रीय दिवस मना रही है। इसकी शुरुआत, संयुक्त राष्ट्र ने 2009 में की थी। और ये पहली बार, 18 जुलाई 2010 को मनाया गया था। आइए, उनके 67 सालों के संघर्ष और लोगों के लिए समर्पण को देखते हुए, अपनी जिंदगी के 67 मिनट, दूसरों की मदद करने में लगाएं। द रेवोल्यूशन- देशभक्त हिंदुस्तानी, राष्ट्र नायक नेल्सन मंडेला को सहृदय नमन करता है।