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क्या आपको पता है बिना लाइसेंस के रेडियो सुनना कभी एक क्राइम था This Post Design By The Revolution Deshbhakt Hindustani

क्या आपको पता है बिना लाइसेंस के रेडियो सुनना कभी एक क्राइम था

आज वर्ल्ड रेडियो दिवस है। अब से कुछ दशक पहले तक घर- घर में रेडियो बजता था। वो भी 24/7। हालांकि यह डिवाइस एंटरटेनमेंट के अलावा, हमें पूरी दुनिया से अपडेट रखती थी। शायद आपने भी अपने दादा-या पिता की परमिशन के बिना, चोरी चुपके उनके रेडियो से गीत सुने होंगे, लेकिन क्या आप जानते हैं कि साल 1885 के Indian Telegraph Act के तहत, घर में रेडियो रखने के लिए एक लाइसेंस लेना पड़ता था। बिना लाइसेंस के रेडियो सुनना, एक क्राइम था। इसके अलावा, आज भारत की कोकिला की याद में, पूरा देश राष्ट्रीय महिला दिवस भी मना रहा है। A. रेडियो की अहमियत को देखते हुए सितंबर 2010 में स्पेन ने पहली बार, रेडियो दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा। दुनियाभर की ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशंज के सहयोग से, इसे नवंबर 2011 में यूनेस्को के सदस्य देशों ने सर्वसम्मति से अपनाया। और उसी साल, यूनेस्को की एक जनरल कॉन्फ्रेंस में 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस डिक्लेयर किया गया था। मनोरंजन से लेकर खबरों के लिए, आजकल हमारे पास टेलिविजन, मोबाइल और कम्प्यूटर जैसे कई tools हैं, इसमें से एक रेडियो भी था। हालांकि आज भी कई घरों में शोपीस बनी यह अनोखी डिवाइस देखी जा सकती है। इसके इतिहास की अगर बात करें, तो जेम्स क्लर्क मैक्सवेल पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने रेडियो के आविष्कार की पॉसिबिलिटी बताई थी, लेकिन पहले रेडियो का आविष्कार एक इटालियन इनोवेटर गुग्लिल्मो मार्कोनी ने किया था।

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उन्होंने 1895 में रेडियो सिग्नल के जरिए इटली से पहली बार, टेलीग्राम भेजा था। यूएस में पहला रेडियो स्टेशन 1919 में स्थापित किया गया था! भारतीय प्रसारण की बात करें, तो ब्रिटिश शासन के दौरान, मुंबई के रेडियो क्लब ने जुलाई 1923 में पहला रेडियो कार्यक्रम प्रसारित किया। कई भाषाओं और बोलियों के साथ, ऑल इंडिया रेडियो दुनिया के सबसे बड़े रेडियो स्टेशनों में से एक है, जो 99% आबादी को कवर करता है। रेडियो के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि यह आज भी हमारे दैनिक जीवन से लेकर, हमारे देश में प्रासंगिक और महत्वपूर्ण बना हुआ है। रेडियो अभी भी हमारे साथ है, गाता रहता है और हमें सूचित करता रहता है। यह एक अच्छे दोस्त और पड़ोसी की तरह है, जो हमेशा आपको सुकून देने के लिए गुनगुनाता है और आपको कभी निराश नहीं करता। शायद आप में से भी कुछेक लोग ऐसे होंगे, जो विविध भारती का सबसे पॉप्यूलर शो- गीतमाला सुनते होंगे। क्या आप ने भी वो दौर जिया है, जब बिजली चले जाने पर रेडियो चलाने के लिए, सेल या बैटरी का यूज करते थे। हालांकि आज टाइम लूप में रेडियो कहीं गायब हो गया है। आज रेडियो की जगह मोबाइल ने ले ली है, लेकिन रेडियो सुनने का मजा ही अलग था। क्योंकि अपनी फरमाइश पर गाने सुनने की ऑप्शन के साथ-साथ, दुनियाभर में बैठे लोगों के फेवरेट साँग सुनने को मिलते थे। इसकी अहमियत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि यह रेडियो, स्वतंत्रता संग्राम में लोगों को अवेयर करने से लेकर, आज तक डिजिटल प्रसारण के जरिए हर किसी तक पहुंच रहा है।

B. अक्सर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का जिक्र कुछ ही लोगों तक सिमट जाता है। क्रांति के उस दौर में अहम रोल निभाने वाली महिलाओं में श्रीमती सरोजिनी नायडू एक अंडररेटेड नाम हैं। वो न सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी थीं, बल्कि भारत की प्रमुख कवियों में से एक थीं। 13 फरवरी, 1879 को डॉ. अघोर नाथ चट्टोपाध्याय और वरदा सुंदरी देवी के घर जन्मी, सरोजिनी नायडू जब, मुश्किल से 12 साल की थी, तब उन्होंने छह दिनों में 1,300 पंक्तियों की कविता 'द लेडी ऑफ द लेक' लिखी थी। उनकी सुंदर कविताओं के लिए महात्मा गांधी जी ने उन्हें 'भारतीय बुलबुल' का खिताब दिया था। उनका विवाह डॉ. मुथ्याला नायडू से हुआ था। उस समय वीमेन एम्पॉवरमेंट का चेहरा बनने वाली, श्रीमती नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष और भारत की पहली महिला राज्यपाल भी थीं। साल 1929 में, देश में प्लेग महामारी के दौरान उन्होंने आम लोगों की बहुत मदद की, जिसकी वजह से उन्हें अंग्रेजों ने कैसर-ए-हिंद मैडल दिया। अपनी आजादी के कुछ समय के अंदर, साल 1949 में भारत ने अपनी कोकिला को खो दिया। लेकिन आज भी उनकी तरह, हर महिला याद दिलाती है कि साहस और हौसले से, इनसान कुछ भी पा सकता है। द रेवोल्यूशन देशभक्त हिंदुस्तानी, आप सभी को राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएं देता है, और खासकर सभी महिलाओं को। महिला- एक परिवार, एक समाज, एक राष्ट्र और विश्व की शिल्पकार हैं।