रोज की तरह, डिनर के बाद, मिस्टर त्रिपाठी चायवाले की दुकान पर गए। बैंच पर बैठे, चाय की चुस्कियों का आनंद ले रहे थे, कि एक आदमी उनके पास आ कर बैठ गया। उसी कॉलोनी का था। कहने लगा- मैंने आपके दोस्त -मिस्टर वर्मा, के बारे में कुछ बातें सुनी हैं, जो मैं आपको बताना चाहता हूं। मिस्टर त्रिपाठी ने कहा- इससे पहले तुम कुछ बताओ, अच्छा होगा कि हम फिल्टर कर लें। उन्होंने उसे कहा- क्या तुम्हें विश्वास है कि जो तुम कहने जा रहे हो, वो सच है? वो आदमी बोला- नहीं, दरअसल मैंने ये किसी से सुना है”
मिस्टर त्रिपाठी ने कहा- ठीक है, अब ये बताओ, मेरे दोस्त के बारे में, जो तुम कहने जा रहे हो, क्या वो कोई अच्छी बात है?” वो आदमी बोला- नहीं, ये तो इसका बिलकुल उलट है…..” उन्होंने आगे कहा- मेरे दोस्त के बारे में, तुम जो बताने वाले हो, क्या वो मेरे किसी काम का है?” उस आदमी ने कहा- शायद नहीं। मिस्टर त्रिपाठी उठे और जाते-जाते कहने लगे- यदि जो तुम बताने वाले हो- वो ना तो सच है, ना अच्छा है और ना ही मेरे किसी काम का। तो उसे सुनने का, मुझे क्या फायदा?” असल में, ये दार्शनिक सुकरात का ट्रिपल फिल्टर का नियम है, जो हमें बताता है कि कौन सी बात हमारे लिए व्यर्थ है।