आज 24 फरवरी को, सेंट्रल एक्साइज डे मनाया जा रहा है। ब्रिटिश दौर की बात करें, तो उस वक्त साल्ट, आबकारी और कस्टम डिपार्टमेंट, एक साथ थे। लेकिन मद्रास साल्ट एक्ट 1889 के तहत, नमक और आबकारी को मद्रास साल्ट डिपार्टमेंट के तहत ऑग्रेनाइज किया गया, जो मद्रास कस्टम हाउस से काम करता था। साल 1934 में एक टैरिफ एक्ट लाया गया। और यही वो समय था, जब Central Board of Revenue का गठन किया गया, जब कई चीजें टैक्स के दायरे में आ गई। शायद आप जानते होंगे कि साल 1924 तक शराब पर Excise duty, राज्य सरकार के अंडर थी। क्या आप एक्साइज ड्यूटी के बारे में जानते हैं। नो डाउट, आपको इस बारे में थोडी-बहुत जानकारी तो जरूर होगी! यह, एक Indirect Tax टैक्स है, जो चीजों की प्रोडक्शन या मैन्युफैक्चरिंग पर लगाया जाता हैं। सबसे पहले यह समझते हैं कि- टैक्स है क्या। 'टैक्स' शब्द लैटिन शब्द टैक्सारे या टैक्सो से लिया गया है। जिसका मतलब है- 'किसी चीज के मूल्य का आकलन करना'। यह सरकार द्वारा गुड्ज या सर्विसेज की खरीद और बिक्री पर लगाए जाते हैं। टेक्सेशन सिस्टम आज का नहीं है, हजारों साल पहले भी लोग, कोई न कोई टैक्स पे करते थे। यहां तक कि कौटिल्य का अर्थशास्त्र, एक प्लान्ड और वैल मैनेज्ड टैक्स सिस्टम के बारे में बताता है। जैसा कि आज हम जानते हैं कि आयकर भारत में पहली बार 1860 में अंग्रेजों द्वारा पेश किया गया था।
यह गर्वनमेंट की इनकम का मेन सोर्स है! दरअसल हर वो चीज जिसे हम सरकारी या सार्वजनिक संपत्ति कहते हैं, ये इन्ही डायरेक्ट या इन डायरेक्ट टैक्स से ही बनती है। और ये बात जानना उन लोगों, खासकर युवा पीढी के लिए बेहद जरूरी है, जो आंदोलन के नाम पर इन्ही सरकारी संपत्ति का विनाश करने पर तुले रहते हैं। लेकिन ये टैक्स पे करने वालों का पैसा है, जिसे खर्च करके सरकार, इस पब्लिक प्रोपर्टी का निर्माण करती है। इसे आसान भाषा में समझने के लिए कुछ उदाहरण लेते हैं। मान लीजिए आप बिजनेस कर रहे हैं, चाहे चीजें कुछ भी बेच रहे हों, आपको SALES TAX देना होगा, बिजनेस में फायदा हो रहा हो, तो इनकम टैक्स देना होगा। हमें, सबसे पहले एक्साइज और कस्टम ड्यूटी के बीच अंतर समझना होगा। एक्साइज देश में मैन्यूफेक्चर होने वाली चीजों पर लगता है, लेकिन कस्टम ड्यूटी देश के बाहर से आने वाले सामान पर लगाया जाता है। पहले Excise Duty, VAT, Entry Tax, Service Tax वगैरह कई तरह के टैक्स लगाए जाते थे, लेकिन वन नेशन, वन टैक्स को ध्यान में रखते हुए, 1 जुलाई 2017 में एक टैक्स- जीएसटी लागू किया गया! हालांकि इससे 17 साल पहले, यानी साल 2000 में वाजपेयी सरकार के दौरान जीएसटी पर चर्चा शुरू हो गई थी। शायद आपको पता होगा कि पहली बार फ्रांस ने जीएसटी लागू किया था, और अब तक 160 से ज्यादा देशों में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स सिस्टम है!
जीएसटी लागू होने से पहले, तीन प्रकार की एक्साइज ड्यूटी लगती थी- यानी Basic, एडिशनल और स्पेशल एक्साइज ड्यूटी। लेकिन, जब जीएसटी लागू हुआ, तो एक्साइज ड्यूटी को सेंट्रल जीएसटी से रिप्लेस कर दिया गया। आज ज्यादातर चीजों पर लगने वाला कर, जीएसटी के तहत आ चुका है, लेकिन क्रूड पेट्रोलियम, डीजल, गैस जैसे सभी पेट्रोलियम प्रोडक्ट और शराब पर एक्साइज ड्यूटी लगती है। शराब को एक्साइज ड्यूटी के तहत इसलिए रखा गया है, ताकि इसके हानिकारक प्रभाव को देखते हुए, इसकी कंजप्शन को कंट्रोल किया जा सके। जो कि सही भी है, लेकिन पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स को जीएसटी के तहत लाया जाना चाहिए। देश की आय का एक तिहाई हिस्सा एक्साइज टैक्स से ही आता है। अक्सर बहुत से लोग टैक्स चोरी करते हैं। हालांकि, इनकम टैक्स एक्ट 1961 के तहत कर चोरी के लिए कारावास और जुर्माने का प्रावधान है। इनकम को छुपाना, आय की जानबूझकर कम जानकारी देना, आईटीआर दाखिल नहीं करना और करों का भुगतान नहीं करना, ये सब टैक्स चोरी के उदाहरण हैं। टैक्स चोरी करना कानूनी तौर पर एक क्राइम की कैटेगरी में आता है, और उससे भी ज्यादा नैतिक मूल्यों की अवहेलना भी जरूर है, क्योंकि देश के प्रति हर नागरिक की एक जिम्मेदारी बनती है। द रेवोल्यूशन देशभक्त हिंदुस्तानी की ओर से, सेंट्रल एक्साइस डे पर, हम वफादारी से टैक्स पे करने वालों को धन्यवाद देते हैं। आज महंगाई सबसे बड़ी प्रोबलम है। गर्वनमेंट के इंटरनल मैनेजमेंट सिस्टम को यह समझने की जरूरत है, कि अगर पेट्रोल, डीजल और गैस जैसे, सभी पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स को भी जीएसटी के दायरे में लाया जाता है, तो महंगाई को कंट्रोल किया जा सकता है। जीएसटी को आसान बनाने की भी जरूरत है। एक आसान टैक्स सिस्टम, पूरे देश के लिए सही है।