आज, feminist icon और समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले की जयंती है। वो, भारत की पहली महिला टीचर बनीं, लेकिन उनका सफर आसान नहीं था। जब उन्होंने पहला महिला स्कूल खोला, तो ब्राह्मणों ने जमकर उनका विरोध किया! सिर्फ 17 साल की सावित्रीबाई, जब लड़कियों को पढ़ाने के लिए, स्कूल जाती थीं, तब लोग रास्ते में उन्हें गंदी गालियां देते और उनपर पत्थर और गोबर फेंकते थे लेकिन सावित्रीबाई बिना डरे, उनका सामना करती! वो हमेशा अपने साथ, एक एक्सट्रा साड़ी रखती थीं! साड़ी गंदी होने पर, उसे चेंज करके, स्कूल पहुंचती और रोज की तरह पढ़ाना शुरू करती! जिस स्कूल के लिए उन्होंने इतना सैक्रिफाइस किया, हमारा दुर्भाग्य है कि वो आज वो स्कूल, खंडहर बन चुका है! सावित्रीबाई फुले का जन्म, 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के नायगांव - सतारा में हुआ था। यह भारत की वो, महानायिका हैं, जिन्होंने साल 1873 में, सत्यशोधक विवाह की प्रथा शुरू की! इस प्रथा की खासियत यह थी कि विवाहित जोड़ा, शिक्षा और समानता की शपथ लेता था! सावित्रीबाई फुले खुद अपनी शादी के वक्त, महज 9 साल की थीं! उनके पति यानी ज्योतिराव फुले, उस समय 13 साल के थे! एक बार जब, कुछ विदेशी लोग, ईसा मसीह की प्रेयर कर रहे थे! सावित्रीबाई ने उनके हाथ में किताब को देखा! बचपन और क्रियोसिटी की वजह से, उन विदेशियों ने सावित्री को वो किताब दी! पढ़ना नहीं आता था, इसलिए सावित्री किताब लेने में हिचकिचा रही थी! लेकिन किताब देने वाले ने कहा कि नहीं पढ़ना आता, तो इसके चित्रों को देखना, तुम्हें अच्छा लगेगा! और यही वो इंसीडेंस था, जो सावित्री की जिंदगी में एक नया मोड़ लेकर आया! यानी सावित्रीबाई की सबसे बेशकीमती चीज, वो किताब थी, जो ईसाई मिशनरी ने उन्हें दी थी!
सावित्रीबाई ओबीसी कैटेगरी से बिलॉन्ग करती थीं! अपनी शादी के दौरान, सावित्रीबाई अनपढ़ थीं, हालांकि ज्योतिराव फुले के सपोर्ट से वो, अपनी पढ़ाई कंपलीट कर पाई! उन्होंने समाज में भेदभाव, असमानता, महिलाओं की शिक्षा और सामाजिक उत्पीड़न से लड़ने के लिए शिक्षा का सहारा लिया! भारतीय नारीवाद की जननी, सावित्रीबाई फुले ने, अपने पति के साथ, निम्न जाति के लोगों को शिक्षित करने का संकल्प लिया! उनके इस क्रांतिकारी विचार का मकसद, समाज की मेंटालिटी को बदलना था, क्योंकि उस वक्त लोगों को लगता था कि महिलाएं शिक्षा लेने के लिए कैपेबल नहीं हैं! यहां तक कि शूद्र जाति के लड़कों को भी, शिक्षा का अधिकार नहीं था! सावित्रीबाई ने अपने 18वें जन्मदिन पर 3 जनवरी 1848, को पुणे में अपने पति के साथ मिलकर, पहले स्कूल की स्थापना की। इस एक स्कूल के अलावा उन्होंने 1848 से 1852 के बीच, पुणे में 18 स्कूल और खोले, जिन्हें एक समिति चलाती थी! कई और मेंबर्स के अलावा, सावित्री बाई, सगुनाबाई और फातिमा शेख टीचर बनीं! यह वही फातिमा शेख हैं, जो भारत की पहली मुस्लिम अध्यापिका बनीं! लेकिन दुर्भाग्य की बात है, कि फुले दंपत्ति द्वारा बनाया गया, पहला गर्ल स्कूल आज जर्जर हालत में है, जिसे सहेजने में प्रशासन, की कामयाबी, हम सभी के लिए शर्मनाक है, क्योंकि यह वो ऐतिहासिक स्कूल था, जो महिलाओं की शिक्षा का आधार बना और खासकर इस दंपत्ति के जीवन की सबसे बेशकीमती यादगार! इतना ही नहीं, सावित्रीबाई ने, विधवाओं के लिए, 1854 में एक आश्रय स्थल खोला। उन्होंने प्रेगनेंट रेप विक्टिम के लिए भी एक केयर सेंटर भी खोला था! सावित्रीबाई के प्रयासों पर किसी ने खास ध्यान नहीं दिया, लेकिन 1852 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें बेस्ट टीचर का अवार्ड दिया। आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत, सावित्रीबाई फुले पहली शूद्र और पहली भारतीय महिला रही हैं, जिनकी कविताओं की चर्चा ब्रिटिश साम्राज्य में भी हुई। उनके ‘‘काव्य फुले’’ नाम के पहले कविता संग्रह के बारे में शायद आप जानते होंगे, यह सन 1854 में पब्लिश हुआ था। उन्होंने गर्भवती ब्राह्मण महिला- काशीबाई को आत्महत्या करने से बचाया था और उसके बच्चे को गोद लिया! यशवंतराव नाम का यह बच्चा, आगे चलकर डॉक्टर बना!
साल 1897 में उन्होंने पुणे में प्लेग पीड़ितों के लिए एक क्लिनिक खोला। सावित्रीबाई ने सबसे बड़ा बलिदान तब दिया, जब एक 10 साल के पेशेंट को अपनी गोद में क्लिनिक ले गई, यह जानते हुए कि, ऐसा करने से उन्हें भी इन्फैक्शन हो जाएगी! 10 मार्च, 1897 को सावित्रीबाई फुले ने अंतिम सांस ली। सावित्रीबाई के पति, ज्योतिराव ने उन्हें पढ़ाने के साथ-साथ, उनका हर कदम पर साथ दिया! उनकी जिंदगी एक जीवंत उदाहरण है, कि अगर अपने पार्टनर का साथ हो, तो बड़ी से बड़ी चुनौती को जीता जा सकता है! द रेवोल्यूशन- देशभक्त हिंदुस्तानी की ओर से, मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि कोई भी रेवोल्यूशन लाना, बहुत मुश्किल होता है, लेकिन अपनों और सच का साथ, हो, तो हर प्रोबलम को जीतकर, बड़े से बड़ा बदलाव मुमकिन है!