किसी भी देश की इकोनॉमिक, पॉलिटिकल और सोशल ग्रोथ में, इंटरनेशनल रिलेशन, का बहुत अहम रोल होता है। यह ठीक वैसा ही है, जैसे हमारे लिए हमारे पड़ोसियों से लेकर, हमारी जान-पहचान वाले बाकी लोग। हर कंट्री का कॉन्सेप्ट भी ऐसा ही है। अपनी आजादी के 75 साल के बाद, भारत एक युवा देश है, जिसके इंटरनेशनल रिलेशन और ग्रोथ ने, इसे ग्लोबल लेवल पर एक नई पहचान दी है। वास्तव में इंटरनेशनल रिलेशन में दोनों देशों का फायदा होता है। दोनों में इन्वेस्टमेंट और बिजनेस बढ़ता है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था विकसित होती है। सबसे पहले यह समझते हैं कि भारत की विदेश नीति है क्या। यह political goals का एक ऐसा सेट है, जो यह तय करता है कि एक देश, दुनिया के दूसरे देशों के साथ कैसे बातचीत करेगा। आसान शब्दों में कहें, तो डिप्लोमैटिक डिलींग का प्लान। विदेश नीति का उद्देश्य, दूसरे देशों के साथ कोलेबोरेशन (collaboration) के जरिए अपने विकास के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय शांति को बरकरार रखना, यानी दुनिया की एकता को बनाए रखना है। सरकार देश के विकास के लिए काम करती है। भारत की विदेश नीति का कार्य देश की अखंडता, नागरिकों, मूल्यों और संपत्तियों की रक्षा और सुरक्षा करना है। इंटरनेशनल रिलेशन को डेडिकेटेड, विदेश मंत्रालय, सरकार की एक एजेंसी है, जो भारत के पूरी दुनिया के साथ रिलेशन सुनिश्चित करती है। यह विदेश नीति बनाने, उसे लागू करने के लिए जिम्मेदार है। और इसी के जरिए, Indian Foreign Services के सदस्य दूसरे देशों में भारत की एंबेसी काम करती हैं, जिनका काम ग्लोबल मंच पर देश को रिप्रेजेंट करना है।
फोरेन पॉलिसी के जरिए, भारत दूसरे देशों के साथ व्यापार सुनिश्चित करता है, जिससे देश की इकोनॉमिक ग्रोथ होती है। सिर्फ विकास ही नहीं, बल्कि दूसरे देशों के साथ संबंध, इकोनॉमिक, कल्चरल, पॉलिटिकल और सोशल ग्रोथ के लिए भी जरूरी हैं। उदाहरण के लिए कोविड 19 महामारी के दौरान, भारत ने कई देशों को वैक्सीन सप्लाई की। अभी हाल ही में, तुर्की में आए भूकंप में राहत बचाव कार्य के लिए भारत ने Indian Army field hospital वहां भेजा। भारत जीडीपी के हिसाब से दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और एक developing industrialized Nation है, इसलिए विदेशी बिजनेस और इन्वेस्टर्स के लिए एक आकर्षक मार्केट है। विश्व बैंक के ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स के अनुसार भारत का रैंक 2022 में 63 हो गया है। अप्रैल 2000 से सितंबर 2022 के बीच भारत में कुल एफडीआई यानी फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट तकरीबन 887 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। भारत में दूसरे देशों के साथ, ट्रेड, कोई नई चीज नहीं है, यह ईसा पूर्व भी होता था, जिसका प्रमाण एरिथ्रियन सागर का पेरिप्लस डॉक्यूमेंट है। 1498 से, यूरोपीय लोगों ने समुद्री मार्ग से भारत के शासकों के साथ व्यापार किया। और आज, भारत चीन, अमेरिका और जर्मनी सहित लगभग 190 देशों के साथ व्यापार कर रहा है। भारत रिफाइंड पेट्रोलियम, पैकेज्ड मेडिसिन, ज्वेलरी जैसी कई चीजें निर्यात करता है, वहीं कच्चा पेट्रोलियम, सोना और पेट्रोलियम गैस जैसी कई वस्तुएं इंपोर्ट करता है।
दूसरे देशों के साथ एक फायदेमंद ट्रेड और बिजनेस, किसी भी कंट्री के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है, क्योंकि इससे देश की इनकम बढ़ती है। अगर कोई भी विदेशी कंपनी भारत में इन्वेस्ट करती है, या फिर भारत के निर्यात यानी दूसरे देशों को ज्यादा वस्तुएं व सर्विस बेचता है, तो दूसरे देशों का पैसा भारत में आएगा, जिससे ऑटोमैटिकली देश का विकास होगा। शिक्षा या रोजगार के लिए अक्सर, सभी देशों के नागरिक, दूसरे देशों में जाते हैं। या फिर हमेशा के लिए वहां बस जाते हैं। अगर भारत की बात करें, तो दुनियाभर के 100 से ज्यादा देशों में 3.2 करोड़ से ज्यादा भारतीय रहते हैं। इसलिए विदेश नीति इन नागरिकों के लिए भी जरूरी है। शायद आपको याद होगा, जब साल 2021 में अफगान पर, तालिबान ने कब्जा कर लिया था। उस वक्त भारत के विदेश मंत्रालय ने सैकड़ों भारतीय को अफगानिस्तान से वापिस लाने में अहम रोल निभाया था। इसलिए, एक सही फॉरेन पॉलिसी और ग्लोबल लेवल पर इंटरनेशनल रिलेशन, सभी देशों के लिए जरूरी हैं। भारत दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा और सबसे अहम देश है। सरकार को यह ध्यान में रखना चाहिए कि विदेश पॉलिसी किसी पॉलिटिशियन, या किसी भी सिंगल पर्सन या कॉरपोरेट हाउस को सपोर्ट करने की बजाय, सभी लोगों की डेवलपमेंट सुनिश्चित करे, न कि किसी के निजी स्वार्थ को। भारत की जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का लगभग 29% योगदान है। इसलिए सरकार को एक ऐसी ट्रांसपेरेंट पॉलिसी बनानी चाहिए, जो बड़े कॉरपोरेट हाउस और फॉरेन इन्वेस्टर्स के साथ-साथ छोटी कंपनियों को भी support करे।