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Zero Discrimination Day This Post Design By The Revolution Deshbhakt Hindustani

Zero Discrimination Day

हर साल की तरह, आज 1 मार्च को जीरो डिस्क्रिमिनेशन डे सेलिब्रेट किया जा रहा है। क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि स्कूल या कॉलेज में दूसरे बच्चे आपके साथ, किसी भी चीज को लेकर भेदभाव करते हैं ऑफिस या फिर सोसायटी में आपके स्टेटस और काम को लेकर भेदभाव किया गया हो। या आपने किसी के साथ, ऐसे अनफेयर ट्रीट किया हो। क्या आपने कभी सोचा है कि नॉर्मल दिखने वाली, हमारी ऐसी एक्टिविटी दूसरों को किस हद तक हर्ट कर सकती हैं? वर्ल्ड डिस्क्रिमिनेशन डे व जीरो डिस्क्रिमिनेशन डे, की हिस्ट्री की बात करें, तो साल 2014 में आज के ही दिन, ये दिवस पहली बार मनाया गया था। हालांकि 1 दिसंबर 2013 को, वर्ल्ड एड्स डे के मौके पर, इस दिन को मनाने की घोषणा की गई थी। वास्तव में आज का यह दिन हमें समाज में एक बदलाव के लिए empathy, tolerance और हर किसी की रिस्पेक्ट करने के लिए मोटिवेट करता है। यह दिन, हमें सिखाता है कि किसी भी आधार पर, हमें दूसरों के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए। इस बार इसकी थीम की बात करें, तो यह वीमेन सेंट्रिक है। हम आपको बता दें कि डब्ल्यूएचओ के अनुसार पूरी दुनिया में तकरीबन 380 मिलियन महिलाएं हैं, जो गरीबी में जी रही हैं और हर 11 मिनट में एक महिला या लड़की को, उनके परिवार का ही कोई न कोई मैंबर, उनका मर्डर कर देता है। वीमेन एम्पॉवरमेंट के लिए ही, इस बार इस दिन को महिलाओं के लिए डेडिकेट किया गया है। आइए सबसे पहले डिस्क्रिमिनेशन को समझते हैं। इसका मतलब किसी के साथ अनफेयर तरीके से ट्रीट करना, है। इसकी वजह कुछ भी हो सकती है, उदाहरण के लिए उम्र, जैंडर, धर्म-जाति, Disability, Status या फिर किसी और कंट्री का होना।

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यह अलग बात है कि डिस्क्रिमिनेशन, ह्यूमन राइट्स और लॉ के बिलकुल खिलाफ है, और खासकर हमारे नैतिक मूल्यों के। लेकिन फिर भी, आप भी अपने आस पास, ऐसे वाक्या होते हुए देखते होंगे, जहां पर आपको लगा होगा कि आपके साथ भेदभाव हुआ है। दूसरों के साथ, भेदभाव करने की आखिर असल वजह है क्या। इसका कारण पूर्वाग्रह है यानी ऐसी फीलिंग्ज, जिनके कारण कोई व्यक्ति, दूसरों के लिए पॉजिटिव या नेगेटिव टेंडेंसी रखता है। यानी मन में, पहले से ही एक धारणा बन जाती है। सामान्यता, वो अपनी सोशल डिवेल्पमेंट के दौरान जैसे circumstances में रहता है, उसी के अनुसार उसकी मानसिकता बन जाती है। उदाहरण के लिए एक स्लम एरिया में पले-बड़े बच्चे और एक बिलियनेयर के बच्चे के व्यवहार में अंतर, दूसरों के लिए उनका नजरिया अलग होगा। Article 15, Super 30 और Mardaani जैसी कई बॉलीवुड फिल्में हैं, जिन्होंने जाति और जेंडर पर आधारित भेदभाव का चेहरा हमारे सामने लाया है। सिर्फ मूवीज ही नहीं, हम रोजमर्रा की जिंदगी पर गौर फरमाएं, तो डिस्क्रिमिनेशन के कई चैप्टर हमारे सामने होंगे। जैसे, हो सकता है कि जाने अंजाने में ही, आपने किसी सिक्योरिटी या सर्वेंट को भेदभाव का एहसास करवा दिया हो। या फिर सोसायटी में अपने स्टेटस या क्लास के चलते, किसी को शर्मिंदा कर दिया हो। और तो और, फैमिली में भी डिस्क्रिमिनेशन हो सकती है, अपने और सौतेलों के आधार पर। for example, आपके एल्डर भाई या बहन को, स्कूटी या आईफोन जैसी कोई एक्सपेंसिव चीज दिला दी हो, लेकिन आप उम्र में छोटे हैं, इसलिए आपको साइकिल या एंड्रॉयड फोन से काम चलाना पड़ रहा है। यह किसी की निजी जिंदगी पर सवाल नही, सिर्फ एक उदाहरण है। वास्तव में हमारी ऐसी एक्टिविटीज पूर्वाग्रह से प्रभावित हैं। इसमें हमारी कोई इंटेंशन नहीं होती है, लेकिन दूसरों को यह बुरा लगता है। यहां तक कि हर देश के निवासी, दूसरे देशों में डिस्क्रिमिनेशन फेस करते हैं।

हमारा संविधान का आर्टिकल 14 से 18, समानता की बात करता है। हमें सदियों से यह बात सिखायी जाती रही है कि आपसी प्रेम, भाईचारे और एक-दूसरे का सहयोग करके चलने में ही हम इंसानों की भलाई है। और भारत, महात्मा गांधी, सरदार पटेल और अब्दुल कलाम जैसी विभूतियों का देश है, जिन्होंने हमेशा एकता में विश्वास की बात की है। हमारा जीवन बहुमूल्य है, लेकिन हम भूल जाते हैं कि यह नश्वर भी है। भारत वसुधैव कुटुंबकम में विश्वास करता है, हर किसी की इज्जत करना और उनके साथ अच्छा व्यवहार रखना, हमारे संस्कार और सभ्यता हैं। अगर हम चाहते हैं कि हमारे साथ कोई, भेदभाव न करे, तो जाहिर सी बात है, दूसरे लोग भी हमसे यही उम्मीद करते हैं। कोई भी, एक नेगेटिव माइंडसेट के साथ पैदा नहीं होता है, उसने यह समाज में आकर सीखा है। इसलिए यह स्पष्ट है कि वो पॉजिटिव भी सीख सकता है। तो आइए, इस जीरो टॉलरेंस डे के साथ, प्रेम और सद्भाव से रहना सीखें।