आज स्वामी दयानंद सरस्वती जी की जयंती है। सब जानते हैं कि जब वो जोधपुर में थे, तब उन्हें धोखे से मारा गया था। इसकी साजिश का मास्टरमाइंड कोई और नहीं, उनका रसोईया था। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि यह सच जानते हुए भी, स्वामी जी ने उसे कुछ धन देते हुए जल्दी से जल्दी जोधपुर से बाहर निकलने को बोला था, क्योंकि वो जानते थे कि राजा उसे बिना दंड दिए नहीं मानेगा। स्वामी जी की तरह माफ करने का गुण, आज शायद ही देखने को मिले। स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी, 1824 को गुजरात के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम, लालजी तिवारी और माता का नाम यशोदाबाई था, और वो ब्राह्मण परिवार से थे दयानंद सरस्वती जी को बचपन में मूल कहा जाता था, क्योंकि उनका जन्म मूल नक्षत्र में हुआ था। एक दार्शनिक, सामाजिक नेता स्वामी दयानंद जी ने भारत में वैदिक धर्म को सुधारने का आंदोलन शुरू किया था। वो धार्मिक कर्मकांड और अंधविश्वास के खिलाफ थे, इसी दिशा में उन्होंने आर्य समाज नींव रखी। वो पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने साल 1876 में स्वराज को "भारतीयों के लिए भारत" कहा था।
14 साल की आयु में अपनी बहन की मृत्यु के बाद मूल शंकर, ने मृत्यु और जीवन के सार को समझने की कोशिश की। और अगले 20 सालों तक, पूरे देश में मंदिरों, तीर्थों और पवित्र स्थलों की यात्रा करते रहे। वो पहाड़ों या जंगलों में रहने वाले योगियों से भी मिले और उनसे अपनी दुविधाओं के बारे में पूछा, लेकिन कोई भी उन्हें सही उत्तर नहीं दे सका। महर्षि दयानन्द जी का मानना था कि हिन्दू धर्म में मिलावट का मुख्य कारण ज्ञान का अभाव है। उन्होंने अपने अनुयायियों को वेदों का ज्ञान सिखाने और उनके ज्ञान को आगे फैलाने के लिए विभिन्न गुरुकुलों की स्थापना की। स्वामी जी, एक धार्मिक नेता से कहीं बढ़कर थे। इस समाज सुधारक ने, शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह से बदल दिया था। उन्हीं के सपने को पूरा करने के लिए 1886 में डीएवी स्कूल का जन्म हुआ। उन्होंने जिस आर्य समाज की नींव रखी थी, उसका लक्ष्य मूर्तिपूजा के बजाय, वेदों के सच्चे मतलब से लोगों को अवेयर करना था। और इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि उनके विचारों ने, उस समय के समाज को एक नई विचारधारा दी थी। स्वामी जी की मौत के पीछे जिस शख्स का हाथ था, उन्होंने उसे भी माफ कर दिया था। अगर हम, खुद के मन में झांककर देखें, तो क्या हम ऐसा कर सकते हैं। शायद नहीं। मौत तो दूर की बात है, हम अपने थोड़े से नुकसान से बौखला जाते हैं। अगर कभी किसी की वजह से हमारे साथ कुछ गलत होता है, तो सबसे पहले, हमारे दिमाग में यही आता है कि उसे सजा दी जाए, और उस इनसान से अपने नुकसान की भरपाई करवाई जाए। स्वामी जी का पूरा जीवन हमें, क्षमा करने और सद्भाव की सीख देता है। हम समाज में रहते हैं, परिवार के सदस्यों से लेकर, सोसायटी और अपने कामकाजी जीवन में, हमारी जिंदगी, बहुत से लोगों के साथ जुड़ी होती है। संभावना है कि कभी किसी की वजह से आपका दिल दुखी हुआ हो, या फिर कोई फाइनांशियल या सोशल लॉस हुआ हो, लेकिन माफ करके, और सब के साथ स्नेह बनाए रखना, आज के समय की जरूरत बन चुकी है।
स्वामी जी का मानना था कि जिंदगी में हार बहुत जरूरी है। हम सब यह जानते हैं, लेकिन कोई भी हारना नहीं चाहता। हमें हमेशा लगता है कि 'हमारे साथ ऐसा नहीं होना चाहिए।' किसी एग्जाम में फेलियर, किसी के द्वारा एक्सेप्ट न किया जाना, बिजनेस या नौकरी में असफलता, लव लाइफ में प्रोबलम, और न जाने जिंदगी के कितने पड़ावों पर हमें, फेलियर का सामना करना पड़ सकता है। पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ से लेकर, किसी काम में असफल होने पर, उसे एक्सेप्ट करने के बाद ही, हम अगली कोशिश करते हैं। क्योंकि स्वीकार करना, जीत की ओर बढ़ाया गया पहला कदम है। स्वामी दयानंद जी का कहना था कि लोगों को भगवान को जानना और उनके कार्यों की नक़ल करनी चाहिए, सिर्फ फोरमैलिटी तक सिमित हो जाने का कोई फायदा नहीं है। आज उनकी जयंती पर, द रेवोल्यूशन देशभक्त हिंदुस्तानी, सिर्फ यही कहना चाहता है कि अपने ईष्ट का नाम लेना और विश्वास करना, दोनों अलग चीजें हैं। आइए, अपने ईष्ट के गुणों को अपना कर, इस सुबह की शुरुआत, करें! स्वामी जी के उच्च विचारों के कारण ही, आज भी वो पूजनीय हैं। इसलिए याद रखें, हमारे विचार, ही हमारी पहचान हैं।