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World Press Freedom Day

आज हमें, वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे, मनाते हुए, 30 साल हो गए हैं। साल 1993 की बात है, जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने, 3 मई को विश्व स्वतंत्रता प्रेस दिवस के रूप में चुना और तब से हम हर साल, ये दिवस मनाते हैं। मीडिया, जनता की आवाज है। थॉमस कार्लाइल, वो पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने मीडिया को 'लोकतंत्र का चौथा स्तंभ' कहा था। मीडिया लोकतंत्र के बाकी स्तंभों को, निष्पक्षता से काम करने के लिए बाध्य करती है। लेकिन आज, ये खुद सवालों के घेरे में है। फेक और पेड न्यूज की वजह, लोग इस पर विश्वास नहीं करते। असल में मीडिया दो-धारी हथियार है। आज भारतीय मीडिया को, अपनी जिम्मेदारी समझने की जरूरत है। देश और जनता की डिवेल्पमेंट के लिए, जो मुद्दे जरूरी हैं, उन पर बात करे, न कि गैर-जरूरी और झूठी खबरों से लोगों को गुमराह करे। क्योंकि अखबार, रेडियो, टेलीविजन और सोशल मीडिया के जरिए, आम जनता, जो कुछ भी पढ़ती, सुनती और देखती है,

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उसका, उस पर बहुत असर होता है। उसी के अनुसार, वो अपनी विचारधारा बना लेते हैं। यही कारण है कि, प्रत्येक ब्रेकिंग स्टोरी के साथ, जनता को नायक और खलनायक मिल जाते हैं। हम, दुनिया की सबसे ज्यादा पॉपूलेशन वाली कंट्री हैं- आने वाले दौर में, इंटरनेट और सोशल मीडिया की हमारी कंजपशन, और भी ज्यादा बढ़ने वाली है। सबसे ज्यादा रोल, यहां जनता का है। क्योंकि अगर मीडिया, कुछ फेक या गलत दिखा रहा है, तो उसे वायरल करने वाले, आम लोग ही हैं। मीडिया समाज का आइना है, क्योंकि मीडिया हाउस, वही परोस रहे हैं, जिसमें जनता इंटरस्ट ले रही है। यही नहीं, हम खुद भी, सोशल मीडिया पर, कुछ भी अपलोड करते हैं, बिना ये सोचे कि इसके, अपने आप या समाज पर, क्या परिणाम होंगे।

साल 1978 में इंडियन प्रेस काउंसिल बनाई गई थी, जो मीडिया को सुपरवाइज करती है। अगर कोई भी न्यूज एजेंसी, ट्रांसपेरेंसी, निष्पक्षता और जिम्मेदारी से काम नहीं करती है, तो प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, उसे रेगुलेट कर सकती हैं। पत्रकारों की सुरक्षा भी, एक बड़ा मुद्दा है। पीसीआई और ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन, जैसे रेगुलेटरी संगठन, अगर अपनी रिस्पोंसिबिलिटी सही से निभाएं, तो मीडिया में रिफॉर्म लाया जा सकता है। आपके विचार से, क्या मीडिया में रिफॉर्म की जरूरत है या नहीं?