आज ज्यादातर पेरेंट्स बच्चों के नेचर से परेशान हैं। आप में से कितने लोगों को लगता है कि उनके बच्चे जैसे -जैसे बड़े हो रहे हैं, वैसे-वैसे उनमें चिढ़चिढ़ापन और गुस्सा बढ़ता जा रहा है? या फिर आप में से कितने, एडोलसेंस को यह लगता है वो पेरेंट्स से लेकर सोसायटी तक, किसी को कुछ नहीं समझा सकते? आज यह सवाल, इसलिए, क्योंकि आज, हर साल की तरह, पूरी दुनिया वर्ल्ड टीन मेंटल वेलनेस डे मना रही है? वर्ल्ड टीन मेंटल वेलनेस दिवस को मनाने का मोटिव टीनेर्ज की प्रोबलम्ज के लिए, समाज को अवेयर करना है। डब्ल्यूएचओ (WHO) के डाटा की बात करें, तो दुनियाभर में 10-19 साल के बीच, हर 7 में से एक बच्चा, mental disorder का शिकार है। वहीं 15-29 साल के एडल्ट्स में, मौत का चौथा कारण सुसाइड है। बचपन का मतलब ही एक स्ट्रेसफ्री और मौज-मस्ती की जिंदगी है। और जब बच्चे इस सबसे अच्छे पड़ाव, से एडल्टहुड की तरफ बढ़ते हैं, तो कई मुश्किलें, चुनौतियां उनके सामने होती हैं। बचपन में एक क्यूट और इनोसेंट बच्चा, जब टीनेज में पहुंचता है, उनके हार्मोन में बदलाव आता है। और इसी वजह से उनकी आदतें और इंटरस्ट बदलने लगता है। किसी का सही या गलत ट्रीटमेंट भी समझ आता है। टीनेज में बच्चे अट्रैक्टिव दिखना चाहते हैं, और एटेंशन सीकर होते हैं और कई बार इसी वजह से या फिर पीयर प्रेशर के चलते, कई नए काम करते हैं।
टीनएज एक ऐसी उम्र है, जहां बच्चे खुद अपनी डिजायर और जरूरतों को लेकर क्लीयर नहीं होते। पेरेंट्स का प्रेशर, पढ़ाई में फेलियर का डर, और सबसे बड़ी दिक्कत, दिल टूटने का दर्द। इस सब की टेंशन अगर कम है, तो दोस्तों के साथ, बातचीत करके, मूड सही हो जाएगा, लेकिन कभी कभी यह टेंशन डिप्रेशन का कारण बन जाती है। तकरीबन 70 से 80 पर्सेंट टीनएज बच्चों को डिप्रेशन की ट्रीटमेंट नहीं मिल पाती है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि पेरेंट्स से लेकर, समाज, बच्चों में डिप्रेशन या मेंटल इलनेस को एक स्टिग्मा समझता है। अच्छा एक बात बताएं, क्या आपको वो टाइम याद है, जब आपके बच्चे आपको हर बात बताते थे, वो स्कूल से घर पहुंचते ही, अपनी पूरी रूटीन आपको बता दिया करते थे। अब शायद वो टाइम आ चुका होगा, जब आपके पूछने पर भी, बच्चे अपनी बातें आपसे शेयर नहीं कर पाते होंगे। या आपके सामने सच-झूठ कुछ भी परोस देते हैं। आखिर इसका कारण क्या है? एक्सेप्टेंस। यानी उन्हें डर रहता है, कि वो जो बताएंगे, उस पर पेरेंट्स का रिएक्शन खराब होगा। चाहे उस बच्चे की गलती नहीं होगी, फिर भी वो डरेगा, कि डांट या मार पड़ेगी, पॉकेट मनी बंद हो जाएगी, घर बाहर निकलना बंद कर देंगे या कुछ भी। बचपन में बच्चे, खुलकर अपनी बातें शेयर करते थे, लेकिन अब उन्हें डर है कि पता नहीं, उनकी बात का स्वीकार किया जाएगा, उस पर विश्वास किया जाएगा भी या नहीं। और यही कारण है कि पेरेंट्स और बच्चों में गैप बढ़ रहा है। इतना ही नहीं, वास्तव में टीनेर्ज की सबसे बड़ी प्रोबलम यही है, कि वो अपनी बातें किसी से शेयर नहीं कर पाते, जिस वजह से डिप्रेशन या दूसरी प्रोबलम्ज में पड़ जाते हैं। इसे देखते हुए माइक्रो फैमिली की तुलना में, संयुक्त फैमिली का फायदा नजर आता है। क्योंकि कई बार बच्चे, जो बातें अपने पेरेंट्स से शेयर नहीं कर पाते, वो अपने दादा-दादी या अंकल आंटी व कजन के साथ आसानी से बोल पाते हैं।
जाहिर सी बात है, जब बच्चों को उनके पेरेंट्स नहीं सुनना चाहते, तो वो किसी ऐसे शख्स की तलाश करते हैं, जिससे वो हर बात शेयर कर सकें। आपका बच्चा अगर, आपसे यह शेयर नहीं कर पाया है कि कभी वो स्कूल बंक करके मूवी देखने गया था, तो अगर कभी फिजिकल असॉल्ट का शिकार हो रहा होगा, वो यह भी नहीं बता पाएगा। इसका उदाहरण आप, टीनेज प्रेगनेंसी से ले सकते हैं, जब रिस्क और डर के बावजूद बच्चे, अनसेफ अबोर्शन को अपनाते हैं। बॉलीवुड मूवी तमाशा, की स्टोरी, काफी हद तक, इस प्रोबलम को सिंबोलाइज करती है, जहां, रणबीर कपूर यानी Ved Vardhan Sahni , खुद को भूलकर, ऐसा बन चुका था, जैसा उसके पेरेंट्स चाहते थे। और इसी वजह से, फिल्म के एंड तक, वो अपने पिता से सिर्फ अपने मन की फीलिंग्ज को शेयर करने के लिए स्ट्रगल करता है। कहीं आपका, बच्चा भी, ऐसी ही सट्रगल में तो नहीं है? यह पेरेंट्स और समाज की जिम्मेदारी है कि बच्चों को सुनें, और उन्हें विश्वास दिलाएं कि वो आपके साथ, अपनी हर बात शेयर कर पाएं। द रेवोल्यूशन देशभक्त हिंदुस्तानी की ओर से हम, आप टीनेर्ज, को यही कहना चाहते हैं कि कोई बात नहीं, अगर आप ठीक नहीं हैं। आपके साथ, जितना प्यार, आपके पेरेंट्स करते हैं, उतना कोई नहीं कर सकता। इसलिए, कम से कम अपनी प्रोबलम्ज उनके साथ जरूर शेयर करें, क्योंकि उनसे बेहतर सोल्यूशन और सेफगार्ड, कोई और नहीं हो सकता!