पिछले कुछ दिनों से, मिस्टर त्रिपाठी, ऑफिस के काम में उलझे पड़े थे। वर्कलोड की वजह से, न तो सुबह ऑफिस जाने की कोई फिक्स टाइमिंग थी, और न शाम को लौटने की। लगभग, एक महीने से यही रूटीन चल रही थी। उन्हें कंचन की पढ़ाई की चिंता हो रही थी, इसलिए, एक शाम, उसके कमरे में गए। वो मोबाइल चला रही थी। पापा आए, तो फोन को साइड में रखकर उनसे, बातें करने लगी। उन्होंने कंचन को पूछा कि - तुम्हारी आगे की क्या प्लानिंग है। तुम्हारा लक्ष्य क्या है, क्या बनना है और कैसे? कंचन सोच में पड़ गई, कुछ देर बाद बोली। वो तो हो जाएगा, जो होना है। कुछ न कुछ तो, कर ही लूंगी।
तब उसके पापा ने जवाब दिया- जब एक छोटी सी ट्रिप पर तुम्हें जाना था, तब एक सिंपल जर्नी के लिए, तुम ने बहुत केरफुली हर चीज सिलेक्ट की। विंडो सीट, स्लीपर, एसी बस। अपनी पैकिंग में खाने पीने से लेकर हर चीज, बहुत ध्यान से रखी। हमारी लाइफ भी तो एक जर्नी है, तो तुम बिना रूल्स, बिना specifications के, इसे कैसे जी सकती हो। बिना प्लानिंग, बिना लर्निग और बिना टारगेट डिसाइड किए, तुम वही रह जाओगी, जो तुम आज हो।