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 CBI देश के प्रधानमंत्री के अधीन क्यों आती है ? This Post Design By The Revolution Deshbhakt Hindustani

CBI देश के प्रधानमंत्री के अधीन क्यों आती है ?

सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान साल 1941 में, युद्ध से संबंधित चीजों को लेकर करप्शन का मामला सामने आया। इस मामले की इन्वेस्टिगेशन के लिए एक स्पेशल टीम बनाई गई, जिसका नाम था SPE यानी- स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट। इसके बाद, साल 1963 में एक लीगल फोरमल स्ट्रक्चर बनाया गया और इसका नाम बदलकर CBI- सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन कर दिया गया। सीबीआई सबसे पावरफुल इन्वेस्टिगेटिंग विंग है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि सीबीआई, सीधे सेंटर गवर्नमेंट यानी, हमारे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करती है। अगर किसी मामले को सीबीआई इन्वेस्टिगेट कर रही है, तो कोई सीनियर ऑफिसर या कोई भी और एजेंसी, उनके बीच नहीं आ सकती और न ही उन पर दबाव बना सकती है। सीबीआई के इतिहास की बात करें, तो सीबीआई अब भारत सरकार की Ministry of Personnel, Pension & Public Grievances के तहत काम करती है और यह मंत्रालय प्रधानमंत्री कार्यालय के तहत आता है। यह याद रखें कि सीबीआई, एक्ट ऑफ पार्लियामेंट से नहीं बनी थी, बल्कि मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स के एक रेजोल्यूशन के तहत इसका गठन हुआ था। शुरुआत में सीबीआई को सिर्फ घूसखोरी और भ्रष्टाचार की जांच का ही अधिकार था, लेकिन 1965 से हत्या, किडनैपिंग, आतंकवाद, वित्तीय अपराध, आदि की जांच भी, सीबीआई के दायरे में कर दी गई। वर्तमान में सीबीआई के डायरेक्टर श्री Subodh Kumar Jaiswal हैं, जिन्हें साल 2021 में 2 साल के लिए अपॉइंट किया गया था।

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सीबीआई एक वैधानिक निकाय नहीं है। यहां एक बात ध्यान देने वाली है कि केंद्र सरकार किसी राज्य में, किसी भी क्राइम की जांच के लिए सीबीआई को अथॉरिटी दे सकती है, लेकिन सिर्फ तभी, अगर वो राज्य सरकार, इसके लिए सहमत हो। लेकिन, किसी भी मामले में, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट, अगर सीबीआई को इन्वेस्टिगेशन का ऑर्डर देता है, तो वहां पर राज्य सरकार की सहमति की कोई जरूरत नहीं पड़ती। हम आपको बता दें कि सीबीआई न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया के बेहतरीन इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसियों में से एक है। आमतौर पर यह, नेशनल इंटरेस्ट के मामलों से डील करती है, जैसे कि भ्रष्टाचार, हत्या और आतंकवाद। 2जी स्पेक्ट्रम मामला, सत्यम घोटाला और सुशांत सिंह राजपूत केस, इसके कुछेक उदाहरण हैं। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले को लेते हैं। इस मामले में कुल 14 लोगों और तीन कंपनियों पर आरोप लगा था, जिनमें ए राजा और सांसद कनिमोड़ी जैसे राजनेताओं के नाम भी शामिल थे। यह एक बड़ा राजनीतिक विवाद बन गया था, लेकिन अंत में सीबीआई सबूत पेश नहीं पर पाई और लिहाजा कोर्ट ने सभी को बरी कर दिया। यह मामला साल 2010 में सामने आया था, लेकिन साल 2017 में सीबीआई की इन्वेस्टिगेशन का रिजल्ट क्या निकला? चुनावी भाषणों से लेकर विदेशी दौरों तक, कांग्रेस पार्टी को 2जी घोटाले के लिए घेरा जाता था। कुछ राजनीतिक पार्टियों को इसका बहुत फायदा हुआ, सरकारें बदल गईं। इस मामले को देखकर क्या यह मान लेना चाहिए कि सीबीआई का दुरुपयोग हो रहा है। इससे डीएमके और कांग्रेस का बहुत नाम खराब हुआ था। आम जनता के मन में वो दोषी बन गए थे, भले ही अंत में कोर्ट ने उन्हें क्लीन चिट दे दी।

ऐसा ही सुशांत सिंह राजपूत के मामले में देखने को मिला। आखिर क्यों सीबीआई की इन्वेस्टिगेशन का कोई रिजल्ट नहीं आ रहा? सेंट्रल विजिलेंस कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 तक सीबीआई द्वारा इन्वेस्टिगेट किए गए लगभग 6,700 भ्रष्टाचार के मामले अदालतों में लंबित थे। इनमें से कुछ मामले तो, 20 साल पुराने हैं। इसी वजह से कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें लोग सालों जेल में बंद रहते हैं और अंत में आरोप साबित न होने की वजह से, उन्हें बरी कर दिया जाता है। चाहे कोई पार्टी या कोई भी व्यक्ति हो, आरोपों की वजह से, समाज में उनकी छवि खराब होती है, उसकी जिम्मेदारी आखिर किसकी है? विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार अक्सर, गलत कामों को छिपाने और राजनीतिक विरोधियों को दूर रखने के लिए CBI का इस्तेमाल करती है। सीबीआई की पब्लिक के लिए जवाबदेही, थोड़ी कन्फ्यूजिंग लगती है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसे राइट टू इन्फॉर्मेशन एक्ट से, इसे छूट मिली है। यानी, अगर किसी मामले के बारे में सीबीआई से कुछ जानना चाहते हैं, तो आप आरटीआई का यूज नहीं कर सकते। सीबीआई, पीएमओ के अंडर आती है, इसलिए इसकी इन्वेस्टिगेशन का सवालिया होना, देश के लोकतंत्र के लिए सही नहीं है। इसके स्वतंत्र होकर काम करने की वजह से ही, लोग इस पर भरोसा करते हैं। इसके कामकाज को निष्पक्ष और ट्रांसपेरेंट बनाया जाना चाहिए। कैग और इलेक्शन कमीशन जैसी दूसरी संस्थाओं की तरह, सीबीआई का अपना कोई लॉ नहीं है। अगर इसे एक वैधानिक स्टेटस मिल जाता है, तो इसका यह फायदा होगा कि सीबीआई भी, स्वतंत्र होकर अपने कानूनों के तहत काम कर पाएगी।