पुराने जमाने में आजीविका के लिए, चीजों का लेन-देन होता था! समय के साथ, यह तरीका बदला और आज वो मीडियम पैसा बन गया है! आजीविका का मतलब- रोटी, कपड़ा और मकान जैसी, जिंदगी की बुनियादी जरूरतों को पूरा करना है! यह सब खरीदने के लिए, पैसे की जरूरत है, और पैसों के लिए रोजगार की! लेकिन आज भारत में करोड़ों लोग, बेरोजगार हैं! दिसंबर 2022 की बात करें, तो देश में अब तक का हाईएस्ट अनएम्पलोयमेंट रेट था! लगभग 8.3%! आखिर, क्या है इस बेरोजगारी कड़वा सच? भारत की 140 करोड़ पोपूलेशन है और वर्कफोर्स 90 करोड़! वर्कफोर्स का मतलब- वो लोग हैं, जो काम करने के लिए कैपेबल हैं और वास्तव में किसी न किसी, काम में लगे हुए हैं! वहीं, इनकम का मतलब, सिर्फ कमाना नहीं है, आपकी सेविंग भी, इनडायरेक्टली आपकी इनकम है! उदाहरण के लिए हाउसवाइफ या हाउस मेकर, सेविंग का जरिया है! जैसे, घर से बाहर खाना खाना हो, पेमेंट करनी पड़ेगी, लेकिन घर पर ये कुकिंग चार्जेज नहीं देने पड़ते! हां, यह अलग बात है कि इन्हें वर्कफोर्स में कंसीडर नहीं किया जाता! जैसे जैसे भारत विकास की पटरी पर दौड़ रहा है, हमारी जरूरतें दिन ब दिन बढ़ने लगी हैं! बेरोजगारी आज का मुद्दा नहीं है, यह सालों से थी, लेकिन, आज यह पीक लेवल पर है! सरकार कुछ जाॅब निकालती है, तो उनके लिए लाखों-करोड़ों उम्मीदवार अप्लाई करते हैं! और तो और, एक चपरासी की नौकरी के लिए पीएचडी होल्डर, अप्लाई करने लगे हैं।
इसमें एक और इंटरेस्टिंग फैक्ट यह है कि इन जाॅब के लिए अप्लाई करने वाला हर कैंडिडेट, बेरोजगार नहीं था, वो ऑलरेडी कोई न कोई, प्राइवेट जॉब कर रहे थे! मतलब हमारे यंग इंडियन माइंडसेट में, गवर्नमेंट जाॅब का टैग गहरा असर कर चुका है! कैंडिडेट को 1 लाख की प्राइवेट जाॅब की जगह, 30 हजार की सरकारी नौकरी ज्यादा अच्छी लगती है! सरकारी और प्राइवेट सेक्टर में, यह तुलना कितनी सही है? दोनों सेक्टर में काम करेंगे, तभी सैलरी मिलती है और दोनों ही equally लोगों को रोजगार की ऑपरच्यूनिटी दे रहे हैं! युवाओं को समय की वैल्यू समझने की जरूरत है, एक तरफ गवर्नमेंट जॉब में सिलेक्शन के लिए युवाओं के 4 से 6 साल निकल जाते हैं, उसके बाद भी सिलेक्शन की कोई गारंटी नहीं! लेकिन वही टाइम अगर एक प्राइवेट जाॅब में दिया जाए, तो एक वेल सेटल्ड करियर हो सकता है! क्योंकि न तो यह पॉसिबल है कि हर किसी को गवर्नमेंट जाॅब मिले, और न ही यह संभव है कि हर कोई प्राइवेट job करे! प्राइवेट सेक्टर की जॉब रिक्रूटमेंट प्रोसेस में भी हर वेकेंट सीट फिल नहीं हो पाती है, कारण उन्हें स्किल्ड इम्पलोई नहीं मिल पाते! इसलिए इंडिया में बेरोजगारी को कम करने के लिए युवाओं को अपनी स्किल डेवलपमेंट की ओर भी ध्यान देना होगा! दूसरे देशों की स्किल्ड वर्कफोर्स से, इसकी अहमियत समझ सकता है! इसके लिए सरकार को, अपनी पॉलिसी, प्राइवेट सेक्टर और इन्वेस्टर्स के फेवर में बनानी चाहिए! क्योंकि प्राइवेट सेक्टर, जितना ज्यादा इन्वेस्ट करेगा, आम लोगों के लिए रोजगार के उतने ज्यादा अवसर पैदा होंगे! किसी भी आग्रेनाइजेशन, को कोई अकेला व्यक्ति नहीं चला सकता है! एक प्राइवेट फर्म में हजारों-लाखों कर्मचारी काम करते हैं, और इस सरकल में, उनके परिवार उस आॅग्रेनाइजेशन के साथ इंडायरेक्टली जुड़े होते हैं! और इसलिए किसी फर्म का बंद होना, सिर्फ व्यक्ति या परिवार को इफैक्ट नहीं करता, बल्कि इसका नेगेटिव असर उन हजारों कर्मचारियों के परिवारों पर भी पड़ता है!
भारत में बेरोजगारी को बढ़ाने में कोविड-19 का बहुत श्रेय है! फाइनांशियल लाॅस के चलते, कई बड़ी फर्में बंद हो गई, जिससे लोग बेरोजगार हो गए! इसलिए प्राइवेट सेक्टर का साथ देना, सरकार की जिम्मेदारी है, ताकि बेरोजगारी को मिटाया जा सके! देश एक परिवार की तरह है, और भारत सरकार इस 140 करोड़ लोगों के परिवार, की मुखिया है! इसलिए परिवार की समस्याओं को सुनना और उन्हें सुलझाना सरकार का काम है! देश में यूनिकाॅर्न कंपनीज बढ़ रही हैं, लेकिन बावजूद इसके देश में बेराजगारी कम नहीं हो रही! इसका कारण, इनकम में असमानता है! सरल शब्दों में कहें, तो भारत अमीर हो रहा है, लेकिन अमीरी और गरीबी का गैप बढ़ रहा है! सवाल यह है कि क्या बेरोजगारी गवर्नमेंट का फेलियर है? संविधान के आर्टिकल 21 के तहत आजीविका एक मौलिक अधिकार है! लेकिन आज, देश में कई मिलियन लोग नौकरी न मिलने से इतने तंग आ गए हैं कि अब उन्होंने नौकरी की तलाश करना ही, बंद कर दिया है! इसलिए, भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में, अपने देश की बेरोजगारी के लिए, उस देश की सरकार ही जिम्मेदार है! क्योंकि, देश चलाने का मतलब, सिर्फ शासन करना नहीं है, बल्कि देश की व्यवस्था और नागरिकों की गरिमा को बनाए रखना है।