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What is the real aim of Education This Post Design By The Revolution Deshbhakt Hindustani

What is the real aim of Education

हम चाहे, सीख कर अपना जीवन जीएं या फिर जीवन जी कर सीखें, लेकिन हमें सीखना तो पड़ेगा ही। शिक्षा और ज्ञान, ही हमारा आईना है। हम में से कुछ लोग अपनी जिंदगी जीते हैं और अपने या दूसरों के अनुभवों से सीखते हैं, या फिर, एजुकेशन के जरिए, प्रोपर ज्ञान हासिल करते हैं, लेकिन सीखने का यह प्रोसेस, हमेशा, हमारी लाइफ का सबसे इंपॉर्टेंट पार्ट है। ऐसा नहीं है कि एजुकेशन की वजह से, हमें सिर्फ फाइनेंशियल स्टेबिलिटी मिलती है, बल्कि सेल्फ कॉन्फिडेंट और अपने परिवार व समाज में सभ्य तरीके से रहना सिखाती है। एजुकेशन हमारे दिमाग को पॉलिश करती है, हमारे विचारों को नरिश करती है और दूसरों के लिए हमारे चरित्र और व्यवहार को अच्छा रखना सिखाती है। शिक्षा हमारे जीवन की वो बुनियाद है, जिस पर हमारा एक स्टेबल फ्यूचर बनता है। लेकिन सच्ची शिक्षा- दिमाग और दिल दोनों की ट्रेनिंग है। आज हिंसा, दूसरों के साथ गलत व्यवहार करना और नशे जैसी, तमाम बुराइयां हमारे समाज में हैं, और ये सब सिर्फ हम ही नहीं, बल्कि हमारे टीनेर्ज भी देख रहे हैं। क्रियोसिटी के चलते टीनेज में बच्चे बहुत जल्दी इन्फ्लूएंस होते हैं, ऐसे में एक डिग्री और एक्सीलेंस के सर्टिफिकेट के अलावा हमें अपने बच्चों को शिक्षा के अंतिम उद्देश्य को समझाने की कोशिश करनी चाहिए। अगर हम अपने बच्चों को समाज में एक अच्छा नागरिक, अच्छे दोस्त, माता-पिता और अच्छे colleague बनते देखना चाहते हैं, तो उन्हें ज्ञान और नैतिकता दोनों, देने की जरूरत है। यह काम सिर्फ एजुकेशनल इंस्टीट्यूट का नहीं है, इसमें परिवार और समाज का रोल भी अहम है। आखिरकार, बच्चे सबसे पहले अपने परिवार और समाज में ही उठने, बैठने से लेकर हर चीज सीखते हैं। इसका एक उदाहरण यह ले सकते हैं कि आप जिस भाषा में, अपने बच्चे के साथ बचपन से बात करते हैं, वो उसमें ही प्रोफिशिएंट हो जाता है। इसलिए संस्कारों और सभ्यता की नींव, घर से ही शुरू होती है।

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शिक्षित होना निस्संदेह आत्मविश्वासी होना और जीवन में सफल होना है। शिक्षा और सीखने की कोई उम्र नहीं है, जब मौका मिले, पढ़ना शुरू कर दें। किताबें अवेलेबल नहीं हैं, तो भूलें नहीं, कई लोगों ने किताबें उधार लेकर पढ़ीं और आज देश में उनका नाम, गर्व से लिया जाता है। इतना ही नहीं, शायद आपको थ्री इडियट मूवी का वो डायलॉग याद होगा, जब रणछोड़दास चांचड़ या आमीरखान, मिलीमीटर से कहता है कि स्कूल के लिए फीस थोड़ी न लगती है, यूनिफॉर्म लगती है। किसी भी स्कूल का यूनिफार्म खरीद और क्लास में जा के बैठ जा। हालांकि यह तरीका थोड़ा रिस्की है, लेकिन इसका मोरल, सिर्फ इतना है कि आप में पढ़ने का जुनून है, तो कोई भी बंदिश आपको नहीं रोक पाएगी। हर कोई शिक्षा पाने का हकदार है ''बचपन से लेकर, जब तक आप जीवित हैं, तब तक आपके पास चांस है, ज्ञान की इस ऑपरच्यूनिटी का लाभ उठाने का''। भारत डिजिटल शिक्षा और इनोवेशन की ओर बढ़ रहा है, लेकिन देश के गांवों में मिलने वाली एजुकेशन, शहरों की एजुकेशन की क्वालिटी में जो डिफरेंस है, हमें वो दूर करना होगा। इसके अलावा, हर नागरिक एजुकेटेड सिर्फ तब कहलाएगा, जब कोई इंस्टीट्यूशन उन्हें एक सर्टिफिकेट के साथ-साथ नैतिक इन्सान बना पाता है। हो सकता है कि एक उम्र के बाद, आपको स्कूल में पढ़े मैथ, साइंस या किसी भी सब्जेक्ट के किसी सवाल का जवाब भूल जाए, लेकिन उस बुनियादी दौर में सीखे एथिक्स हमें उम्र भर याद रहते हैं।

एजुकेशन, वो एक्ट है, जिसमें हम न सिर्फ दूसरों को सिखाते हैं, बल्कि दूसरों से भी नॉलेज रिसीव करते हैं। रियल एजुकेशन तब है, जब आप हर रोज, हर हफ्ते, हर महीने और हर साल लगातार कुछ नया सीखते हैं। और देर-सवेर, ही सही, हमें शिक्षा की अहमियत समझ आ ही जाती है कि यह कैसे, हमें, एक्सपोजर और एक पॉजिटिव अप्रोच में मदद करती है। भारत के 'Missile Man, डॉ. APJ Abdul Kalam जी ने कहा था, कि शिक्षा का उद्देश्य स्किल्स और प्रोफिशिएंसी के साथ अच्छा इंसान बनना है, और टीचर ही लोगों को एजुकेटेड व सिविलाइज्ड बना सकते हैं। जब भी हम स्कूल और एजुकेशन के बारे में सोचते हैं, तो हम सिर्फ स्कूल या कॉलेज की रेपोटेशन और बच्चे के कोर्स पर फोकस करते हैं, उस वक्त, मोरल वैल्यूज और एथिक्स का हमें ख्याल भी नहीं आता। इसमें कोई डाउट नहीं है कि एजुकेशन ही, एक सक्सेसफुल करियर का जरिया है। लेकिन इसका मतलब सिर्फ डिग्री पाना नहीं है, बल्कि यह ensure करना भी है कि, देश का यूथ, नैतिक मूल्यों को और अपने संस्कारों को समझकर, एक अच्छे समाज का निर्माण कर सके।