हर कोई दान करता है, लेकिन क्या आपको पता है कि सबसे बड़ा दानी, कौन है। एक बार, राजसभा चल रही थी। दरबारी से लेकर, राजमहल का हर विद्वान राजा को बोल रहा था कि- महाराज, आप ही सबसे बडे़ दानी हैं। लेकिन, सभा में बैठा एक सारथी बोल उठा- आपसे भी बड़ा, एक दानी और है। यह देखकर, राजा बोला- आज तक मैंने किसी को खाली हाथ नहीं जाने दिया, मुझसे बड़ा दानी कौन आ गया। सारथी ने कहा- समय आने पर आपको खुद पता चल जाएगा। फिर एक दिन, तेज बारिश हो रही थी। एक साधु, दरबार में आया और राजा से बोला- मुझे एक यज्ञ के लिए, चंदन की लकड़ी चाहिए।
राजा ने सिपाहियों को लकड़ी लाने का आदेश दिया। लेकिन वो खाली हाथ लौट आए, क्योंकि, न तो जंगल में सूखा चंदन मिला और न ही राजमहल के भंडार में। राजा ने हाथ जोड़कर साधु से कहा- मुझे माफ कर दीजिए, मैं आपकी मदद नहीं कर पाया। साधु लौटने ही लगा था, कि वो सारथी बोला- हे ब्रह्मण, इससे आगे भी, एक दानी राजा रहता है, वो अवश्य ही आपकी परेशानी दूर करेगा। साधू उस राजमहल के लिए निकल गया। यह देखकर, राजा ने सारथी को कहा, मुझे भी वहां ले चलो। तीनों वहां पहुंचे। साधु ने उस राजा से, वही सवाल किया। उस राजा ने भी अपने सिपाहियों को लकड़ी लाने का आदेश दिया। लेकिन बारिश की वजह से, सूखी लकड़ी नहीं मिली। तब राजा ने कहा- हमारे शयनकक्ष में, हमारा बिस्तर और उसकी छत, चंदन की बनी है, जाओ सिपाहियों, उसे तोड़ो और इन्हें जितनी चंदन की लकड़ी चाहिए, लाकर दो।
सिपाहियों ने लकड़ी लाकर, साधू को दी। और वो वहां से चला गया। तब, उस सारथी ने, अपने राजा को कहा- महाराज, वैसे तो, आपके महल के भी, दरवाजे और खिड़कियां, भी चंदन के ही बने थे। अब वो राजा, दान का मतलब समझ चुका था। लोग अक्सर, वो चीजें दान में देते हैं, जो उनके काम की नहीं। दान वो नहीं, जो आप सहजता से दे सकें। कोई चीज, आपके लिए जरूरी है, लेकिन किसी और को भी चाहिए। अगर उस वक्त, आप उस चीज को दान कर पाएं, वही सबसे बड़ा दान होगा।