काम के सिलसिले में, अक्सर हमें, दूसरे शहर या किसी नई जगह पर जाना पड़ता है। असल में, ये अच्छा भी है, डेली रूटीन में, थोड़ा बदलाव आ जाता है और यात्रा के बाद, नई एनर्जी के साथ वापस आना, प्रोडक्टिविटी को बूस्ट करता है। आनंद के पापा भी, मीटिंग के लिए किसी दूसरे शहर गए थे। लौटते वक्त, उन्हें रास्ते में, चाय की एक छोटी टपरी दिखी। उन्होंने सोचा- चाय पी लेता हूं। पिछले 5 घंटे से गाड़ी चला रहा हूं, थोड़ा आराम मिल जाएगा। वो वहां रुके- दुकानदार, से चाय ली और बैंच पर बैठकर, चाय पीने लगे। वहां पास में, 3 आदमी पत्थर काट रहे थे। थोड़ी वीरान जगह थी, तो आनंद के पापा ने, उनमें से एक को पूछा- तुम, ये क्या कर रहे हो। उसने जवाब दिया- तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा, पत्थर काट रहा हूं, क्या तुम अंधे हो?
उससे कुछ दूरी पर, काम कर रहे दूसरे आदमी से भी, उन्होंने पूछा- तुम क्या कर रहे। उसने जवाब दिया- अपना पेट भरने के लिए काम कर रहा हूं। मुझे जो कहा जाता है, मैं, वही काम कर देता हूं। आनंद के पापा ने, तीसरे आदमी से भी यही पूछा- वो आदमी, खुशी से बोला- मैं यहा सुंदर मंदिर बना रहा हूं। ये सुनकर, आनंद के पापा, मुस्कुराए और सोचने लगे, तीनों एक ही चीज कर रहे हैं, लेकिन तीनों का अनुभव बिलकुल अलग हैं। अब आपको तय करना है कि इन तीनों तरीकों में से कौन सा आपको अपनाना है। अपने शरीर, मन, अपनी ऊर्जा और कैमिस्ट्री को मैनेज किए बिना, लाइफ मीनिंगफुल नहीं बन सकती।