उपल्ली गांव में रेलवे चौकीदार सरदार तेहाल सिंह के घर में 26 दिसंबर 1899 को उस जांबाज, का जन्म हुआ, जो 1919 में अमृतसर के जलियांवाला हत्याकांड का बदला लेने के लिए लंदन पहुंच गया। 20 साल के उस बच्चे ने, धरती माता को साक्षी मानकर, इस नरसंहार में मारे गए मासूम लोगों की मौत का बदला लेने का वचन लिया। और 13 मार्च 1940 को इस घटना के मास्टर माइंड Michael O’Dwyer को गोली मारकर, अपना संकल्प पूरा किया। यह कोई और नहीं, भारत के Shaheed-i-Azam Sardar Udham Singh जी थे। आज उनकी जयंती पर, इतिहास को दोबारा याद कर, पूरा भारत उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है। आज, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा में बॉक्सिंग डे भी सेलिब्रेट किया जा रहा है, लेकिन इस दिन का- opponents को पटखनी देने यानी मुक्केबाजी से कोई ताल्लुक नहीं है। तो फिर किसलिए मनाया जाता है यह दिन, आइए जानते हैं। पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम का ये शेर, अपने पिता की मौत के बाद अमृतसर में 1918 तक केंद्रीय खालसा अनाथालय में रहा। 1919 में जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ। इसे देखकर अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों को एक करने के लिए उधम सिंह 1924 में गदर पार्टी में शामिल हुए। 1927 में, उन्हें अवैध हथियार रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया और 5 साल की जेल की सजा सुनाई गई।
1931 में जेल से रिहा होने के बाद, उधम सिंह डायर की खोज में लग गए और साल 1934 में लंदन पहुंच गए। आखिरकार जब 13 मार्च, 1940 में लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ ड्वायर लंदन के कैक्सटन हॉल में भाषण दे रहा थे, तब उधम सिंह जी ने उसकी हत्या कर दी। अक्सर सुनने में आता है कि उधम सिंह जी ने जलियांवाला बाग हत्याकांड को अंजाम देने वाले डायर को गोली नहीं मारी थी, बल्कि उनके हाथ से कोई और डायर मारा गया था। लेकिन हुआ यह था कि रॉलेट एक्ट के तहत कांग्रेस के सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को अंग्रेजों द्वारा अरेस्ट करने के बाद पंजाब के अमृतसर में हजारों की तादाद में लोग इकट्ठा हुए। जिसे देखते हुए अंग्रेजों के ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने अपनी फौज के साथ उन मासूम लोगों पर गोलियां चलाईं, जिसमें उस समय पंजाब के गवर्नर रहे Michael O'Dwyer ने उसका साथ दिया था। साल 1927 में बीमारी की वजह से रेजीनॉल्ड डायर पहले ही मर चुका था, लेकिन माइकल डायर, ब्रिटेन में अब भी जिंदा था, जिसे अंतत: 1940 में उधम सिंह ने मौत के घाट उतार दिया। डायर की हत्या के आरोप में 4 जून 1940 को सेंट्रल क्रिमिनल कोर्ट, ओल्ड बेली में उधम सिंह पर मुकदमा शुरू हुआ। 31 जुलाई, 1940 को उन्हें फांसी पर लटका दिया गया और पेंटनविले जेल में दफना दिया गया। हालांकि साल 1974 में उनके अवशेषों को भारत वापस लाया गया। जलियांवाला बाग में एक सीलबंद कलश में उनकी अस्थियां आज भी मौजूद हैं। भारत माता के लिए क्रांतिकारी उधम सिंह जी की, श्रद्धा, प्यार और सद्भाव एक अमर उदाहरण रहेगा।
saint stephen को समर्पित 26 दिसंबर का यह दिन करुणा और धर्मार्थ के काम करने का दिन है। अगर आपके घर में भी कोई डोमेस्टिक सर्वेंट आपके लिए काम करता है, तो आज आपके पास, उनके लिए कुछ बड़ा करने का मौका है। क्योंकि आज बॉक्सिंग डे के अवसर पर आप उन्हें, एक बॉक्स में पैक करके उन्हें खुशियां बांट सकते हैं। उनके काम और खासकर उनकी वफादारी की एवज में उन्हें लौटाने का मौका न गवाएं, क्योंकि उनके बिना आप एक आसान और आरामदायक जिंदगी नहीं जी सकते। वास्तव में यह बॉक्सिंग डे- बॉक्स में उपहार पैक करके दूसरों को सरप्राइज देने और उनके लिए कुछ खास करने का दिन है। लेकिन विडंबना यह है कि आधुनिक समय में, बॉक्सिंग डे सिर्फ खरीदारी और खेल का पर्याय बन गया है। खुद पर हुए जुल्म के लिए आवाज उठाना एक आम बात है। जलियांवाला नरसंहार में उधम सिंह के परिवार का कोई सदस्य नहीं था। लेकिन उधम सिंह के मन में समाज और देश के लिए इतना प्यार था, कि उन्होंने जलियांवाला का बदला लेकर मानवता की मिसाल को पेश किया था। और इसलिए उनका यह रेवोल्यूशनरी स्टेप, हमेशा पूजनीय रहेगा। द रेवोल्यूशन- देशभक्त हिंदुस्तानी, उधम सिंह जी के अंतिम शब्दों को याद करता है, जब उन्होंने कहा था कि ''Revolutionary कहलाने की भी शर्तें हैं। आप पक्षपाती, सांप्रदायिक और जातिवादी नहीं हो सकते। रेवोल्यूशन में क्लास नहीं होती। सबसे जरूर चीज है- समानता। हर इंसान को बराबर समझना और मानवता में विश्वास होना चाहिए।'' इस रेवोल्यूशन ने उस वक्त भारत की गाथा को बदला था, और भविष्य के भारत में बदलाव के लिए भी, आज भी एक ऐसे ही रेवोल्यूशन की जरूरत है।