क्या सच में दुनिया वैसी है, जैसा हम सोचते हैं। शाम का वक्त था। आनंद, कंचन और उनके माता-पिता, चाय पी रहे थे और आपस में बातें कर रहे थे। आनंद के पिता उन्हें कहा- जब पहली बार, मैं इस शहर में आया, तो मैं इस अजनबी शहर को देखकर, बहुत परेशान था। इसलिए मैं, एक संत के पास गया और उनसे कहा- मैं इस शहर में नया हूं, क्या यहां के लोग मुझे पसंद करेंगे। क्या यहां के लोग, अच्छे हैं? उस संत ने मुझे पूछा: तुम जिस गांव से आए हो, वहां के लोग कैसे थे? मैंने कहा- लालची, और स्वार्थी।
संत ने कहा, बिल्कुल उसी तरह के लोग, इस शहर में हैं। मैं, बहुत डर गया था। लेकिन तभी, वहां एक और आदमी आया और उसने भी, संत से यही प्रश्न किया। संत ने उसे भी यही पूछा- कि तुम जिस शहर से आए हो, वहां के लोग कैसे थे? लेकिन उस आदमी ने कहा- बहुत अच्छे स्वभाव के थे, हमेशा एक-दूसरे की मदद करते थे। संत ने कहा- ठीक उसी तरह के लोग यहां हैं। उनकी ये बातें सुनकर, मेरी आंखे खुल गईं। आप, जो कुछ, दुनिया में देखते हैं, दुनिया भी, ठीक वही, आप में देखेगी। नेगेटिव पहलुओं को नजरअंदाज करके, अच्छाई, उम्मीद और प्यार देखें और आप देखेंगे कि- दुनिया भी, आप में वही देखेगी।