कंचन के दादा-दादी गांव में रहते हैं। एक दिन वो, शहर में रहने आए। उम्र के इस पड़ाव पर, वो काफी कमजोर हो चुके थे, उनके हाथ कांपते थे और दिखाई भी, कम देता था। शाम हुई, डायनिंग टेबल पर, सब लोग खाना खाने लगे। लेकिन उनके दादा-दादी को खाने में बड़ी दिक्कत हुई। कभी खाना, उनकी चम्मच से निकल कर फर्श पे बिखर जाता, तो कभी हाँथ से दूध या पानी छलक कर मेजपोश पर गिर जाता। ये देखकर, बहु-बेटे को अनकंफरटेबल लगता था। इसलिए मिसेज त्रिपाठी अब से, उन्हें कमरे में ही खाना देने लगी। उनकी जरूरत की सभी चीजें, कमरे में रख दीं, जिससे उनका सारा दिन कमरे में अकेले निकल जाता।
ये सब देखकर, एक दिन आनंद ने अपने पेरेंट्स को पूछा- दादा-दादी यहां हमारे साथ रहने आए हैं। लेकिन वो न तो हमारे साथ डिनर करते हैं, न खेलते हैं और न ही टीवी देखते हैं? मिस्टर त्रिपाठी ने जवाब दिया- वो बूढे़ हो गए हैं, इसलिए कमरे में ही ठीक हैं। इस पर आनंद कहता है- क्या, जब मैं बड़ा हो जाऊंगा, तो आप लोग भी, अकेले कमरे में खाना खाएंगे और अकेले रहेंगे। ये संस्कारों की जो विरासत है, वो बच्चों को घर से ही मिलती है। वे वही सीखते हैं, जो वे घर पर देखते हैं।