The mission of The Revolution is to enlarge and enrich our platforms and portfolios for Society's Upliftment & Economic Development of individuals.
Sita Navami This Post Design By The Revolution Deshbhakt Hindustani

Sita Navami

बात त्रेतायुग की है, जब मिथिला के राजा- जनक हुआ करते थे। वहां, जब सूखा पड़ा, तो एक ऋषि के कहने पर राजा जनक ने यज्ञ करवाया और खेत जोतने लगे। उस दौरान, जमीन में, सोने के बक्से में, उन्हें एक प्यारी कन्या मिली, जिसे उन्होंने अपनी पुत्री मान लिया। उसका, नाम सीता रखा। उसी दिन की याद में, आज हम सीता नवमी मना रहे हैं। राजा जनक, की नगरी में, बड़े लाड-प्यार से पली, थी सीता। हर किसी का सम्मान करती थी। माता पिता सहित, पूरे परिवार का ख्याल रखना, प्रेम और सद्भाव से पेश आना, मानों, उसके जन्मजात गुण थे। माता-पिता के संस्कारों और उनकी मर्यादा का साथ, ताउम्र नहीं छोड़ा। एक दिन, राजा जनक के राज्य में, अयोध्या के एक बहादुर और विनम्र राजकुमार, आते हैं। जिन्हें, इस राजकुमारी से, प्रेम हो जाता है। और इस तरह, भगवान श्रीराम और माता सीता, विवाह बंधन में बंध जाते हैं, और मिथिला देश की ये राजकुमारी, अयोध्या के राजमहलों में पहुंच जाती है।

Sita Navami This Post Design By The Revolution Deshbhakt Hindustani
Sita Navami This Post Design By The Revolution Deshbhakt Hindustani

लेकिन यहीं से शुरू हो जाता है- अग्नि परीक्षाओं का वो दौर, जहां हर बार, सीता को सिर्फ दूसरों की नहीं, बल्कि खुद की उम्मीदों पर भी खरा उतरना था। जब भगवान राम को वनवास मिला, तो सीता राजमहल का सुख भी चुन सकती थी, लेकिन अपने पतिव्रत को निभाते हुए, वनवास पर चली गईं। लेकिन उनके जीवन का संघर्ष यहीं, नहीं रुका। जंगल में दुष्ट रावण ने अपहरण कर लिया। लेकिन अपने आप और राम पर उन्हें इतना विश्वास था, कि इस दुखद और डरावने पलों में, भी वो डगमगाई नहीं। जिस रावण से देवता भी डरते थे, माता सीता उसी रावण का, तिरस्कार करती थी, वो भी उसी के सामने, उसी की लंका में। लंका से आजाद होकर, अयोध्या पहुंची, तो शायद उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि जिंदगी फिर इम्तीहान लेगी। पति पर लांछन ना लगे, प्रजा उन्हें घृणा और अनादर की नजरों से न देखे, उन पर सवाल ना उठाए, इसलिए अपने पति के लिए, पति से ही, दूर हो गईं।

अकेले बच्चों की परवरिश की। विवाह के वक्त लिए 7 वचनों के प्रति उनकी कमिटमेंट, जिंदगी के हर पड़ाव पर दिखती है, जब उन्होंने राम और उनके परिवार के लिए, खुद को भी त्याग दिया। राजमहल की इस कन्या ने, जिंदगीभर संघर्ष देखा, पति का वियोग, अपनों के लिए कई बलिदान करने पड़े, हर कदम पर अपने प्रेम अपनी प्रवित्रता की परीक्षाएं देनी पड़ी। लेकिन उन्होंने कभी शिकायत नहीं की। बलिदान, त्याग, जो भी किया, उसे कभी रिकोग्नाइज करने की मांग नहीं की। शायद इसी त्याग और समर्पण की वजह से सीता, “माता सीता” कहलाई। हम चाहते हैं कि समाज में हमारा यश हो। जब हम ना रहें, तो दुनिया हमें याद करे। लेकिन क्या हम में ऐसा कुछ है, जो सीता में था। वो त्याग, संवेदनशीलता, संस्कार, उदारता और शक्ति। शायद सीता के समर्पण, की वजह से ही राम, “पुरुषोत्तम राम” बन पाए।