'आजादी ए इंसा के वहां फूल खिलेंगे, भगत सिंह, जिस जगह पे तेरा खून गिरा है।' भगत सिंह के बारे में, यह शब्द एक पाकिस्तानी शायर ने कहे थे। भारत का यह जांबाज क्रांतिकारी, महज 23 साल का था, जब अंग्रेजों ने उन्हें, फांसी पर लटका दिया था! पंजाब के बंगा गाँव में, साल 1907, में 28 सितंबर को, भारत के वीर क्रांतिकारी- भगत सिंह का जन्म हुआ था। किसे पता था कि यह बच्चा बड़ा होकर एक हीरो बनेगा और भारत की आजादी की लड़ाई का प्रतीक बनेगा। जब, वो सिर्फ 12 साल के थे, तब उनके गांव के एक निहत्थे बुजुर्ग को, बहुत सारे ब्रिटिश सैनिकों ने पीटा। यह देखकर भगत सिंह को बहुत दुख हुआ। तब उन्होंने महसूस किया कि भारत के लोगों पर अत्याचार किया जा रहा है और इसके लिए कुछ करने की जरूरत है।
जैसे-जैसे भगत सिंह बड़े हुए, वो ब्रिटिश सरकार के खिलाफ तबाही की योजना बनाने लगे। साल 1929 में, भगत सिंह और उनके साथियों ने, दिल्ली में सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली पर बमबारी की! उन्होंने स्पष्ट कहा था कि उस बमबारी का मकसद सिर्फ बहरों को सुनाना था। इसके लिए उन पर हत्या का मुकदमा चलाया गया और जेल में कैद कर लिया गया। लेकिन कैद होने के बावजूद, वो आजाद थे। वहां भी, आन्दोलन कर दिया करते थे। जेल में, खाने पीने की अच्छी व्यवस्था नहीं थी, एक कमरे में 10 कैदियों को रखते थे, बर्तन साफ नहीं होते थे, रौशनी नहीं थी, खिड़की नहीं थी और इस सब के खिलाफ, उन्होंने गोरों की नाक में दम कर दिया था। अंग्रेजों ने घबरा कर, भगत सिंह को, अलग सेल में डाल दिया।
फिर भी, भगत सिंह और उसके कुछ साथी, अन्न जल त्याग कर, अनशन पर बैठ गए। शुरू में, अंग्रेजों ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। और अनशन को 64 दिन बीत गए। भूखे रहने की वजह से क्रान्तिकारी यतीन्द्र दास शहीद हो गए। लेकिन भगत सिंह अब भी इन्कलाब जिंदाबाद के नारे लगाते रहे। आख़िरकार अंग्रेजो को घुटने टेकने पड़े, और भारतीय कैदियों को सहूलियतें देने का निर्णय किया गया। भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु, को 24 मार्च को फांसी दी जानी थी, लेकिन जनता के विरोध को देखते हुए, ब्रिटिश सरकार ने उससे 12 घंटे पहले ही, 23 मार्च की शाम 7 बजे उन्हें फांसी दे दी। कहते है कि जब भगत सिंह से उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई, तो उस वक्त वो लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। इसलिए उन्होंने इसे पूरा करने का समय मांगा। लेकिन जेल के अधिकारियों ने चले को कहा, तो उन्होंने किताब को हवा में उछाला और कहा – ’’ठीक है, अब चलो।’’ भगत सिंह ने कहा था-”जिंदगी तो सिर्फ अपने कंधों पर जी जाती है, दूसरों के कंधों पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं।’’ उनकी जिंदगी से लेकर, उनकी शहादत, न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया में एक मिसाल है। आज, भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की पुण्यतिथि पर, द रेवोल्यूशन-देशभक्त हिंदुस्तानी, उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि देता है।