पोथि पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोए ढाई आखर प्रेम के, पढ़ा सो पंडित होए कबीर जी कहते हैं कि किताबें पढ़ कर दुनिया में कोई भी ज्ञानी नहीं बना है। बल्कि जो प्रेम को जान गया, वही दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञानी है। 15वीं शताब्दी के मध्य, लगभग 1398 और 1440 के बीच का समय था, जब उत्तर प्रदेश के, काशी में उनका जन्म हुआ था। लेकिन उनके जन्म से लेकर, पूरी जिंदगी को लेकर, लोगों की अलग-अलग राय है। कबीर जी की शिक्षा की बात करें, तो उन्होंने कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली। बुनाई करते थे, लेकिन उन्हें इसका भी कोई प्रशिक्षण नहीं मिला था। कबीर जी एक-रहस्यवादी कवि थे, और उनका खुद का जीवन भी, रहस्य से कम नहीं था।
एक समय आया, जब आध्यात्म की खोज के लिए, वो गुरु रामानंद के शिष्य बन गए, जिनसे उन्हें 'राम' नाम की दीक्षा मिली। अपनी कविताओं में, कबीर जी ने, खुद को हमेशा एक जुलाहा कहा है। उन्होंने कभी, न तो खुद को हिंदु बताया और न ही मुस्लिम। हिंदुओं के लिए वो, Ram भक्त हैं, और मुसलमान उन्हें सूफी मानते हैं। वो हमेशा से ही, जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव के खिलाफ थे। संत कबीर जी के- 500 से ज्यादा छंद, सिखों के पवित्र ग्रंथ- गुरु ग्रंथ साहिब जी में संकलित हैं। कबीर जी का काव्य, हमारी रोजमर्रा की जिंदगी से गहराई से जुडा है। उनकी कही गई बातें, आज भी अंधेरे में मशाल की तरह हैं। भक्ति और ईश्वर में उनका इतना विश्वास था, कि वो हर परिस्थिति को अपने प्रभु के भरोसे छोड़ दिया करते थे। राजाओं, आम लोगों और
यहां तक कि एक वैश्या ने भी उनकी परीक्षा लेने के लिए, उन पर इलजाम लगाए थे। लेकिन अपने प्रभु प्रेम और निष्ठा की वजह से, वो कभी डगमगाए ही नहीं। क्या कबीर जी की तरह, आज हम भी, अपने भगवान पर विश्वास करते हैं। ईश्वर ही नहीं, खुद पर या अपनों पर भी, क्या हमें इतना विश्वास है? हिंदू कैलेंडर के अनुसार जनवरी 1518, माघ शुक्ल एकादशी में, मगहर में, कबीर जी, पंचतत्व में विलीन हो गए। द रेवोल्यूशन देशभक्त हिंदुस्तानी के साथ मिलकर, आइए इस कबीर जी जयंती पर, उनके विचारों को अपनाकर, नया भारत बनाएं, जहां प्रेम, स्नेह और विश्वास हो और हर कोई अपना हो।