The mission of The Revolution is to enlarge and enrich our platforms and portfolios for Society's Upliftment & Economic Development of individuals.
Plastic, Environment and Health This Post Design By The Revolution Deshbhakt Hindustani

Plastic, Environment and Health

साल 1869 में John Wesley Hyatt ने पहला प्लास्टिक पॉलिमर इन्वेंट किया था, हालांकि पॉलिमर युग की शुरुआत साल 1907 से मानी जाती है, जब बैल्जियम कैमिस्ट- लियो बेकलैंड ने दुनिया की पहली प्लास्टिक यानी बैकेलाइट का आविष्कार किया, जो पूरी तरह से एक सिंथेटिक प्लास्टिक थी, इसमें कोई natural molecules नहीं थे। एक प्लास्टिक जिसका उपयोग बालों की कंघी से लेकर मूवी फिल्म तक, सभी में किया जाता था। देखते ही देखते 20वीं सदी में प्लास्टिक प्रोडक्टशन में एक क्रांति देखी गई, पुरम कैमरा और जीपीओ टेलीफोन उस समय के रेवोल्यूशनरी प्रोडक्शन थे। ट्रेड एसोसिएशन प्लास्टिक्स यूरोप की रिपोर्ट की बात करें, तो साल 1950 में दुनिया भर में प्रति वर्ष प्लास्टिक प्रोडक्शन लगभग 1.5 मिलियन मीट्रिक टन थी, जो साल 2018 में 359 मिलियन मीट्रिक टन हो गई। प्लास्टिक कचरे की समस्या का सबसे बड़ा और जीवंत सिंबल- पैसिफिक गारबेज पैच है, जिसे अक्सर प्रशांत महासागर में तैरते हुए टेक्सास के आकार के प्लास्टिक कचरा कहा जाता है। प्रकृति में हजारों टाइप की पॉलिमर मौजूद है। दुनिया में सबसे ज्यादा मात्रा में natural polymer- सेल्यूलोज पाया जाता है, जो पेड़ों में होता है। इतना ही नहीं, हमारे शरीर को बनाने वाले प्रोटीन पॉलिमर हैं, जिसमें डीएनए शामिल है। वर्तमान में प्लास्टिक की समस्या इतनी बढ़ गई है कि रिसर्च शो करती हैं कि इस प्लैनेट पर एक बच्चा, प्री पॉल्यूटेड पैदा होता है। उसके शरीर में सैकड़ों-हजारों कैमिकल पाए जाते हैं।

Plastic, Environment and Health This Post Design By The Revolution Deshbhakt Hindustani
Plastic, Environment and Health This Post Design By The Revolution Deshbhakt Hindustani

रिसर्च बताती है कि plastic additives से बांझपन, मोटापा, मधुमेह, प्रोस्टेट, कैंसर और neuro developmental disorders जैसी बीमारियां हो रही हैं। हम प्लास्टिक से घिरे हुए हैं। हमारे फर्नीचर, से लेकर कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स और फूड पैकेजिंग इसी से बने हैं। अब से काफी समय पहले कागज, कांच और कपास जैसे प्रोडक्ट्स बनाने के लिए Natural material यूज किया जाता था, लेकिन आज हमने इसे प्लास्टिक से रिप्लेस कर दिया है। दूसरा विश्व युद्ध, प्लास्टिक इंडस्ट्री के विस्तार का कारण बना। साल 1935 में वैलेस कैरोथर्स ने सिंथेटिक रेशम के रूप में नायलॉन का आविष्कार किया था, जिसका सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान पैराशूट, रस्सियों, बॉडी आर्मर, हेलमेट लाइनर्स जैसी कई चीजें बनाने के लिए किया गया। उस वक्त अमेरिका में प्लास्टिक प्रोडक्शन 300% बढ़ गई। प्रति व्यक्ति के हिसाब से, सबसे ज्यादा प्लास्टिक, हाई इनकम वाली कंट्रीज पैदा करती हैं, लेकिन उनके पास effective waste management सिस्टम है। और इसिलिए, सागर में जितना कचरा है, वो low- और -middle income वाले देशों से आता है। और तो और, महासागरों में कुल प्लास्टिक कचरे का लगभग 20% समुद्री स्रोतों से आता है, और बाकी 80% भूमि से आता है। 80 से ज्यादा देशों में सिंगल यूज प्लास्टिक बैग पर पूर्ण या आंशिक प्रतिबंध है। हालांकि, भारत में 2 दिसंबर को राष्ट्रीय प्रदूषण निवारण दिवस भी मनाया जाता है।

भारत में प्लास्टिक की समस्या तो है ही, लेकिन भारत में माइक्रो, स्मॉल और मध्यम स्तर की, हजारों प्लास्टिक इंडस्ट्री हैं। ये उद्योग देश की अर्थव्यवस्था में 3.5 लाख करोड़ रुपए का योगदान करते हैं। इतना ही नहीं, 50,000 से ज्यादा लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी पैदा करते हैं। और तो और, भारत से लगभग 35 हजार करोड़ रुपए का प्लास्टिक निर्यात किया जाता है।" देश की 60% प्लास्टिक रिसाइकिल हो रही है, जो कि विकसित देशों की तुलना में ज्यादा है। साल 2027 तक, प्लास्टिक इंडस्ट्री का वार्षिक कारोबार 10 लाख करोड़ होने की उम्मीद है। देश की इकॉनोमी में प्लास्टिक इंडस्ट्रीज की बहुत अहमियत है, इसलिए सरकार को, कंपनियों और आम जनता से सिंगल यूज प्लास्टिक बैन को सख्ती से लागू करना होगा। ऐसी आर्थिक ग्रोथ का क्या फायदा, जिसकी वजह से हमारा हेल्थकेयर एक्सपेंडिचर बढ़ रहा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च 1,815 रुपये है, जबकि हर व्यक्ति अपने जेब खर्च में से औसत 2,155 रुपए हेल्थकेयर पर खर्च करता है। इसलिए प्लास्टिक इंडस्ट्री की ग्रोथ सस्टेनेबल तरीके से होनी चाहिए। बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक प्रोडक्शन को प्रोत्सोहित करना चाहिए, और सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन को, लागों से फॉलो करवाना चाहिए। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि साल 2025 तक 11 अरब मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा हमारे एनवायरनमेंट में जमा हो जाएगा। और तो और, आप जो कुछ भी खाते या पीते हैं, उसमें भी माइक्रो प्लास्टिक हैं।" पीने के पानी से लेकर बीयर, फलों, टेबल सॉल्ट और कपड़ों तक, हर चीज में माइक्रोप्लास्टिक है। माइक्रोप्लास्टिक से लेकर, हर शहर में दिखने वाले कचरे के पहाड़ों को कैसे संभालना है, इस पर ध्यान देने की जरूरत है, सरकार से लेकर, हर नागरिक को, क्योंकि अब यह प्लास्टिक सिर्फ ओशियन में नहीं, हमारे शरीर में भी पहुंच गई है।