क्रांतिकारी रासबिहारी बोस ने 40,000 सैनिक इकट्ठा किए और उन्हें सुभाष चंद्र बोस जी को सौंप दिया था। इस आजाद हिंद फौज को नेताजी ने, भारतीय राष्ट्रीय सेना का नाम दिया। इतना ही नहीं, इस नायक ने, आजादी से पहले ही, 21 अक्तूबर, 1943 को "आजाद हिंद सरकार" नाम से देश की सरकार भी घोषित कर दी थी। और जब, भारतीय राष्ट्रीय सेना ने, अंडमान और निकोबार द्वीप को अंग्रेजों से आजाद करवाया, तो इस सेना के मास्टरमाइंड नेताजी ने, उनका नाम भी बदलकर स्वराज और शहीद द्वीप रख दिया दिया था। आज इसी जज्बे की याद में पूरा भारत पराक्रम दिवस मना रहा है। भारत के कई वीर जवानों ने, देश के सुनहरे भविष्य की इबारत लिखी है, उनमें से एक स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस हैं। सुभाष चंद्र बोस जी का जन्म 1897 में उड़ीसा के कटक में बंगाली परिवार में हुआ था और आज उनकी 126वीं जयंती है। नेता जी के 14 भाई-बहन थे और उनके पिता जानकी नाथ बोस, और माँ प्रभादेवी थीं। नेता जी ने स्कूल में मैट्रिक की परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल किया था। उच्च शिक्षा के लिए, उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के तहत स्कॉटिश चर्च कॉलेज में दर्शनशास्त्र में बीए किया। साल 1919 में इंडियन सिविल सर्विसेज की परीक्षा में उन्हें चौथा रैंक मिला था। ब्रिटिश सरकार की सेवा करने की, उनकी इच्छा नहीं थी, इसलिए उन्होंने 1921 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
युवाओं की प्रेरणा नेता जी, 41 साल की उम्र में 1938 में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे। नेताजी ने भारतीय युवाओं में देशभक्ति की लौ जगाई और उनके भीतर राष्ट्र प्रेम और बलिदान का भाव जगाया। 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा', उनका यह नारा, युवाओं के लिए इंकलाबी नारा था। देश की आजादी की लड़ाई के लिए, विदेशी जमीन पर, एक सेना तैयार करने वाला यह जज्बा, सलाम के योग्य है। आजादी की लड़ाई के दौरान, एक आंदोलन देश के अंदर चल रहा था और दूसरा देश के बाहर- सिंगापुर में। देश के भीतर, आंदोलन का नेतृत्व महात्मा गांधी जी कर रहे थे और देश के बाहर आंदोलन का नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस कर रहे थे। सुभाष चंद्र बोस ने, यूरोप में स्वतंत्र भारत केंद्र, आजाद हिंद फौज, गुप्त भारतीय रेडियों केंद्र को संगठित किया। बताया जाता है कि उन्हें आखिरी बार 1943 की शुरुआत में जर्मनी में कील नहर के पास जमीन पर देखा गया था। दुश्मन के इलाकों को पार करते हुए, उन्होंने हजारों मील की दूरी तय करते हुए पानी के भीतर सबसे खतरनाक यात्रा की थी। वह अटलांटिक, मध्य पूर्व, मेडागास्कर और हिंद महासागर में था। उन्होंने एक जापानी पनडुब्बी तक पहुँचने के लिए एक रबर की डिंगी में 400 मील की यात्रा की, जो उन्हें टोक्यो ले गई।
‘जय हिंद’ नारा सुभाष चंद्र बोस ने दिया था। 21 अक्तूबर 1943 को आजादी के इतिहास में एक स्वर्णिम दिन भी माना जाता है, क्योंकि इस दिन सिंगापुर में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार की घोषणा की थी। सिंगापुर में महिलाओं के लिए झांसी की रानी रेजिमेंट की भी शुरूआत की गई। इस दल की संचालिका लक्ष्मी सहगल थी। लक्ष्मी सहगल पेशे से डॉक्टर थी। बाद के वर्षों में वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महिला मोर्चे व अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला महिला संघ की सदस्य रही हैं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन किसी फिल्मी कहानी की तरह रहा है, तो उनका निधन भी रहस्यमयी था। माना जाता था कि ताइवान के आसपास, जापानी विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद उनकी मृत्यु थर्ड-डिग्री बर्न से हुई थी। लेकिन उनका शरीर कभी बरामद नहीं हुआ। भारत सरकार ने मामले की जांच करने और सच्चाई सामने लाने के लिए कई समितियों का गठन किया। मई 1956 में, शाह नवाज़ समिति ने इस बात का पता लगाने के लिए जापान का दौरा किया। इसमें ताइवान सरकार की मदद नहीं ली गई। 17 मई, 2006 को संसद में पेश किए गए न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था, "बोस विमान दुर्घटना में नहीं मरे थे और रेंकोजी मंदिर में अस्थियां उनकी नहीं हैं"। हालांकि, निष्कर्षों को भारत सरकार द्वारा खारिज कर दिया गया था। सुभाष चंद्र बोस जी कहा करते थे कि उनके विचारों के पीछे भगवद गीता का बहुत बड़ा श्रेय है। नेता जी ने कहा था कि देश नागरिकों से बनता है और देश का भविष्य देशवासियों के कर्म पर निर्भर करता है। द रेवोल्यूशन- देशभक्त हिंदुस्तानी की ओर से आप सभी को पराक्रम दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। आइए नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी के विचारों को अपनाकर, इस अमर क्रांतिकारी को सच्ची श्रद्धांजलि दें। जय हिंद!