1 अप्रैल, 1936 में, ब्रिटिश भारत का एक अलग प्रांत बना- उड़ीसा। इसी दिन की याद में, आज हम, उड़ीसा दिवस मना रहे हैं। अब से हजारों साल पहले, उड़ीसा को कलिंग कहा जाता था। यह वही जगह है, जहां खून-खराबे को देखकर, राजा अशोक ने मन बना लिया था, कि वो फिर कभी युद्ध नहीं करेगा। हमारे राष्ट्रीय गीत- ”जन गण मन” में, जो उत्कल शब्द आता है, वो इसी उड़ीसा राज्य के लिए यूज हुआ है। मैं, आपको बताना चाहूंगा, कि भारत के जो 4 धाम हैं, उनमें से एक जगन्नाथ पुरी, उड़ीसा में है। एक ऐसा मंदिर, जिसमें दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है।
जगन्नाथ ही नहीं, उड़ीसा का कोणार्क सूर्य मंदिर भी, एक काबिलेतारीफ आर्किटेक्चर है। इसे ब्लैक पैगोडा टेंपल भी कहते हैं। यह मंदिर एक रथ की फॉर्म में बना है, जिसमें 12 पहिए हैं और 7 घोड़े इस रथ को खींच रहे रहे हैं। यही नहीं, भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर, श्री केदार गौरी मंदिर औरमुक्तेश्वर-सिद्धेश्वर जैसे कई मंदिर, उड़ीसा को खास बनाते हैं। पुराने जमाने में कबूतर, लोगों के संदेश लेकर जाते थे। लेकिन उड़ीसा में, आज भी, यह परंपरा जिंदा है। साल 1946 में भारतीय सेना ने राज्य पुलिस को 200 कबूतर दिए थे, तब से यह ट्रेडिशन चला आ रहा है।
एग्रीकल्चर सेक्टर में लगभग 22 प्रतिशत, इंडस्ट्री में 41 परसेंट से ज्यादा और सर्विस सेक्टर में उड़ीसा का 36.2 प्रतिशत काँट्रिब्यूशन है। देश के नैचुरल रिसोर्सेस का 35%, उड़ीसा में है। भारत के लौह अयस्क का 30% हिस्सा, उड़ीसा से आता है। उड़ीसा, दूसरे किसी भी राज्य की तुलना में सबसे ज्यादा स्टील प्रोड्यूज करता है। राज्य का फिशरीज सेक्टर 1.5 मिलियन से ज्यादा लोगों को रोजगार देता है। अपने समुद्री तट से लेकर, इक्नॉमिक डेवलपमेंट तक, हर तरफ से उड़ीसा भारत की ग्रोथ में अहम रोल निभा रहा है। आज इस अवसर पर, द रेवोल्यूशन देशभक्त हिंदुस्तानी, आप सभी को उड़ीसा दिवस की बधाई देता है। हम उम्मीद करते हैं कि उड़ीसा यूं ही, तरक्की करता रहे।