आज 22 दिसंबर है, और आज भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की जयंती को समर्पित, राष्ट्रीय गणित दिवस सेलिब्रेट किया जा रहा है। क्या आपका भी फेवरेट सब्जेक्ट मैथ्स है या फिर ''तारे ज़मीं पर'' मूवी के ईशान अवस्थी की तरह, अरिथमेटिक का हर कॉन्सेप्ट आपके सामने भी डांस करने लगता है। घबराने की बात नहीं है, क्योंकि पढ़ने में कमजोर इशान, एक बहुत अच्छा पेंटर था। जाहिर सी बात है हर कोई आर्यभट और ब्रह्मगुप्त नहीं हो सकता। आज जब हम हार्डी-रामानुजन लिटिलवुड सर्कल थियोरी में श्रीनिवास के कॉन्ट्रिब्यूशन को याद कर रहे हैं, तो आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, भास्कर, महावीर, सीआर राव जैसे भारत के कई पूर्वजों का योगदान भी, हम कभी नहीं भूल सकते। संयोग की बात है कि आज अपने पूर्वजों के सम्मान में अमेरिका भी फोरफादर्स डे सेलिब्रेट कर रहा है। A-साल 2012 में देश के मशहूर मैथमेटिशियन श्रीनिवास अयंगर रामानुजन की 125वीं जयंती सेलिब्रेट की जा रही थी। उस दिन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने राष्ट्रीय गणित दिवस की घोषणा की थी। तमिलनाडु में जन्मे रामानुजन ने अपना ज्यादातर जीवन गरीबी में बिताया। स्कूल में पढ़ाई के वक्त दोस्तों से किताबें उधार लीं। फिर भी उन्होंने ट्रिगनोमेट्री की डीप स्टडी की और सिर्फ 15 साल की उम्र में एप्लाइड मैथ में जॉर्ज ब्रिज कैर का सिनोप्सिस में एलिमेंटरी रिजल्ट हासिल किया। 1903 में मद्रास यूनिवर्सिटी से स्कॉलरशिप मिली, लेकिन मैथ्स के चक्कर में दूसरी स्टडीज को इग्नोर करने की वजह से अगले साल ही इस स्कॉलरशिप को खो दिया। इसके बाद, घर की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए क्लर्क की नौकरी की। 1911 में जर्नल ऑफ़ द इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी में रामानुजन का पहला पेपर पब्लिश हुआ। इस बीच, वो कुछ इंटरनेशनल प्रोफेसर के संपर्क में आए, जिनके सहयोग से उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज से ग्रांट पर एडमिशन मिली और इस तरह वो पढ़ने के लिए इंग्लैंड चले गए। शायद आपको पता हो कि 1729 नंबर को हार्डी-रामानुजन नंबर के रूप में जाना जाता है।
zero का concept, negative numbers, arithmetic, और algebra में सबसे पहला कॉन्ट्रिब्यूशन भारतीय विद्वानों का रहा है। जहां एक ओर, 0 की खोज करने वाले आर्यभट्ट ने उस वक्त बता दिया था कि साल में 365 दिन हैं, वहीं गणित, आध्यात्मिकता, शिक्षा, आयुर्वेद और नेविगेशन से लेकर कई क्षेत्रों में भारत ने दुनिया का नेतृत्व किया है। शायद आपको पता हो कि नेविगेशन कला की शुरुआत 6000 साल पहले भारत के, सिंध में हुई थी। संस्कृति के संरक्षण से लेकर, नए भारत की खोज में अपने पूर्वजों के योगदान को भारत कभी नहीं भूल सकता। गणितशास्त्र से लेकर वैदिक अंक शास्त्र तक, भारत ने दुनिया को महान विरासत दी है। देश के प्राचीन आर्किटेक्चर में गणित का देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए कंदरिया महादेव मंदिर के ऊंचे टॉवर में ज्योमेट्री थ्योरी का प्रयोग, जयपुर के जंतर मंतर में बनी दुनिया की सबसे बड़ी पत्थर का सूर्य घड़ी और विरुपाक्ष मंदिर, जिसका triangular गुंबद और square layout देखी जा सकती है। B-अपने वर्तमान में बिजी और भविष्य को लेकर हम इतने चिंतित रहते हैं, कि हम अक्सर भूल जाते हैं कि हमारे फोरफादर्स ने हमारे लिए क्या किया है और हमें सहेजने के लिए क्या दिया है। हम में से ज्यादातर लोगों ने इसका ब्योरा जरूर रखा होगा कि हमारे दादा-परदादा हमारे लिए कितनी संपत्ति और विरासत छोड़ कर गए हैं, उस हिसाब से हम उन्हें कोसते भी हैं, और शुक्रिया भी बोलते होंगे। लेकिन पूरे भारत के पूर्वजों यानी देश के विद्वानों और महात्माओं ने जो एक आजाद भारत, एक प्रदूषण मुक्त प्रकृति हमें दी है, क्या आज हम उसे संभालने के काबिल हैं। हमारे पूर्वजों ने एक नई दुनिया की आशा में धर्म, कल्याण और करुणा के साथ विकास का रास्ता चुना, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि आज हम उस पर चलते हुए डगमगाने लगे हैं। भारत आविष्कारों का देश रहा है, और खुशी की बात है कि आज पूरी दुनिया भारत के प्राचीन प्रभुत्व, उसके नेतृत्व और योगदान को मान्यता दे रही है।
अलबर्ट आइंसटीन ने कहा था कि ''हम भारतीयों के बहुत ऋणी हैं, जिन्होंने हमे गिनना सिखाया, जिसके बिना कोई भी मूल्यवान वैज्ञानिक खोज सम्भव नहीं होती।'' हमारा इतिहास बहुत महान रहा है, महान लोगों का वो दौर रहा है, जिसने दुनिया को गाइड किया। गणित दिवस के अवसर पर, द रेवोल्यूशन - देशभक्त हिंदुस्तानी, श्रीनिवास रामानुजन जी को तहे दिल से श्रद्धांजलि देता है, और भारत के महान पूर्वजों के योगदान के लिए आभारी है, जिनकी बदौलत भारत न सिर्फ दक्षिण एशिया, बल्कि पूरी दुनिया में उगते सूरज की तरह चमक रहा है।