महान शासक वो होता है, जो अपने देश और संस्कृति की रक्षा के लिए, किसी भी प्रकार का समझौता न करें और सतत संघर्ष करता रहे। ये, कथन - सिसोदिया वंश के राजा- महाराणा प्रताप पर सही लागू होता है। मुगलों ने कई बार उन्हें चुनौती दी, लेकिन हर बार उन्हें मुंह की खानी पड़ी। 30 साल के संघर्ष और युद्ध के बाद भी, अकबर कभी, उन्हें बंदी न बना सका और न ही झुका सका। उनका जन्म 9 मई, 1540 को राजस्थान, के कुंभलगढ़ किले में हुआ था। वो- महाराणा उदय सिंह और रानी जयवंताबाई के सबसे बड़े पुत्र थे। अपने पिता की मृत्यु के बाद, साल 1572 में, उनका राज्याभिषेक हुआ। एक ऐसे प्रतापी राजा, जिनसे, मुगल वंश का महान शासक -अकबर भी परेशान हो गया था। भारत के बहुत से राजाओं ने, मुगलों का शासन स्वीकार कर लिया, लेकिन महाराणा प्रताप ने नहीं।
उनका वफादार घोड़ा, चेतक मानो आसमान में उड़ता था। जब हल्दीघाटी के युद्ध में, मुगल सेना ने उनका पीछा किया, तो चेतक ने 26 फुट चौड़ी नहर पर छलांग लगा दी, उसकी पीठ पर महाराणा प्रताप भी थे। दुर्भाग्य से, युद्ध के, अंत में उसने दम तोड़ दिया था। लेकिन आज भी, युद्ध के मैदान के पास, चेतक को समर्पित एक मंदिर है। काल्पनिक कहानियों में, हमें अक्सर ये डायलोग सुनने को मिलता है कि- निहत्थों पर वार नहीं करते। लेकिन महाराणा प्रताप ने, इस बात को अपनी रियल लाइफ में अपनाया था। वो हमेशा अपने पास दो तलवारें रखते थे, ताकि उनके शत्रु के पास अगर तलवार न हो, तो वो, एक तलवार उसे देते और फिर युद्ध करते। ये उन्होंने अपनी मां से सीखा था। सन 1597 को चावंड में, उनका देहांत हुआ। जब महाराणा प्रताप का निधन हुआ, तो उसके बाद उनके बेटे अमर सिंह ने गद्दी संभाली।
महाराणा प्रताप के सम्मान में, पूरे भारत में कई जगहों के नाम, उनके नाम पर रखे गए हैं। जैसे कि- उदयपुर में महाराणा प्रताप कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय। शानदार चित्तौड़गढ़ किला, जहां कभी महाराणा प्रताप निवास करते थे, उनके साहस और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। वो कहते थे, कि "मातृभूमि और अपनी माँ में तुलना करना और दोनों को अलग समझना, निर्बल और मुर्खो का काम है। द रेवोल्यूशन देशभक्त हिंदुस्तानी, देश के प्रति उनके प्रेम और वीरता को, सलाम करता है।