आनंद के पापा, का एक, जो दोस्त आर्टिस्ट था। उसे रहस्यमयी पेंटिंग्ज बनाने का, बहुत शौक था। छोटे कस्बे से आया था, ज्यादा फेमस नहीं था, लोग उसे जानते भी नहीं थे। एक दिन, शहर में प्रदर्शनी लगी। उसने भी अपनी एक पेंटिंग उठाई और उस एग्जिबिशन में रख दी। कई लोग, एग्जिबिशन में आए, वो भी, उन्हीं के बीच प्रदर्शनी देखता रहा। लोग उसकी पेंटिंग के बारे में काफी कुछ बोल रहे थे, वो चुपचाप सुनता रहा। कोई बोल रहा था कि - क्या ये पेंटिंग किसी बच्चे ने बनाई है। कोई कहता- इसे बनाने वाला कोई पागल ही होगा, इतनी बेकार पेंटिंग उन्होंने पहले कभी नहीं देखी। हर कोई उस अजीब सी दिखने वाली, रहस्यमयी पेंटिंग का मजाक उड़ाता। लेकिन वो पेंटर, ये सब सुनकर दुखी नहीं हुआ, क्योंकि वो सिर्फ अपनी खुशी के लिए पेंटिंग करता था।
अगले दिन, अखबार में एक खबर छपी, जिसने लोगों के होश उड़ा दिए। क्योंकि वही पेंटिंग, सबसे ज्यादा कीमत पर बिकी थी, जिसे लोगों ने बेकार बताया था। अब लोग, जानना चाहते थे कि कौन है, जिसने ये करोंड़ों की पेंटिंग बनाई है। अक्सर हम, अपनी खुशियों से समझौता करके, पैसा कमाते हैं और बाद में वही पैसा खर्च करके, खुशियां पाने का सोचते हैं। हमेशा, वो काम करें, जिसमें आपको खुशी मिलती है, चाहे लोग उसे अहमियत दें या नहीं, इससे फर्क नहीं पड़ता। खुद को दूसरों की नजरों से तोलना बंद करें, वरना आप अपनी पहचान खो देंगे।