आज 11 फरवरी को, साइंस में महिलाओं और लड़कियों का इंटरनेशनल डे सेलिब्रेट किया जा रहा है। यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर की रिसर्च में महिलाएं, सिर्फ 30% से भी कम हैं। आज से दशकों पहले, वो टाइम भी था जब, माना जाता था कि लड़कियों को पढ़ाई नहीं करनी चाहिए। लेकिन समाज के सहयोग की वजह से, आज लड़कियां न सिर्फ पढ़ाई, बल्कि हर फील्ड में जॉब और लीडरशिप कर रही हैं। विज्ञान में महिलाओं और लड़कियों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस का उद्देश्य, साइंस में महिलाओं और लड़कियों की भागीदारी बढ़ाना है। एक ऐसा एन्वायरनमेंट या फिर उन्हें अवसर मुहैया करवाना है, जिसके जरिए, ज्यादा से ज्यादा महिलाएं इस फील्ड में काम करें। वीमेन एम्पावरमेंट को बढ़ाए बिना कोई भी देश तरक्की नहीं कर सकता, और इसी को ध्यान में रखते हुए, महिलाओं के सपोर्ट के लिए कई अंतरराष्ट्रीय दिवस और प्रोग्राम चलाए जाते हैं। उन्हीं में से एक, आज का दिन है। इसके इतिहास की बात करें, तो दिसंबर 2015 में, संयुक्त राष्ट्र ने 11 फरवरी को विज्ञान में महिलाओं और लड़कियों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। यह दिवस यूनेस्को और यूएन-महिलाओं द्वारा संस्थानों और सिविल सोसाइटी पार्टनर्स के सहयोग से शुरू किया गया था। और पहली बार यह दिवस, साल 2016 में मनाया गया था। कोविड 19 की वजह से दुनिया भर में कई लोगों की मौत हुई, और उस दौरान भी रिसर्च में महिला साइंटिस्ट ने अहम रोल निभाया। यही नहीं, कई महिला डॉक्टर और नर्सों की ड्यूटी के दौरान जान तक चली गई, हालांकि पुरुषों का योगदान भी अतुलनीय है।
यूनेस्को के डाटा की बात करें, तो दुनियाभर के कुल रिसर्च करने वाले लोगों में 70 परसेंट, से ज्यादा पुरुष हैं। यानी 30 परसेंट से भी कम महिलाएं इस फील्ड में काम कर रही हैं। इसका कारण, एक ऐसी मेंटालिटी भी है, कि महिलाएं बहुत चंचल और कमजोर दिल की होती हैं, लेकिन भारत की पहली महिला physician आनंदीबाई गोपालराव जोशी को कौन नहीं जानता, जिनके न्यू-बोर्न बेबी ने उन्हें चिकित्सक बनने के लिए प्रेरित किया। स्पेस में कदम रखने वाली भारतीय मूल की पहली astronaut कल्पना चावला, जिन्होंने पहली बार 1997 में एक mission specialist और primary रोबोटिक आर्म ऑपरेटर के रूप में स्पेस शटल कोलंबिया में उड़ान भरी थी। एक सफल समुद्र विज्ञानी, डॉ अदिति पंत 1983 में अंटार्कटिका जाने वाली पहली भारतीय महिला थीं। भारत की 'मिसाइल वुमन'- टेसी थॉमस, चंद्रयान-2 mission की Director Ritu Karidhal, Indian National Science Academy की पहली वूमेन प्रेसिडेंट- चंद्रिमा शाह जैसी न जाने कितनी महिलाएं, अपने परिवार और समाज से लेकर, पूरे देश का गौरव बनी हैं। महिला आइकन की ये लिस्ट यहीं खत्म नहीं होती, क्योंकि हर नवजात बच्ची आगे चलकर इन्हीं की तरह, एक नया इतिहास रचेंगी। दुनिया तेजी से बदल रही है और अगर हमें इसके साथ कदम बढाना है, तो महिलाओं को बराबरी से, हर फील्ड में साथ लेकर चलना होगा। आज महिलाएं मुश्किल से मुश्किल काम भी बड़ी सफलता के साथ कर रही हैं और सिलसिला लगातार बढ रहा है। मगर इस रास्ते में एक रूकावट ये भी है कि काम के लिए उन्हें बराबर एप्रीशिएट नहीं किया जाता। फिर वे चाहे पैसे के रूप में हो या फिर सम्मान के रूप में। शीर्ष पर आने और अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने के बावजूद इन्हें अनेक प्रकार के पूर्वाग्रहों को झेलना पडता है। ऐसे में वे अपने काम पर पूरी तरह फोकस नहीं कर पाती।
अगर हम भारत की बात करते हैं, लिंग आधार पर भेदभाव प्रारंभिक शिक्षा के दौरान ही शुरू हो जाता है। चुनाव करने का अधिकार उन्हें अक्सर कम दिया जाता है और अगर किसी तरह वे उच्च स्तर पर पहुँच भी जाती हैं तब भी उन्हें हर कदम पर भेदभाव का सामना करना पडता है। काम के अवसर कम देने के साथ उन पर मानसिक दबाव भी बना रहता है और पुरूषों के मुकाबले उन्हें कम पाकर भी ज्यादा मेहनत करनी पडती है। इसलिए भारत सरकार के साथ-साथ, लड़कियों-महिलाओं के परिवारों और समाज को उनका साथ देना होगा, ताकि वो आगे बढ़ पाएं। हम में से हर किसी के लिए, चाहे वो लड़का हो, या फिर लड़की, उसका सबसे पहला सपोर्ट उनका परिवार है। परिवार या पेरेंट्स की परमिशन और साथ ही, उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिलता है। आज, द रेवोलूशन- देशभक्त हिंदुस्तानी के साथ, हम यही कहना चाहेंगे कि आपका सहयोग, आपके बच्चों को बुलंदियों पर पहुंचने का मौका दे सकता है, जहां सफलता के उस अर्श पर सबसे पहले आप उनके साथ होंगे।