आज नदियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई दिवस मनाया जा रहा है। अगर भारत की बात करें, तो दुनियाभर में कुल जितने जल स्त्रोत हैं, देश में उनका मात्र 4 प्रतिशत मौजूद है, लेकिन दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी भारत में बसती है। इससे आप समझ सकते हैं कि हमारे पास जनसंख्या के मुकाबले, कितना कम पानी उपलब्ध है। भारत ही नहीं, आज पूरी दुनिया में लाखों-करोड़ों लोगों को, साफ पीने का पानी नहीं मिल रहा। क्या सच में, अगली सदी के युद्ध पानी के लिए लड़े जाएंगे? आज नदियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई दिवस की 26वीं वर्षगांठ है। जैसा कि हम जानते हैं कि एक डैम बनाने की वजह से, कई लोगों की जिंदगियां प्रभावित होती हैं, और इसी को देखते हुए, मार्च 1997 में, ब्राजील में एक बैठक हुई। इसी की याद में, आज दुनियाभर के कई देश यह दिवस मना रहे हैं। ये तो आप जानते ही हैं कि पृथ्वी का 71 प्रतिशत हिस्सा पानी से ढका हुआ है। लेकिन इसका 3 प्रतिशत से भी कम ताजा पानी है। हमारा अधिकांश पीने का पानी नदियों और झरनों से आता है, लेकिन पिछले कुछ समय में भारत में, वाटर रिसोर्स लगातार कम हो रहे हैं। वास्तव में समस्या यह है कि हमारे पास साफ पीने का पानी खत्म हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र और नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि साल 2030 तक, भारत की 40 प्रतिशत आबादी को साफ पीने का पानी नहीं मिलेगा।
सिर्फ भारत ही नहीं, जल संकट पूरी दुनिया पर मंडरा रहा है। साल 1995 में, विश्व बैंक के उपाध्यक्ष इस्माइल सेरागेल्डिन ने कहा, था कि "अगली सदी के युद्ध पानी के लिए लड़े जाएंगे। और ये काफी हद तक सही भी साबित हुआ। अकेले 2017 में, सीरिया सहित कम से कम 45 देशों में पानी को लेकर विवाद हुए। अगर भारत की बात करें, तो भारत में कावेरी बेसिन में पानी को लेकर विवाद, रावी-ब्यास जल विवाद और कृष्णा नदी की घाटी में मौजूद राज्यों के बीच लड़ाई, भारत के लिए बड़ी चुनौतियों में से एक थे। अब आप सोच रहे होंगे कि अगर जल संकट इतना बड़ा मुद्दा बन चुका है, तो कोई कुछ कर क्यों नहीं रहा। वास्तव में सरकारों से लेकर, समाज सेवियों तक, हर कोई नदियों को बचाने और जल संरक्षण में लगा है। जल संरक्षण और नदियों, झीलों की सफाई के लिए कई मिशल लाँच किए गए हैं। बीते कुछ सालों में कई राज्यों ने नदियों को जोड़ने की पहल में दिलचस्पी दिखाई है। वास्तव में नदियों को जोड़ने के बारे में सबसे पहले, साल 1858 में एक ब्रिटिश सिंचाई इंजीनियर सर आर्थर थॉमस कॉटन ने सोचा था। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि नदियों की क्षमता का कुशल उपयोग सुनिश्चित होगा। एक उदाहरण से समझते हैं। गोदावरी नदी के बेसिन की क्षमता प्रतिवर्ष 110 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी की है, जबकि कावेरी में यह मात्रा केवल 21 बिलियन क्यूबिक मीटर ही है। ऐसे में गोदावरी नदी के पानी का अधिकतम इस्तेमाल करने के लिये उसका अतिरिक्त पानी कावेरी नदी में डाला जा सकता है। नदियों को जोड़ना सही मायने में लाभदायक होगा। इससे पेयजल की कमी, सूखे और बाढ़ की समस्या कम होने के साथ-साथ एग्रीकल्चरल सेक्टर के लिए पानी की उपलब्धता बढ़ जाएगी।
देश में पानी की जितनी खपत होती है, उसका तकरीबन 85 प्रतिशत हिस्सा कृषि के लिए इस्तेमाल होता है, और सिर्फ 10 प्रतिशत इंडस्ट्री में और 5 प्रतिशत पानी घरों में इस्तेमाल होता है। एग्रीकल्चर सेक्टर में सबसे ज्यादा पानी का इस्तेमाल होता है, इसलिए सिंचाई के लिए पानी की बचत करने वाले किसानों के लिए नकद ईनाम की योजना बनाई जा सकती है, इससे किसान पानी की बचत के लिए प्रोत्साहित होंगे। जैसा कि हम जानते हैं कि पूर्वी भारत में ज्यादा बारिश होती है। इसलिए सरकार को, पूर्वी भारत के किसानों को उन फसलों को उगाने के लिए सुविधाएं देनी चाहिएं, जिनमें ज्यादा पानी की जरूरत होती है, जैसे कि धान। सरकार को एक ऐसी नीति बनानी चाहिए, जिसके तहत सभी घरों में बारिश के पानी के संरक्षण को कम्पल्सरी कर देना चाहिए। देश के वाटर गर्वनेंस इंस्टीट्यूशंस को ट्रांसपेरेंट बनाना जाना चाहिए। नदियों और जल संरक्षण का काम सिर्फ सरकारों और समाज सेवियों का नहीं है। पानी के बिना, मनुष्य या कोई भी जीवित प्राणी, ज्यादा दिन तक जिंदा नहीं रह पाएगा। आइए मिलकर, पानी की बेवजह बर्बादी को रोकें। कुछ साल बाद, पानी के लिए युद्ध करने से बेहतर होगा कि अभी इसे बचाने के लिए युद्धस्तर पर कुछ किया जाए।