आज छोटी होली व होलिका दहन है, जो होली के त्योहार की एक खास रस्म है। होली, फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को आती है। इस खास त्योहार की जड़ें, हिंदू धर्म से जुड़ी हैं, लेकिन आज यह त्योहार, अपने धार्मिक बंधनों से आजाद होकर, हर किसी की जिंदगी में नया रंग लाता है। गुलाल और ढेरों रंगों के साथ, परिवार और मित्रों से मौज-मस्ती, इस दिन का अहम हिस्सा बन चुका है। होली संस्कृत भाषा का शब्द है, जो मूल रूप से हिरण्यकश्यप की बहन "होलिका" से जुड़ा है। होलिका दहन को लेकर बिहार का पूर्णिया जिला प्रसिद्ध है, क्योंकि माना जाता है कि होलिका का दहन वहीं हुआ था। होलिका दहन, होली से एक दिन पहले मनाया जाता है। इसके पीछे, एक पौराणिक कथा है। हो सकता है, अपने बचपन या, कभी न कभी आपने भी, हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथ पुराण की यह कथा सुनी हो। हिरण्यकश्यप नाम का एक दैत्य राजा था। वो बहुत पराक्रमी और शक्तिशाली था। पत्नी कयाधु से उसे, प्रह्लाद नाम का एक पुत्र था। एक बार हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को बड़े प्यार से पूछा कि तुम्हें सबसे ज्यादा क्या पसंद है। प्रह्लाद ने प्रसन्न होकर जवाब दिया कि मुझे भगवान विष्णु की उपासना करने में सबसे ज्यादा खुशी मिलती है। यह सुनकर हिरण्यकश्यप को क्रोध आ गया, क्योंकि घमंड में चूर होकर, वो खुद को भगवान मानने लगा था। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का भक्त था, जो हिरण्यकश्यप को बिलकुल गवारा नहीं था। वो नहीं चाहता था कि उसका पुत्र भगवान विष्णु की आराधना करे, लेकिन प्रह्लाद अपने पिता की बात नहीं मान पाए, क्योंकि वो जन्मजात विष्णु भक्त थे। जब उनकी मां, गर्भावस्था में थीं, तब नारद उन्हें आश्रम लेकर आए थे, जहां वो, भगवान भक्ति, कीर्तन और आत्मनिवेद की विद्या मां के गर्भ में ही सीख चुके थे।
क्रोधित हिरण्यकश्यप ने अपने दैत्य सैनिकों को, प्रह्लाद को मारने का आदेश दिया। उसे विष दिया, उस पर तलवार से प्रहार किया गया, विषधरों के सामने छोड़ा गया, हाथियों के पैरों तले कुचलना चाहा, पर्वत से नीचे फिंकवाया, लेकिन ईश्वर कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। तब हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को बुलाया। होलिका को तपस्या से एक ऐसा वस्त्र प्राप्त था, जिसे ओढ़ने पर आग भी उसे नहीं जला सकती थी। इसलिए उन्होंने प्रह्लाद को जलाकर मारने का फैसला किया। एक दिन वो, अपने वरदान का दुरुपयोग कर, हरि भक्त प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर जलती चिता में बैठ गई। कहा जाता है कि सिर पर ओढ़ा हुआ उसका वो दिव्य वस्त्र उड़ गया और वो जलकर राख हो गई। लेकिन विष्णु भगवान के आशीर्वाद के चलते प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ। इसी याद में, होली के दिन लोग आग जलाकर होलिका दहन मनाते हैं।
गर्भवती महिला की शांत, स्थिर और सकारात्मक मानसिक स्थिति, उनके शिशु को प्रभावित करती है। प्रह्लाद ही नहीं, महाभारत के समय अर्जुन ने अपने पुत्र अभिमन्यु को गर्भ में चक्रव्यूह तोड़ने की कला सिखाई थी। आध्यात्मिक और पौराणिक कथाओं के अलावा, आज विज्ञान भी कहता है कि शिशु के 80% दिमाग का विकास गर्भ में ही हो जाता है। गर्भवती महिलाओं को अपने संस्कारों व आध्यात्म को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में अपनाने के लिए कहा जाता है, क्योंकि इसका बच्चे पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। और इसलिए गर्भवती महिलाओं के कमरे में भगवान के बाल स्वरूप की तस्वीर लगाना, सात्विक भोजन करना और खुश रहने के लिए कहा जाता है। माना जाता है कि बिहार के सिकलीगढ़ में आज भी वो जगह मौजूद है, जहां होलिका, जली थी। वहां माणिक्य खंभा आज भी मौजूद है, जिससे भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में प्रकट हुए थे और हिरण्यकश्यप का वध किया था। होली एक ऐसा त्योहार है, जो सभी उम्र के लोगों को एकता और समानता की भावना से जोड़ता है। हालांकि, आज, ई-मेल, व्हाट्सएप, टेक्स्ट और सोशल मीडिया जैसे तकनीकी उपकरण, लोगों के बीच बातचीत का मुख्य जरिया बन चुके हैं, जिन्हें अक्सर हम, हर त्योहार पर अपनों को संदेश भेजने के लिए इस्तेमाल करते हैं। होलिका दहन, उन बुराइयों को खत्म करने का प्रतीक है, जो हमें अवगति की ओर धकेलती हैं। इस त्यौहार में, अपने अन्तरंग दुश्मनों जैसे अहंकार, घमंड, ईर्ष्या और क्रोध को जलाते हुए, अपने जीवन को साफ-सुथरा करने का संकल्प ले सकते हैं। कमाल की बात है, कि अंग्रेजी शब्द ''होली'' का मतलब भी पवित्रता है। आइए इस होलिका दहन पर, नकारात्मकता और बुराई को जला दें और होली की इस रंगीन नई शुरुआत का स्वागत करें। द रेवोल्यूशन देशभक्त हिंदुस्तानी की ओर से, आपको और आपके परिवार को होलिका दहन की हार्दिक शुभकामनाएं!