कृष्ण प्रेममयी राधा; राधा प्रेममयो हरिः यानी राधा कृष्ण के शुद्ध प्रेम से और हरि, राधा के शुद्ध प्रेम से बने हैं। अपनी शरारतों से, गोपियों को परेशान करने वाले, नटखट नंदलाल। माखन चोर, मां यशोदा के कान्हा आनंद स्वरूप हैं, जिनके सांवले रंग के बावजूद, नवल किशोरी राधा उनकी दीवानी हो गई। आज भी कहीं बांसुरी की धुनते हैं, तो ब्रज के मेरे बांके बिहारी का चेहरा आंखों के सामने आ जाता है, तब समझ में आता कि मुरलीधर के रंग में रंगी, वो राधा रानी क्यों प्रेम मग्न होकर झूमती थी। आज 'वसंत, 'रंग और 'प्यार की होली है! इसे धुलेंडी, धुलिवन्दन, धुरखेल और वसंतोत्सव भी बोला जाता है। होली की कोई सीमा नहीं है। इसमें हैरानी की कोई बात नहीं कि दुनिया भर में हजारों लोग अपनी संस्कृति और आस्था के बावजूद इस दिन को मनाते हैं। होली के पीछे कई मान्यताएं हैं। एक कथा यह है कि एक बच्चे के रूप में भगवान श्रीकृष्ण को पूतना के स्तन से जहर दिया गया था, तो इस वजह से उनकी त्वचा का रंग नीला हो गया था। भगवान कृष्ण सांवले रंग के थे, और राधा बहुत गोरी थीं। कृष्ण को लगा कि सांवले रंग के कारण, राधा उन्हें स्वीकार नहीं करेगी। गोपाल ने अपनी यह दुविधा, यशोदा मां को बताई। यशोदा ने चंचलता से कृष्ण को सुझाव दिया कि कोई भी मतभेद दूर करने के लिए, राधा के चेहरे पर रंग लगा देना। कृष्ण ने राधा के चेहरे पर गुलाल लगाया। राधा ने भी सांवले कन्हैया को स्वीकार किया और इस तरह, उस दिन से लोग होली मनाने लगे।
एक अन्य कथा के अनुसार, एक दिन नटखट कान्हा, अपने दोस्तों के साथ राधा के घर गए, उन्हें छेड़ने की कोशिश की। चंचल राधा ने भी कृष्ण की अठखेलियों का बदला लेने का सोचा और फिर क्या! लाठी लेकर निकल पड़ी राधा और उसकी सहेलियां, और खूब भगाया, श्री कृष्ण और उनके साथियों को। कृष्ण-प्रिया और बांसुरी वाले की इस प्यारी नोक झोंक में, लाठियों का इस्तेमाल होने की वजह से, उत्तर प्रदेश के मथुरा और वृंदावन में आज भी, लठमार होली मनाई जाती है। रंग बिखेरने और नाचने-गाने के अलावा, गुजिया, पूरन पोली और रसमलाई जैसे कई पकवान और मिठाइयों के बिना होली की पार्टी अधूरी है। आखिरकार, मनोरंजक के बीच, भूख लगना तो, लाजमी है। अच्छा आज आपका, मेन्यू क्या रहने वाला है। कुछ खास व्यंजनों की खुशबु से महकने वाली है, आपके घर की रसोई या फिर, बाहर से कुछ स्पेशल ऑर्डर करेंगे। जो भी हो, आज का दिन अपनों के साथ जिंदादिली से जीने और खुशियां मनाने का दिन है, इसे खुलकर जिएं, क्योंकि ये खास लम्हे भी रोज-रोज नहीं आते। होली पर रंग लगाने का मतलब, लोगों को स्वीकारना, उनका सम्मान करना, उनके प्रति स्नेह जताना और खुशियां बांटना है। लेकिन आजकल, कुछ के लोगों की गलत हरकतों की वजह से, लोग होली के नाम से डरते हैं।
अब से हजारों साल पहले की होली में, ब्रज के नंद लाल की मर्यादा, जिसने परम ईश्वर होते हुए भी, राधा की अनुमति के बाद उन्हें रंग लगाया। उस वक्त, रंगों के इस जश्न में, गोकुलधाम के वासी झूमते जरूर नजर आए, लेकिन नशे में नहीं, कृष्ण लीला और सद्भाव से भरी खुशहाली के रंग में। क्या प्रेम और स्नेह, के प्रतीक इस त्योहार में, आज हमें अपनी मर्यादाएं याद हैं। अपनी खुशियों का जश्न मनाने के लिए, क्या नशा ही जरूरी है? क्या उस जश्न का जुनून ही काफी नहीं है? जाहिर सी बात है कि किसी को जबरदस्ती रंग लगाएंगे, या फिर गंदी चीजें उन पर फेंकते हैं, तो सामने वाले को बुरा लगेगा। इसे, यह बोल के कवर नहीं किया जा सकता कि -बुरा न मानो होली है। किसी की अनुमति के बिना उसका फोटो या वीडियो लेना भी आपका नुकसान कर सकता है। अजनबियों के साथ या असुरक्षित जगहों पर होली खेलने से बचें, क्योंकि ये आपको मुसीबत में भी डाल सकता है। होली के रंगों के जैसे ही, हमारे मनोभावों के भी अनेक रंग होते है। जैसे प्रेम एक रंग है, वैसे ही क्रोध और करुणा का रंग। अग्नि के जैसे आपकी भावनाओं का रंग, यानी क्रोध आपको नष्ट कर सकता है, वहीं स्नेह, करुणा और प्रेम रूपी रंगों की फुहार ऐसी है, जो आपके पूरे जीवन में आनंद ला सकती है। द रेवोल्यूशन- देशभक्त हिंदुस्तानी की ओर से, मुरली मनोहर और राधिका रानी के साथ-साथ आप सभी को, होली की हार्दिक शुभकामनाएं।