भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महाबीर जब नाम सुनावे- भारत में, मुश्किल से कोई ऐसा होगा, जिसे इन 2 पंक्तियों का पता न हो। और ऐसा हो भी क्यों ना, कोल्ड ड्रिंक पीकर डर के जीत मिले या ना मिले, ये 2 पंक्तियां पढ़कर, डर जरूर खत्म हो जाता है। चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा के दिन, अंजनी मां की कोख से, हनुमान जी का जन्म हुआ था। उसी की याद में, आज हम हनुमान जयंति मना रहे हैं।
एक इतना शरारती बालक, जो सूरज को फल समझ कर खा जाता है। हनुमान जी की मासूमियत तो देखिए- जब सीता मां ने उन्हें बताया कि, भगवान राम की लंबी उम्र के लिए, वो अपने माथे पर सिंदुर लगाती हैं। तो सोचने लगे- यदि मैं इसे, पूरे शरीर पर लगा लूं, तो प्रभु राम का जीवन कई गुना बढ़ जाएगा। यह सोचकर वो अपने पूरे शरीर को सिंदुर से रंग लेते हैं। अपने प्रभु, के प्रति इतना प्रेम, और निस्वार्थ भाव, क्या कहीं और दिखेगा? इतना ही नहीं, जब सीता मां से सुंदर मोतियों की माला मिली, तो मोतियों को भी तोड़कर भी चेक करने लगे कि उनमें राम हैं या नहीं। और जब राम नहीं दिखे, तो विनम्रता से माता सीता को, कहते हैं कि मैं, राम के सिवा कुछ और स्वीकार नहीं कर सकता। जब उन्होंने भगवान राम को माता सीता की अंगूठी दी। तो श्री राम ने उन्हें गले लगाकर कहा, "हे पराक्रमी वीर, मैं आपका ऋण नहीं चुका सकता।"
हनुमानजी सूरज को निगल गए, लंका को उजाड़ा, कई असुरों का संहार किया, पौंड्रक की नगरी को उजाड़ा, भीम और अर्जुन सहित कईयों का घमंड तोड़कर, संपूर्ण जगत को यह बता दिया कि वो क्या हैं! लेकिन बावजूद इसके, कभी विन्रता और भक्ति नहीं छोड़ी। बल, बुद्धि और विद्या का एक आदर्श संयोजन, हैं हनुमान। "इस हनुमान जयंती पर, आइए हम भगवान हनुमान जी की निस्वार्थ सेवा, और अटूट भक्ति के स्वभाव को अपनाएं।