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GST Day This Post Design By The Revolution Deshbhakt Hindustani

GST Day

जैसे घर चलाने के लिए, पैसे की जरूरत होती है, वैसे ही देश चलाने के लिए, सरकार को भी पैसे की जरूरत पड़ती है। इसके लिए सरकार, नागरिकों से टैक्स लेती है, और बदले में, उन्हें शिक्षा, बिजली, पानी, इन्फ्रास्ट्रक्चर और डेवलपमेंट आदि प्रोवाइड करवाती है। भारत में टैक्स, राजा-महाराजाओं के जमाने से वसूल किया जा रहा है। समय के साथ, टैक्स सिस्टम में कई बदलाव हुए hain। भारत की आजादी के बाद की बात करें, तो सरकार कई डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स लेती थी। लेकिन आज हम बात करेंगे, सिर्फ इनडायरेक्ट टैक्सेस की। और साल, 2017 में हुए एक बड़े बदलाव की, जिसने अप्रत्यक्ष करों के पूरे सिस्टम को बदल दिया। 29 मार्च, 2017 को, गुड्स् एंड सर्विस टैक्स अधिनियम, भारत की संसद में पारित हुआ। और 1 जुलाई को, भारत सरकार ने, जीएसटी लागू कर दिया। यानी गुड्स एंड सर्विस टैक्स। आसान शब्दों में कहें, तो सप्लाई चेन की हर स्टेज पर, वस्तु और सेवाओं पर value added टैक्स, जीएसटी है। यानी बिक्री के हर लेवल पर, जीएसटी लगाया जाता है। इसके पीछे सरकार का ये मानना था, कि जब भारत एक है, तो टैक्स भी एक ही होना चाहिए। इसलिए, वन नेशन- वन टैक्स के विजन के साथ, पूरे देश में जीएसटी लागू किया गया। जीएसटी का इतिहास: एक फ्रांसीसी थे, जिन्होंने पहली बार 1954 में जीएसटी के कांसेप्ट को, लागू किया था। और ये सफल भी हुआ! जिसके बाद, यूके, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों ने, इसी टैक्स सिस्टम को लागू किया। भारत में जीएसटी की यात्रा की बात करें, तो ये प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय, साल 2000 में शुरू हुई, जब कानून का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए एक समिति बनाई गई। तब से इस कानून को बनने और लागू होने में 17 साल लग गए। हां ये अलग बात है कि, सन 2006 में, कांग्रेस सरकार में, वित्तमंत्री श्री पी. चिदंबरम ने भी, जीएसटी की चर्चा भारतीय संसद में की थी! फिर आखिरकार, साल 2017 आया, जब जीएसटी बिल लोकसभा और राज्यसभा में पास हो गया। और 1 जुलाई 2017 को, पूरे देश में, जीएसटी कानून लागू हुआ। जीएसटी काउंसिल: जीएसटी काउंसिल, गुड्स एंड सर्विस टैक्स को कंट्रोल करती है, जो केंद्र और राज्य सरकारों की एक जॉइंट बॉडी है। जीएसटी, किसी विशेष विभाग या मंत्रालय के अधीन नहीं है, बल्कि जीएसटी काउंसिल इसे मैनेज करती है। इस काउंसिल की अध्यक्षता “Union Finance Minister करते हैं। और वर्तमान में, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इसकी अध्यक्ष हैं, ! इस काउंसिल में, राज्यों और यूटीज के वित्त मंत्री या उनके प्रतिनिधि भी शामिल होते हैं। इसमें कुल 33 सदस्य हैं, जिनमें से 2 सदस्य केंद्र के हैं, और 31 सदस्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के विधानमंडल से हैं। गुड्स एंड सर्विस टैक्स में, किसी भी तरह का बदलाव, इसी काउंसिल के जरिए होता है। असल में, Central Board of Indirect Taxes and Customs और सभी राज्यों के GST Department, जीएसटी की इम्लीमेंटेशन के लिए जिम्मेदार है। आइए जानते हैं, जीएसटी की क्लेक्शन कैसे होती है। दरअसल, जीएसटी के जरिए, सरकार, टैक्स इकट्ठा करती है। लेकिन सवाल ये उठता है, कि सेंटर गर्वनमेंट, स्टेट, और यूटी में, टैक्स के अमांउट का बंटवारा कैसे होता है। 1) CGST : मतलब, Central goods and service tax. ये केंद्र सरकार के अधीन आता है। 2) SGST: स्टेट गुड्स एंड सर्विस टैक्स। ये अमाउंट राज्य सरकार के अंडर आता है। और ये राज्य के अंदर होने वाले लेन-देन पर लागू होता है। 3) UTGST: ये Union Territory Goods and Services tax है। जो केंद्र शासित प्रदेशों में वस्तुओं और सेवाओं के लेन-देन पर लागू होता है। यहां, ये ध्यान देने वाली बात है कि UTGST सिर्फ, बिना विधानसभा वाले केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू है। 4) IGST: मतलब इंटीग्रेटेड गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स। जो दो अलग-अलग राज्यों के बीच लेनदेन पर लगता है। और ये भी केंद्र सरकार के अधीन आता है।

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आखिर, जीएसटी की जरूरत क्यों पड़ी: भारत में, custom duty, Central Excise, service tax, CST, VAT, Entry tax, जैसे कई तरह के टैक्स लिए जाते थे और कुछ प्रोडक्ट्स पर, आज भी लिए जाते हैं। इनमें से कुछ, केंद्र सरकार के कंट्रोल में हैं और कुछ राज्य सरकार के। इन अप्रत्यक्ष करों को लेकर, हर राज्य के अलग-अलग नियम और कानून थे। इसलिए जीएसटी के तहत, सभी इनडायरेक्ट करों को इकट्ठा करने का प्रयास, एक टैक्स के जरिए किया गया। ग्लोबल बिजनेस में आगे बढ़ने के लिए, भारत के डोमेस्टिक बिजनेस में सुधार जरूरी था। इसलिए पैन इंडिया बिजनेस और टैक्स सिस्टम को आसान बनाने के लिए, भी एक टैक्स यानी जीएसटी को लागू किया गया। पहले कई सारे टैक्स थे, इसलिए टैक्सपेयर्स को कई टैक्स अथॉरिटीज के साथ डील करना पड़ता था, उसकी वजह से पेपर वर्क तो था ही, ऊपर से डिपार्टमेंट हारासमेंट, वो अलग। इसे देखते हुए जीएसटी लागू किया गया, ताकि पैन इंडिया बिजनेस बढ़ सके। जीएसटी के 6 साल, लेकिन आज भी जीएसटी काउंसिल सवालों के घेरे में है। 1) जीएसटी लाने का मकसद था- पेपर वर्क को कम करना। लेकिन क्या सही में पेपर वर्क कम हुआ है? 2) क्या बिजनेस कम्युनिटी ग्राउंड लेवल पर, आज भी जीएसटी को पूरी तरह से समझ पाई है? 3) क्या जीएसटी लागू होने के बाद, बिजनेस कम्युनिटी- सीए और अकाउंटेंट पर, डिपेंड हो गई है? 4) प्रोडक्ट्स की जीएसटी स्लैब में लगातार, चेंजेस की वजह से, क्या बिजनेस में स्टेबिलिटी आई है? 5) CGST, SGST, UTGST, IGST । ये चारों गवर्नमेंट इंटरनल अकांउटिंग सिस्टम का पार्ट हैं, तो इसे बिजनेस कम्युनिटी पर क्यों थोपा गया है? आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए एक दुकानदार के पास, 2 तरीके के व्यापारी आते हैं, एक जो जीएसटी रजिस्टर्ड है और दूसरा नहीं है। जो GST रजिस्टर्ड है, उसकी रजिस्ट्रेशन से गवर्नमेंट को क्लीयर है कि वो कस्टमर SGST में आता है या IGST में। और जिसकी जीएसटी रजिस्ट्रेशन नहीं भी है, तब भी, उसके एडरेस से ही क्लीयर है कि वो लोकल व्यापारी है या किसी दूसरे स्टेट से। तो आखिर बिजनेस कम्युनिटी को CGST, SGST, UTGST और IGST की अलग अलग, आउटपुट और इनपुट अकाउंटिंग रखना क्यों अनिवार्य किया है? 6) इलेक्ट्रॉनिक वे बिल यानी ईवे-बिल। ये कोई टैक्स नहीं है। आपने रोड परमिट का नाम सुना होगा। ये वही है, लेकिन वस्तुओं पर लागू होता है। यानी किसी प्रोडक्ट को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना है, तब इ-वे बिल की जरूरत पड़ती है। ये इसलिए है, ताकि टैक्स ki चोरी ना हो, लेकिन उलटा इससे पेपर वर्क बढ़ा है। अब सवाल ये उठता है कि जीएसटी की रजिस्ट्रेशन के वक्त, सरकार हर फर्म को ऑनलाइन बिलिंग पोर्टल क्यों नहीं प्रोवाइड करवाती। ताकि उस एक बिल के आधार पर ही, गुड्स की ट्रांसपोरटेशन हो सके। मतलब, ऐसा हो जाए, तो इवे बिल की जरूरत ही नहीं रहेगी। अगर सरकार, ऑनलाइन बिलिंग लाती है, तो कालाबाजारी रुक सकती है। क्योंकि फर्में, बैक डेट बिलिंग, फर्जी बिल जेनरेशन और बिल केंसलेशन, के माध्यम से, कर चोरी करती है। 7) जीएसटी की सबसे बड़ी दिक्कत टैक्स स्लैब हैं। हर बिजनेस का एक साइकल है। सिंथेटिक कपडे़ का उदाहरण लेते हैं। फाइबर पर 18 परसेंट, धागे पर 12, कपड़े पर 5, और 1 हजार रुपए से कम के गारमेंट्स में 5 परसेंट है। अगर स्लैब सबका एक बराबर रहेगा, तो हर स्टेज पर टैक्स की लायबिलिटी आएगी। असल में, शुरुआती रॉ मैटिरीयल पर हाईऐस्ट टैक्स स्लैब होने की वजह से बिजनेस में इनवेस्टमेंट कॉस्ट बढ़ जाती है, जिससे बिजनेस कम्युनिटी को हमेशा मनी शॉट्रेज फेस करनी पड़ती है। ऐसा करने के पीछे, सरकार का मकसद, सिर्फ अपना टैक्स रेवेन्यू जेनरेट करना है। तो सवाल ये उठता है कि सरकार को, सिर्फ अपने रेवेन्यू को ध्यान में रखना चाहिए, या देश की बिजनेस ग्रोथ को भी। 8) जीएसटी की, सबसे ज्यादा मार मैन्यूफेक्चरिंग सेक्टर पर पड़ी है। FMCG के उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए, 2 राज्यों में मैगी की प्रोडक्शन हो रही है। एक राज्य में बिजली सस्ती है, दूसरे में महंगी। जिस राज्य में सस्ती है, वहां मैन्युफेक्चिरिंग कॉस्ट कम होगी, और जहां इलैक्ट्रिसिटी टैरिफ ज्यादा है, वहां उसी मैगी की प्रोडक्शन महंगी पड़ जाएगी। लेकिन मैगी बेचने पर, पूरे देश में टैक्स सेम लगता है। पुराने टैक्स सिस्टम में, राज्य सरकारें, एंट्री टैक्स और सबसिडीज के जरिए, मैन्यूफेक्चरिंग कॉस्ट के इस अंतर को, मैनेज कर लेती थी। लेकिन अब सरकार को, ये समझना होगा कि सिर्फ लेने का टैक्स एक करना ही काफी नहीं है, बल्कि इंडस्ट्रीज को, जो वो दे रही है, उसे भी एक समान करना पडेगा। ताकि, मार्केट में एक जेनुइन कॉम्पिटीशन क्रिएट हो। 9) अब बात करते हैं, डिपो, और कंपनी आउटलेट शोरूम्ज की। पहले ये, काफी ज्यादा खुलते थे, लेकिन अब जीएसटी की पॉलिसी और इसके हेवी पेपरवर्क ने इन पर नेगेटिव इफैक्ट डाला है। 10) बिजनेस कम्युनिटी में, जीएसटी की वजह से, होने वाली, सबसे बड़ी प्रोबलम- जीएसटी इनपुट क्रेडिट को लेकर है। और ये प्रोबलम इतनी बड़ी है कि, इस कम्युनिटी में, लोगों के आपस में रिलेशन खराब हो रहे हैं। मान लीजिए, एक फर्म ने, दूसरी फर्म को बिल जेनरेट किया। लेकिन किसी वजह से, बायर फर्म के जीएसटी इनपुट में, सेलर फर्म का इनपुट नहीं आया, तो बायर फर्म को, इसका नुकसान झेलना पड़ेगा। इस कंडीशन में, बायर के नुकसान की भरपाई की जिम्मेदारी, आखिर कौन लेगा? 11) जीएसटी लागू होने से पहले, सरकार ने कहा था कि ये सभी प्रोडक्ट्स पर लागू होगा। लेकिन पैट्रोल, डीजल जैसी कई चीजें, आज भी जीएसटी के दायरे से बाहर हैं। जीएसटी लागू हुए, 6 साल होने को हैं, तो अब तक इन पर जीएसटी क्यों नहीं लगाया गया। जिससे जनता को क्लीयर हो सके, कि इन प्रोडक्ट्स पर सरकार कितना टैक्स ले रही है। और देश में, महंगाई का सबसे बड़ा कारण यही है। क्योंकि डीजल और पेट्रोल के दाम का, इम्पैक्ट, डायरेक्टली और इनडायरेक्टली हर गुड्स पर आता है।

निष्कर्ष हम जीएसटी को फुल सपोर्ट करते हैं। लेकिन जीएसटी काउंसिल इस, टैक्स की इम्प्लीमेंटेशन और पॉलिसी मेकिंग में, नाकामयाब रही है। ऐसा शायद इसलिए हुआ है, क्योंकि पॉलिटिशियन और ब्यूरोक्रेट्स को, बिजनेस या ग्राउंड लेवल नॉलेज की कमी है। जीएसटी, इतना अच्छा टैक्स है, जिसे कई देशों ने अपनाया है। इसलिए भारत सरकार को समझना होगा, इसके लिए सिर्फ किताबी नॉलेज काफी नहीं है। इसकी इम्प्लीमेंटेशन में आने वाली हर कमी, देश और इकॉनॉकी लिए नुकसानदायक है। और रही बात, बिजनेस कम्युनिटी की, तो ये एक तरीके से सरकार का एक टेक्स कलेक्शन विंग है। और वो भी फ्री का। जो बिजनेस भी जनरेट करता है, और जनता से टैक्स इकट्ठा करके, सरकार के पास पहुंचा रहा है। इसलिए सरकार को बिजनेस कम्युनिटी की इंपॉरटेंस को समझना चाहिए। असल में, द रेवोल्यूशन -देशभक्त हिंदुस्तानी, बिजनेस एसोसिएशंज को अपील करता है, कि जीएसटी की कमियों को सरकार तक पहुंचाए। केवल सेंटर और स्टेट गवर्नमेंट की झूठी वाहवाही और फोटो session से खुश न हों, देश की जिम्मेदारी को समझें। जीएसटी की कमियां, और इससे जुड़ी हर चीज को, सरकार के सामने लाएं। ताकि नया भारत बन सके। अगर आपको ये जानकारी पसंद आई, तो प्लीज वीडियो को लाइक और शेयर करें। अपनी कोई राय देना चाहते हैं, तो कमेंट बॉक्स में लिखें। और, टीआरडीएच के, चैनल को सब्सक्राइब करना ना भूलें। धन्यवाद।