इस्लाम के, कुल 1 लाख 24 हजार पैगंबरों में से एक थे- हजरत इब्राहिम। वो 80 साल की उम्र में पिता बने थे। जब अल्लाह ने, उन्हें, अपनी सबसे प्यारी चीज कुर्बान करने को कहा, तब पैगंबर हजरत ने अपने बेटे को कुर्बान करने का फैसला लिया। अपनी औलाद की कुर्बानी, आखिर कौन देख सकता है, इसलिए पैगंबर हजरत ने आंखों पर पट्टी बांध कर, अपने बेटे की कुर्बानी दे दी। लेकिन अल्लाह का करिश्मा देखिए, जब उन्होंने आंखों से पट्टी हटाई, तो बेटे की जगह, एक बकरा कुर्बान हो गया था। और उनके बेटे के शरीर पर एक खरोंच, तक नहीं थी। ये घटना इस बात का साक्ष्य है कि जब हम, पूरी श्रद्धा और भक्ति से, अपने ईश्वर पर विश्वास करते हैं, उन्हें अपना मानते हैं, तो वो भी हमारे साथ कभी गलत नहीं होने देते। बुरे समय में, वो हमारी परीक्षा लेते हैं, पैगंबर हजरत की तरह, जो डगमाए नहीं, उन पर अल्लाह की नेमत बरसती है।
उसी दिन से लेकर, बकरीद पर कुर्बानी की परंपरा शुरू हो गई। इस्लामिक चंद्र कैलेंडर के अनुसार, ये त्योहार आमतौर पर ''धू अल-हिज्जा'' के 10वें दिन पड़ता है। अरबी भाषा में ईद का अर्थ- त्यौहार होता है और ज़ुहा शब्द उज़ैय्या से लिया गया है, जिसका मतलब है- बलिदान। दुनिया भर में इसके अलग-अलग नाम हैं। उर्दू और हिंदी भाषा में, ईद अल-अधा को बकर-ईद कहते हैं, तो उज़्बेकिस्तान में, इसे कुरबोन हेती कहते हैं। बांग्लादेश में इसे इदुल अज़हा, तो बंगाली में इसे कुर्बानिर ईद कहा जाता है। और मिस्र में, इसे “ईद उल बकराह” कहते हैं। त्योहारों में, स्वादिष्ट भोजन ना हो, ऐसा संभव ही नहीं। बिरयानी और कबाब से लेकर शीर खुरमा जैसे मीठे व्यंजनों तक, हर लाजवाब पकवान, बकरीद की खुशी और एकता को, चार चांद लगा देता है। आज, हम अपनों के साथ ईद का जश्न मनाएंगे, दान करेंगे, नमाज पढेंगे और कुछ
लोग हज यात्रा भी कर रहे होंगे। तो आइए, इस बकरीद पर, अल्लाह की नेमत के लिए, उनका शुक्राना करें। द रेवोल्यूशन देशभक्त हिंदुस्तानी की ओर से, आप सभी को ईद मुबारक! उम्मीद करते हैं कि अल्लाह के हुक्म, उनके फरमान के अनुसार, हम दूसरों के लिए, खुद को समर्पित करेंगे।