आज भारत रत्न, डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर जी, की 132वीं जयंती है। उन्होंने, ''वीजा के लिए इंतजार'' नाम से अपनी बायोग्राफी लिखी है। भारत में उनकी यह किताब शायद नहीं पढ़ाई जाती, लेकिन अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम में शामिल है। इस किताब के अनुसार, साल 1901 में, जब वो अपने पिता के पास, जाने के लिए निकले, तो महार जाति का होने की वजह से कोई बैलगाड़ी वाला, उन्हें स्टेशन से कोरेगांव पहुंचाने को राजी नहीं हुआ। उन्हें खुद बैलगाड़ी चलाकर, वहां पहुंचना पड़ा। इतना ही नहीं, स्कूल में, उन्हें बाकी बच्चों से अलग बैठना पड़ता था। वो बैठने के लिए, हमेशा अपने साथ एक बोरा रखते थे। सफाई कर्मचारी भी, उस बोरे को हाथ नहीं लगाता था, इसलिए रोज बोरा घर लेकर जाते और अगले दिन लेकर आते। स्कूल में सभी, अपनी मर्जी से, पानी पी सकते थे। लेकिन डॉ. अंबेडकर जी को नल छूने की इजाजत नहीं थी। एक चपरासी उन्हें पानी पिलाता था। और अगर चपरासी न हो, तो सारा दिन, प्यासे रहना पड़ता। धोबी उनके कपड़े, धोने से इनकार करते थे। और तो और, उनके बाल भी, उनकी बहन काटती थी, क्योंकि नाई, अछूतों के बाल नहीं काटता था।
अमेरिका से लौटने के बाद, जब वे बढ़ौदा में सर्विस करने के लिए आए, इसी जात पात की वजह से, रहने के लिए छत नसीब नहीं हुई। दोस्तों ने भी उनकी मदद नहीं की। और अंत में 11 दिनों के अंदर, मजबूरन, नौकरी छोड़कर, बंबई वापस जाना पड़ा। अमेरिका में रहते-रहते वो भूल गए थे कि वो अछूत हैं, लेकिन भारत ने लौटते ही, उन्हें याद दिला दिया कि ऊंची जाति के हिंदुओं से लेकर, हर दूसरे धर्म के लिए, वो एक अछूत हैं। मध्य प्रदेश के एक छोटे शहर, महू में, बाबासाहेब अम्बेडकर को समर्पित एक स्मारक है। यह उनका जन्मस्थान है। वो रामजी मालोजी संकपाल और भीम बाई की 14वीं संतान थे, जिनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को हुआ था। जब वो मात्र 5 साल के थे, तब मां का साया उनके सिर से, उठ गया था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा, सतारा, महाराष्ट्र में हुई। साल 1913 में आंबेडकर ने, कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के लिए बड़ौदा के महाराजा की मदद ली। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में बाबासाहेब ने 8 साल की पढ़ाई, सिर्फ 2 साल 3 महीने में पूरी की। बाबासाहेब दुनिया के पहले और एकमात्र व्यक्ति थे, जिन्हें लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से "डॉक्टर ऑल साइंस" की उपाधि मिली है। यही नहीं, गवर्नर लॉर्ड लिनलिथगो और महात्मा गांधी का मानना था कि बाबासाहेब 500 स्नातकों और हजारों विद्वानों से ज्यादा बुद्धिमान हैं। डॉ. अम्बेडकर ही एकमात्र भारतीय हैं, जिनकी प्रतिमा लंदन के संग्रहालय में कार्ल मार्क्स के साथ लगी हुई है। 6 दिसम्बर 1956 को भारत ने अपने इस रत्न का खो दिया।
वो सबसे विनम्र पृष्ठभूमि से आए थे, लेकिन ऊंचाइयों तक पहुंचे। वो हमारे संविधान के मुख्य वास्तुकार और ज्ञान के प्रतीक बने। वो हमेशा कहते थे कि “मेरी प्रशंशा और जय-जय कार करने से अच्छा है, मेरे दिखायें मार्ग पर चलो।” आज उनकी जयंती पर, द रेवोल्यूशन-देशभक्त हिंदुस्तानी, उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि देता है और उम्मीद करता है कि हर भारतीय, देश की इन महान विभूतियों के बताए मार्ग पर चलेगा।