एक बार, आनंद अपने पापा को पूछता है- क्या मैं, बड़ा होकर कुछ कर पाउंगा। आनंद के पापा- अलमारी में से एक पत्थर निकालते हैं। और कहते हैं, बाजार में इसकी कीमत पता करके आओ। लेकिन अगर तुमसे कोई इसकी कीमत पूछे- तो बस दो ऊंगली खड़ी कर देना, कुछ बोलना मत। आनंद बाजार गया- चौराहे के पास, एक बैंच पर बैठ गया। कुछ देर बाद वहां एक आदमी आया, बच्चे के हाथ में वो पत्थर देखकर कहने लगा- इसे कितने में बेच रहे हो। आनंद चुप रहा, लेकिन उसने पापा के कहे अनुसार, ऊंगलियों से ईशारा किया। दो ऊंगलियों को देखकर, आदमी कहने लगा- 200 रुपए, ठीक है। मैं, तुम्हे 200 रुपए दूंगा, ये पत्थर मुझे दे दो।
आनंद भागकर घर पहुंचा। और पापा को सब कुछ बताया। अब उसके पापा ने कहा- अब किसी म्यूजियम में जाओ और इसकी कीमत पता करके आओ। ये सब देखकर कंचन भी उत्सुक थी। दोनों भाई बहन म्यूजियम में, पहुंच गए- वहां एक आदमी ने, पत्थर देखकर उसकी कीमत पूछी। उन्होंने 2 ऊंगलियां खड़ी कर दीं। आदमी बोला- 20 हजार, ठीक है, मैं दे सकता हूं। ये सुनकर, दोनों वहां से चुपचाप निकल गए। घर आकर पापा को सब कुछ बताया। उनके पापा ने कहा - अब ज्वेलरी शॉप में जाओ। वो गए- ज्वेलर, वो पत्थर देखकर हैरान रह गया। उसने बच्चों को पूछा- इसकी क्या कीमत लोगे। आनंद ने फिर से 2 ऊंगलियों से ईशारा किया। सुनार कहने लगा- सिर्फ 2 लाख रुपए। ठीक है, ये कीमती पत्थर मुझे दे दो। दोनों वहां से तेजी से भागकर घर पहुंचे। और पापा को सब बताया। कहानी का सार ये है कि आप, खुद को, जिस जगह पर रखेंगे, उसी से आपकी कीमत तय होगी।