मैं अपनी जिंदगी से, बहुत निराश हो चुकी हूं। मेरे साथ कुछ अच्छा नहीं होता, मेरी तो, किस्मत ही खराब है। क्या आपके मन में भी, ऐसे विचार आते हैं? आज मैं आपको एक घड़े की कहानी सुनाउंगी, जो एक व्यक्ति को, भगवान की माया और अपने जीवन का सही मतलब समझाता है। एक गांव में, पीपल के पेड़ के नीचे, संतों की सभा चल रही थी। पेड़ की छाया में, गंगाजल से भरा, एक घड़ा रखा था। उस सभा से थोड़ी दूरी पर, एक आदमी खड़ा था। वो काफी देर से, संतों के वचन सुन रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि यह घड़ा कितना भाग्यशाली है। एक तो इसमें, किसी पोखर या तालाब का पानी नहीं, बल्कि गंगाजल भरा है। दूसरा, इस निर्जीव घड़े को, इन संतों की, सेवा का मौका मिला है। और दूसरी तरफ, मैं! जिसके साथ कभी, कुछ अच्छा नहीं होता। सब, किस्मत का ही खेल है।
घड़े ने उसके मन के भाव पढ़ लिए। और हल्की मुस्कुराहट के साथ बोला, तुम्हें पता है कुछ दिन पहले, मेरा भी कोई मूल्य नहीं था। एक पोखर के पास, मिट्टी के रूप में, शून्य पड़ा था। एक कुम्हार ने, फावड़ा मारकर मुझे खोदा। खूब ठोक-पीटकर घड़ा बनाया और फिर भट्टी में तपाया। तब मैं भी सोचता था कि ''हे ईश्वर, सारे अन्याय मेरे साथ ही करने थे। मुझे भी लगता था, कि मेरी किस्मत में, सिर्फ दुख और कष्ट ही लिखे हैं। लेकिन, फिर एक दिन, किसी ने मुझे खरीदा और संतों की इस सभा में, गंगाजल से भरकर रख दिया। तब मुझे समझ में आया, कि मेरा वो दुख, और संघर्ष, भगवान की कृपा थी। अगर ऐसा नहीं होता, तो आज संतों की इस सभा, में मेरी कोई जगह नहीं थी।
परेशानियां किसकी जिंदगी में नहीं हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि कुछ लोग उन मुसीबतों से बिखर जाते हैं और कुछ निखर जाते हैं। मुसीबतों से चोटिल होने की जगह, उनका सामना करके, समझदार बनें।