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Divorce

तलाक का मतलब है विवाह-विच्छेद, जो शादी के पवित्र बंधन में बंधे पति-पत्नी को हमेशा के लिए अलग कर देता है! शादी के बाद जीवन साथी को छोड़ने के लिए सामान्यतः 2 शब्दों का प्रयोग किया जाता है- डायवोर्स, जो कि एक अंग्रेजी शब्द है और दूसरा- उर्दू शब्द तलाक! वास्तव में, हिन्दू धर्म में तलाक के लिए कोई शब्द ही नहीं है। कई कारणों में शादीशुदा जिंदगी में आपसी मनमुटाव इतना बढ़ जाता है कि बात तलाक तक पहुंच जाती है! तलाक एक शादी का अंत हो सकता है, लेकिन उन बाकी रिश्तों का क्या, जो इस शादी से बंधे थे? कोई भी इन्सान, इस उम्मीद से शादी नहीं करता है कि भविष्य में वो पवित्र रिश्ता टूट जाए, क्योंकि डायवोर्स, हमेशा ही दुख, चिंता और डर का एक ऐसा तूफान लेकर आता है, जो 2 परिवारों और अपने आसपास की सोसायटी को भी बुरे तरीके से प्रभावित करता है! एक हेल्दी रिलेशनशिप में लड़ाई-झगड़े होना, बहुत आम बात है! और कहा भी जाता है कि नाराजगी और लड़ाई-झगड़ों की वजह से रिश्तों में प्यार बरकरार रहता है, बशर्ते ये नोकझोंक, डायवोर्स तक न पहुंचे! वास्तव में रिश्तों की टूटन और वैवाहिक जीवन का बिखराव, आज के दौर का, एक कड़वा सच बन चुका है।

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एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर, फाइनेंस को लेकर दिक्कत, कम्युनिकेशन प्रॉब्लम, ज्यादा उम्मीद, सेल्फ रिस्पेक्ट और फैमिली की जिम्मेदारियों जैसी कई चीजें, तलाक के लिए जिम्मेदार हैं! दहेज, पारिवारिक संस्कार, मित्रों की संगत से लेकर नशे के गलत शौक भी डिवोर्स का कारण बनते हैं! तलाक का सबसे बड़ा कारण अहंकार है! नारी और पुरुष, समान रूप से एक इंसान हैं, लेकिन अहंकार के कारण, कई बार कुछ पार्टनर, अपने पति या पत्नी को अपनी बराबरी पर आते हुए नहीं देख पाते! खुद के आगे उन्हें, कुछ नहीं समझते और तलाक की स्थिति आ जाती है! वैवाहिक संबंधों की उलझन में दंपती ही नहीं, दांपत्य जीवन से जुड़ा हर पहलू, हर इंसान प्रभावित होता है! बच्चों की सही परवरिश के लिए, माता और पिता, अपने दादा-दादी, नाना नानी, सभी के साथ, प्यार व दुलार की जरूरत होती है, लेकिन तलाक के बाद बच्चा माता-पिता में से किसी एक से दूर हो जाता है और यही दूरी, उसके कोमल मन को अंदर से तोड़ देती है! वो खुद को कोसता है कि उसी के साथ ऐसा क्यों हो रहा है! जब वो दूसरे बच्चों के पेरेंट्स को देखता है, तो उसे लगता है कि वो बहुत अनलक्की है! और जब बच्चे शादी के योग्य हो जाते हैं, तब भी यह सवाल उठता है कि उनके माता-पिता का डिवोर्स क्यों हुआ था! सिर्फ बच्चे पर ही नहीं, बल्कि डायवोर्स कपल्स के परिवारों, पर भी एक नेगेटिव असर डालता है! और तलाक के बाद, अक्सर उस इन्सान को समाज, एक सही नजरिए से नहीं देखता!

भारत के संविधान का आर्टिकल 21, प्रत्येक व्यक्ति को अपनी शर्तों पर और सम्मान के साथ जिंदगी जीने का अधिकार देता है। इसलिए, तलाक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का एक पहलू माना जा सकता है। 1950 के दशक में संसद में पारित ऐतिहासिक हिंदू कोड बिल ने महिलाओं को संपत्ति का अधिकार दिया, बहुविवाह को गैरकानूनी घोषित किया और पति-पत्नी को तलाक, फाइल करने की अनुमति दी। लेकिन किसी भी समस्या का हल विवाह विच्छेद यानी तलाक नहीं हैं। जरूरी नहीं कि आपका अगला पार्टनर इस वाले से अच्छा होगा! तलाक के बाद यदि लड़का या लड़की दूसरी शादी कर भी लेते हैं, तो उस शादी के बाद दोनों को सावधानी और समझदारी से चलना पड़ता है! बच्चों के भविष्य और दोबारा डायवोर्स की नौबत न आए, इसलिए शादीशुदा जिंदगी में संतुलन बना कर चलना पड़ता है! लेकिन अगर यह संतुलन और समझदारी, पहली शादी में ही बरत ली जाए, तो कुछ तलाक होने से बच सकते हैं! किसी भी रिश्ते का टूटना सही नहीं है, और तलाक में एक रिश्ते के साथ-साथ, एक इंसान का दिल, भरोसा और उम्मीद टूटती हैं! और वो जिस दर्द और डर के साए में रहता है, हम सोच भी नहीं सकते! भले ही तलाक की वजह से, पारिवारिक जीवन का यह खास अध्याय, समाप्त हो जाता है, लेकिन शादी की बदौलत बना एक परिवार और रिश्ते, वास्तव में कभी नहीं टूटते, यह हमेशा आगे बढ़ते हैं- लेकिन एक पेनफुल इम्पैक्ट के साथ! इसलिए याद रखें कि, अगर आप इस कठिन दौर से गुजर रहे हैं, तो समझदारी से काम लें! ज्यादातर तलाक, सिर्फ अपनी गलत सोच, अहंकार, गलत राय और गलत निर्णय के कारण होते हैं! यदि तलाक से पहले, पति-पत्नी और उनके परिवारों यानी दोनों पक्षों को समझाया जाए, तो बहुत बार यह स्थिति बदली जा सकती है!