इंडियन कल्चर, खुद एक कार्निवल के जैसा है, जहां कभी होली के रंग इसे सतरंगी बनाते हैं, तो कभी जमीन पर दिवाली के दीयों की जगमगाहट मानो, आसमान के तारों को चैलेंज करती है, कि ज्यादा रोशन कौन है। कभी नवरात्रि, जन्माष्टमी और ईद, जैसे हमारे कई धार्मिक त्योहार, लोगों को अपनेपन और प्यार से रहने की हिदायत देते हैं, तो कभी ओणम, पोंगल और रक्षाबंधन अपनी regional डायवर्सिटी के बारे में हमें बताते हैं। इसी कड़ी में पूरे भारत के लिए नवंबर का महीना, कई यादगारी त्योहारों का संगम है, जहां एक ओर गुजरात का रण उत्सव और बिहार का सोनपुर मेला lights, colors, decorations, music और डांस जैसी कई एक्टिविटी के साथ नवंबर के सर्द मौसम में गरमाहट लाता है, वहीं भारत के 41वें इंटरनेशनल ट्रेड फेयर के साथ आज का दिन न सिर्फ भारत, बल्कि 10 से ज्यादा देशों के डोमेस्टिक और ट्रेडिशनल एग्जिबिशन की बहुत सी यादें देकर जा रहा है। वैसे तो, इंडियन स्टेट गुजरात, डांस की एक जॉयफुल टाइप- गरबा के लिए फेमस है, लेकिन क्या आपने यहां होने वाले रण उत्सव के बारे में सुना है? यह गुजरात के कच्छ रीजन में सेलिब्रेट किया जाता है, एक ऐसी जगह है, जो नमक की सफेद चादर से ढकी रहती है। कच्छ का पूरा रण यानी रेगिस्तान, दुनिया के सबसे बड़े नमक के रेगिस्तानों में से एक है, जो गुजरात के तकरीबन 51% एरिया को कवर करता है। इसका ज्यादातर हिस्सा गुजरात में है और कुछ पाकिस्तान के सिंध रीजन में है। रण उत्सव का इतिहास सदियों पुराना है और आज यह कार्निवल हर साल नवंबर से शुरू होकर फरवरी तक, पूरे 4 महीने तक चलता है।
इसे धोरडो नाम का गांव, होस्ट करता है। आपको जानकर हैरानी हो, लेकिन इस त्योहार के लिए चार महीनों के अंदर, धोरडो में एक पूरा शहर बनाया जाता है। यहां हर साल, आवास, दुकानों और स्टेज के लिए टेंट लगाए जाते हैं। दिलचस्प बात यह है कि इन टेंटों को हर साल खड़ा किया जाता है और फेस्टिवल के खत्म होते ही, फिर तोड़ भी दिया जाता है। रण उत्सव एक ऐसा कार्निवल है, जो ट्रेडिशनल, कल्चरल डांस, एक्ट शो, कैमल सफारी, म्यूजिकल मोमेंट्स, लाइव इन टेंट जैसी कई एक्टिविटीज के लिए फेमस है। अगर आपको भी, तारों की चांदनी के नीचे जमीन पर बिछी सफेद जगमगाती चादर देखनी हो, तो इस कार्निवल को जॉइन कर ''अमेजिंग नेचर'' को इंजॉय करें। वहीं अगर, नवंबर से दिसंबर में होने वाले बिहार के सोनपुर मेले की बात की जाए, तो यह एशिया के सबसे बड़े कैटल फेयर में से एक है, जो गंगा और गंडक रिवर पर ऑर्गेनाइज किया जाता है। बिहार की सिटी- सोनपुर में होने वाला यह फेयर, कई नेशनल और इंटरनेशनल artists को होस्ट करता है। यह मेला भगवान हरिहरनाथ की पूजा, जानवरों, और खासकर हाथियों और घोड़ों के व्यापार के लिए फेमस है, जहां दुनिया भर के हजारों लोग आते हैं।
इसके अलावा, दिल्ली में 14 नवंबर को शुरू हुआ भारत का 41वें इंटरनेशनल ट्रेड फेयर की क्लोजिंग सेरेमनी आज, यानी 27 नवंबर को है। 'वोकल फॉर लोकल, लोकल टू ग्लोबल' थीम के साथ इस प्रोग्राम में पूरे भारत के अलावा अफगानिस्तान, बांग्लादेश, बहरीन, बेलारूस, ईरान, थाईलैंड, तुर्की और यूके जैसे दुनियाभर के 12 देश शामिल हुए। जहां लगभग 2500 domestic and foreign exhibitors के प्रोडक्ट्स शोकेस किए गए। इसकी हिस्ट्री की बात करें, तो यह पहली बार 14 नवंबर, 1980 को दिल्ली के प्रगति मैदान में ऑग्रेनाइज करवाया गया था। यह ट्रेड फेयर Manufacturers, merchants, exporters, and importers को एक मंच प्रोवाइड करवाकर B2B, B2C, and C2C बिजनेस की ऑपरच्यूनिटी देता है। कोई भी त्योहार हो, या फिर ट्रेड फेयर, वो हमेशा नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर उस स्टेट या देश के कल्चर को शो करता है। और भारत, अपनी डायवर्सिटी के आगोश, में न जाने कितने ही मेले और त्योहार लिए बैठा है, जो हमेशा हमें कुछ न कुछ सिखा के जाते हैं। देशभक्त हिंदुस्तानी के साथ, हम भी, उस रेवोल्यूशन और जश्न की बात करते हैं, जो एक न्यू इंडिया के विजन के साथ शुरू किया गया है। हमारे घर की दहलीज से शुरू हुए जश्न, एक ऐसी मिलनसार दुनिया बनाते हैं, जहां हर धर्म के लोगों के साथ, हर रिश्ता बहुत खास है। लेकिन क्या आप त्योहारों के वक्त, तिरंगे के लिबाज़ में अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से लेकर हर किसी में खुशियां बांटने में बिलीव करते हैं या फिर खुद को रिलिजन और कम्युनिटी की बेड़ियों से बांध लेते हैं? त्योहारों के खास लम्हों का जश्न जरूर मनाएं, बेवजह की इन जंजीरों से खुद को आजाद कर “ह्यूमैनिटी” को सेलिब्रेट करें।