आनंद बागीचे में, खेल रहा था। अचानक उसकी नजर तितली के एक कोनून पर पड़ी। पास जाकर देखा, तो एक छोटे से छेद में से, एक तितली, बाहर निकलने की कोशिश कर रही थी। वो काफी देर तक उसे देखता रहा, लेकिन तितली बाहर नहीं निकल पाई। इसलिए, उसने सोचा- क्यों न तितली की मदद कर दूं। कमरे में जाकर, एक कैंची लाया और कोकून के बचे हुए हिस्से को काट दिया। तितली आसानी से बाहर निकल आई, लेकिन उसका शरीर सूजा हुआ था और पंख बहुत छोटे थे। इसलिए वो उड़ नहीं पाई। आनंद उसे हाथ में लिए, अपने कमरे में चला गया। रात भर, उसके उड़ने का इंतजार करता रहा। लेकिन तितली में इतनी पॉवर नहीं थी, कि वो उड़ पाए।
अगली सुबह जब वो उठा, तो मेज पर रखी तितली में कोई हलचल नहीं दिखी। वो मर चुकी थी। वो उसे उठाकर, अपनी मम्मी के पास पहुंचा। और उन्हें बताने लगा, किस तरह उसने, तितली को कोकून से बाहर निकलने में मदद की है। तब उन्होंने आनंद को समझाते हुए कहा- कोकून में तितली, का संघर्ष ही उसे ताकत देता है। अगर ये खुद इससे बाहर निलकती, तो इसे विकसित होने के लिए कुछ और समय मिल जाता और तब तक इसके पंख मजबूत होते। याद रखो, अगर हमें, संघर्ष के बिना ही, सब मिलता रहे, तो हम अपंग की तरह हो जाते हैं। हमें किसी की इतनी ज्यादा मदद भी नहीं करनी चाहिए, कि उसके बाद, वो कुछ, कर ही ना पाए।