कंचन और आनंद झगड़ रहे थे। एक कहता- मैं, सही हूं, और दूसरा कहता- तुमने गलत उत्तर दिया है। असल में, कंचन ने किताब में से कुछ पढ़ा और आनंद ने वही चीज, ऑनलाइन पढ़ी। दोनों ही जगह, आधी जानकारी थी। इसलिए, दोनों, खुद को सही साबित करने में लगे थे। तभी उनकी मम्मी कमरे में आती हैं, और झगड़े का कारण जानने के बाद, कहने लगी। तुम्हारी हालत, 3 अंधे दोस्तों के जैसी है। दोनों पूछने लगे- मतलब क्या है इसका। वो कहती हैं- एक बार 3 अंधे आदमी थे। जब उन्हें पता चला कि गांव में, एक हाथी आया है। तो तीनों सोचने लगे कि हम देख नहीं सकते, लेकिन हाथ लगा कर देखते हैं, आखिर ये हाथी होता कैसा है! तीनों ने हाथी को, टच करके देखा।
पहले आदमी ने हाथी का पैर छूते हुए कहा- मैं समझ गया, हाथी एक खम्भे की तरह होता है”। “अरे नहीं, हाथी तो रस्सी की तरह होता है.” दूसरे आदमी ने पूँछ पकड़ते हुए कहा। तीसरे आदमी ने उसके पेट पर हाथ रखते हुए कहा- “नहीं, ये तो एक दीवार की तरह है.”। तीनों को आपस में झगड़ता देखकर, पास खड़े एक बुजुर्ग आदमी ने कहा- तुम सब, अपनी-अपनी जगह सही हो। तुम जो बोल रहे हो, वो इसलिए अलग है, क्योंकि तुम सबने हाथी को अलग-अलग जगह से छुआ है। कहानी का सार ये है कि हमारे सही होने से, सामने वाला इनसान गलत नहीं हो जाता।