रात के 8 बज रहे थे, आनंद के पापा, बागीचे में टहल रहे थे। अचानक उनकी नजर, एक आदमी पर गई, जो बाहर स्ट्रीट लाइट के पास कुछ ढूंढ रहा था। काफी देर तक उसे देखने के बाद, वो उसके पास जाकर बोले- क्या, तुम कुछ ढूंढ रहे हो। आदमी ने कहा- हां, मेरे घर की चाबी गुम हो गई है। ये सुनकर, उन्होंने, उसकी मदद करने का सोचा। और चाबी ढूंढने में उसकी मदद करने लगे। काफी देर, चाबी ढूंढने के बाद भी, जब वो नहीं मिली, तो उन्होंने उस आदमी को दोबारा पूछा- क्या तुम्हें पक्का यकीन है कि, चाबी इसी जगह गुम हुई थी? आदमी कहने
लगा- नहीं, वो तो पार्क में कहीं गिरी थी। पार्क में लाइट नहीं थी, यहां रोशनी है, इसलिए मैं, उसे यहां ढूंढ रहा हूं। ठीक इसी तरह, हम भी, अपनी खुशियों को, अक्सर कहीं बाहर ढूंढते हैं। हमें लगता है कि, भौतिक चीजें या दूसरे लोग हमें, खुश रख सकते हैं। अपने अंदर गहराई से देखें, खुशी खुद के अंदर है।