एक दिन, बस स्टॉप पर, एक दुबला पतला लड़का, आनंद के पापा के आता है और कहता है साहब- बूट पॉलिश करवा लो। आनंद के पापा ने मना किया। लेकिन लड़का बार-बार रिक्वेस्ट कर रहा था। तो उन्होंने कहा- ठीक है, लेकिन अच्छे से करना। लड़का बूट पॉलिश करने लगा, लेकिन कमजोर था, तो सही से काम नहीं कर पाया। ये देखकर, आनंद के पापा ने अपना पैर पीछे हटाया और गुस्से में कहने लगे- जब काम सही से नहीं कर सकते, तो कर क्यों रह हो। आ जाते हैं, हमारा पैसा और समय खराब करने। वो वहां से जाने ही लगे, कि एक दूसरा लड़का आया, और उनके बूट पॉलिश करने लगा। उसने जूते चमका दिए।
आनंद के पापा ने जेब से पैसे निकाले और उस दूसरे लड़के को दिए, क्योंकि काम तो उसने किया था। लेकिन उस लड़के ने वो पैसे, उस कमजोर लड़के को दे दिए। वो वहां से चला गया। तब आनंद के पापा ने उसे पूछा- तुमने अपनी मेहनत की कमाई उसे क्यों दी। लड़के ने कहा, कुछ दिन पहले इसका एक्सीडेंट हो गया था। हमनें इसे बहुत समझाया, लेकिन स्वाभिमानी है, भीख नहीं मांगना चाहता। हमारा एक ग्रुप है और हम सब मिलकर, इसकी मदद कर रहे हैं। जहां भी ये बूट पॉलिश करता दिख जाता है, ग्रुप का कोई न कोई लड़का वहां पहुंच कर इसकी जगह, बूट पॉलिश करता है, और पैसे इसे दे देता है। एक बूट पॉलिश करने वाला ग्रुप, अगर ये समझ सकता है, तो हम क्यों नहीं। एक दूसरे का साथ दें, मदद करें, यही जिंदगी है और इसी में खुशी है।